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कठघरे में रेल सुरक्षा और संरक्षा
कठघरे में रेल सुरक्षा और संरक्षा
अरविंद जयतिलक    17 Apr 2017       Email   

जबलपुर से दिल्ली जा रही महाकौशल एक्सप्रेस ट्रेन का महोबा के निकट दुर्घटनाग्रस्त होना किसी आतंकी साजिश का नतीजा है या रेल ट्रैक टूटने का परिणाम यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट होगा। लेकिन पिछले दिनों जिस तरह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मारे गए इस्लामिक स्टेट के संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह के तार मध्य प्रदेश में भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन विस्फोट से जुड़े और मध्य प्रदेश के पिपरिया तथा उत्तर प्रदेश के कानपुर व इटावा से कुछ संदिग्धों की धरपकड़ हुई, उससे इस दुर्घटना में आतंकियों की साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता। याद होगा, गत वर्ष पहले चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर खड़ी बंगलुरु-गुवाहाटी एक्सप्रेस की दो बोगियों में सिलसिलेवार बम धमाका हुआ था। इसके पीछे इंडियन मुजाहिदी की संलिप्तता माना गया था। 2008 के मुंबई हमले के दौरान भी आतंकियों ने शिवाजी टर्मिनस पर कहर बरपाया था। रेल दुर्घटनाओं में आतंकियों के हाथ होने की संभावना इसलिए है कि पिछले दिनों देशभर में जितने रेल हादसे हुए हैं, उनमें खुरासान मॉड्यूल की संलिप्तता उजागर हुई है। गौरतलब है कि खुरासान मॉड्यूल की नींव पाकिस्तान व अफगानिस्तान में सक्रिय तहरीक-ए-तालिबान ने रखी है, जो बड़े पैमाने पर बांग्लादेश में आतंकियों को प्रशिक्षित कर भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए भेजता है। भारत में आइएस से प्रभावित आतंकी बांग्लादेश जाकर इस समूह से जुड़ते हैं। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि रेल दुर्घटनाओं में आतंकियों की भूमिका की गहराई से पड़ताल हो। हालांकि, यह भी संभव है कि रेलगाड़ी के आठ डिब्बे पटरी से उतरने का कारण रेल की पटरियों में दरार रही हो। बहरहाल सच जो भी है, पर पिछले कुछ दिनों में जिस तरह देश भर में लगातार रेल दुर्घटनाएं हुई हैं, उससे चिंतित होना लाजिमी है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले पांच वर्षों में रेल दुर्घटनाओं में हजारों लोगों की जान गई है। उत्तर प्रदेश में ही नौ हजार से अधिक रेल हादसे हुए हैं। इसमें डिरेलमेंट से लेकर क्रॉसिंग पर होने वाले हादसे भी हैं। रेल हादसे में महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं। आतंकी संलिप्तता से इतर गौर करें तो अक्सर रेल दुर्घटनाएं शार्ट-सर्किट, असुरक्षित क्रॉसिंग, रेलवे स्टाफ  की विफलता, उपकरणों में खामियां, टक्कर व तोड़फोड़ के कारण होती हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर की मजबूत पटरियां बिछाई जाएं, पुराने पड़ चुके रेल इंजन व वैगन को बदला जाए, सिग्नल प्रणाली को नई तकनीक से जोड़ा जाए और कलपुर्जों की खरीद व उनकी गुणवत्ता में सुधार लाया जाए तो काफी हद तक रेल दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। अक्सर दुर्घटनाओं के बाद ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वार्निंग सिस्टम यानी टीपीडब्लूएस को लागू करने की बात कही जाती है। लेकिन पता नहीं क्यों, यह अभी तक लागू नहीं हो सका है, जबकि इसका ट्रायल भी हो चुका है। पिछले कुछ वर्षों से ट्रेनों में आग की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। लेकिन इससे निपटने के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में ही आग बुझाने के इंतजाम हैं। एक दशक पहले 2003-04 में रेलवे बोर्ड ने ट्रेनों में आग की घटनाओं को रोकने के लिए भारतीय रेल कॉरपोरेट संरक्षा योजना शुरू की थी। योजना को 2014 तक अमलीजामा पहनाना था। रेल प्रशासन ने दावा किया कि इस योजना के लागू होने से ट्रेन में आग की 80 फीसद घटनाएं कम हो जाएंगी। लेकिन यह योजना घोंघे की चाल से आगे बढ़ रही है। दरअसल, इसका मुख्य कारण रेलवे के पास धन का अभाव होना है। अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन यानी आरडीएसओ ने दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें दी हैं। अगर इस पर अमल हो तो हादसों से निपटने में मदद मिलेगी। ध्यान देना होगा कि कुछ महत्वपूर्ण ट्रेनों को छोड़कर अधिकांश के डिब्बों में न अग्निरोधी उपकरण हैं और न ही अलॉर्म की सुविधा। अगर फायर स्मोक डिटक्शन अलॉर्म का उपयोग हो तो यात्रियों की सुरक्षा चाक-चौबंद की जा सकती है। रेलवे की बिगड़ती माली हालत भी दुर्घटनाओं के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। धन की कमी से सुधार की गति धीमी है। परियोजनाएं धूल फांक रही हैं। दूसरी ओर पटरियों पर ट्रेनों का दबाव बढ़ रहा है, जबकि उस अनुपात में रूटों का विस्तार नहीं हो रहा। अगर रेलवे में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ायी जाए तो परियोजनाओं को गति मिल सकती है। साथ ही यात्रियों को सुरक्षा भी मजबूत होगी। रेल में सुरक्षाकर्मियों के लाखों पद रिक्त हैं। अगर इन रिक्त पदों को भरा जाए तो सुरक्षा व्यवस्था तो चाक-चौबंद होगी ही, साथ ही लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा। लेकिन इस दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। गौर करें तो आज देश के अधिकांश रेल स्टेशनों के प्रवेश द्वारों, परिसरों, प्लेटफार्म पर मेटल डिटेक्टर नहीं हैं। नतीजा आतंकी जमात अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने में सफल हो सकते हैं। उचित होगा कि रेलवे अपने यात्रियों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए।






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