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खराब रिजल्ट भविष्य के प्रदर्शन का सूचक नहीं!
खराब रिजल्ट भविष्य के प्रदर्शन का सूचक नहीं!
सुधीर कुमार    24 Jun 2017       Email   

बीएसई समेत प्रायः सभी राज्यों के दसवीं तथा बारहवीं बोर्ड परीक्षा के परिणामों की घोषणा कर दी गई है। कुछ राज्यों में परिणाम काफी बेहतर हुए हैं, जबकि लचर शिक्षा व्यवस्था की वजह से कुछ राज्यों में फेल होनेवाले छात्रों की संख्या बीते वर्ष की तुलना में बढ़ी है। मसलन, परीक्षा में खुलेआम नकल और टॉपर घोटाले के रूप में कुख्यात बिहार में दो दिन पूर्व घोषित दसवीं की बोर्ड परीक्षा में मात्र 50.12 फीसदी छात्र ही उत्तीर्ण हुए हैं, जबकि शेष छात्र पास होने की न्यूनतम अंकसीमा को भी छूने में नाकाम रहे। इससे पहले 30 मई को घोषित बिहार बोर्ड के इंटरमीडिएट के परीक्षा परिणाम भी काफी निराशाजनक रहे थे। स्थिति यह थी कि रिजल्ट में तीनों संकायों को मिलाकर राज्य के 64 फीसदी छात्र फेल हो गए, जिसमें विज्ञान संकाय के 70, मानविकी के 63 और 26 फीसदी छात्र वाणिज्य संकाय के शामिल थे। ये सिर्फ एक राज्य के आंकड़े हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर हर वर्ष बोर्ड इम्तिहानों में फेल होने अथवा कम अंक प्राप्त करने वाले छात्रों की अच्छी तादाद होती है।
परीक्षा परिणाम के बाद स्वाभाविक तौर पर अच्छे अंक लानेवाले छात्र नामांकन के लिए विभिन्न कॉलेजों व विश्वविद्यालयों का रुख कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ  अच्छा प्रदर्शन न कर पाने वाले छात्र तनाव व अवसाद की गिरफ्त में जा रहे हैं। दुखद यह है कि पारिवारिक सहयोग न मिलने तथा हीनता की भावना उत्पन्न होने की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों से कुछ छात्रों द्वारा खुदकुशी किए जाने की खबरें भी सामने आई हैं। दरअसल, अपनी आगे की पढ़ाई हेतु पसंदीदा संकाय व विषय के चुनाव के साथ अच्छे कॉलेजों में नामांकन की एक बड़ी शर्त बेहतर रिजल्ट का होना होता है, इसलिए परीक्षा परिणाम के साथ छात्रों की ढेर सारी उम्मीदें जुड़ी होती हैं। ऐसे में जिन छात्रों का रिजल्ट किसी कारणवश बढ़िया नहीं हो पाता है, वे सामाजिक अपमान का डर तथा मन में हीन भावना के विकास की वजह से खुद को कष्ट पहुंचाने के प्रयास करते हैं अथवा अपनी नकारात्मक छवि बनाकर अपना आत्मविश्वास खो बैठते हैं। बेशक परीक्षा में विफल रहे कुछ छात्रों के लिए यह वक्त मुश्किल भरा होता है, लिहाजा संबंधित अभिभावकों से आशा की जाती है कि वे अपने बच्चों का हौसला बढ़ाते रहें। उन्हें समझाएं कि परीक्षा में सफल या असफल होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। परीक्षा में कम अंक आना या फेल हो जाना अपराध नहीं है। पूरी जिंदगीभर हमें नए मौके मिलते रहते हैं। लिहाजा किसी एक वर्ष के इम्तिहान में परिणाम के खराब होने का मतलब जिंदगी बर्बाद होना कतई नहीं होता। चूंकि खराब परीक्षाफल छात्रों के अंदर निहित आत्मविश्वास को कम करने का प्रयास करता है, इसलिए ऐसे वक्त में अभिभावकों का अपने बच्चों तथा छात्रों का खुद पर भरोसा बनाए रखना बेहद जरूरी होता है। हालांकि यह सच्चाई है कि जिन परिवारों में लोग अपने बच्चों पर अधिक अंक लाने का दबाव बनाया करते हैं, वहां अगर किसी कारणवश बच्चों के अच्छे अंक नहीं आते हैं तो अभिभावकों का उनके प्रति व्यवहार काफी कठोर हो जाता है। पारिवारिक सहयोग न मिलने की वजह से जाहिर तौर पर कुछ छात्र अंदर ही अंदर टूट जाते हैं। ऐसी स्थिति में आगे की कक्षाओं के लिए खुद को तैयार करने में छात्रों को काफी कठिनाई होती है। जबकि यह वक्त खुद को कमजोर बनाने के बजाय फिर से खड़ा होकर संभलने के निमित्त प्रयत्नशील होने का होता है। हालांकि यह कार्य थोड़ा मुश्किल भरा जरूर होता है, लेकिन व्यक्ति अगर अपनी काबिलियत पर भरोसा करे तो सफलता के मार्ग पर दस्तक देने वाली समस्याओं से निपटना आसान हो जाता है। इतिहास में ऐसे अनेकों दृष्टांत मौजूद हैं, जिसमें हम देखते हैं कि विफलता के बाद आलोचनाएं सुनने और हार कर बैठने के बजाय कुछ लोगों ने अपनी क्षमता पर विश्वास करके अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज कराने में सफलता अर्जित की है। ऐसा ही एक उदाहरण थॉम्स एल्वा एडिसन का है। इनका नाम संपूर्ण दुनिया में बल्ब के आविष्कारक के तौर पर जाना जाता है। 1878 में आविष्कृत बल्ब आज हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। लालटेन व डिबिया युग में रहने को विवश मानव समाज को बल्ब का उपहार देकर संपूर्ण विश्व में क्रांति की मशाल जलाने वाले एडिसन के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं कि बल्ब बनाने के क्रम में वे हजार बार विफल रहे थे। जाहिर है, इस दौरान उन्होंने अपने परिवार व समाज से आलोचनाएं भी सुनीं, पर उनका इरादा मजबूत था। हार मानने के बजाय उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा। अपने हरेक प्रयास में पिछली गलतियों से सीख लेते हुए एडिसन ने आवश्यक सुधार की प्रक्रिया जारी रखी। अंततः उनकी जीत हुई और तब दुनिया ने जाना कि कृत्रिम प्रकाश देनेवाली बल्ब जैसी कोई चीज भी हो सकती है।
दरअसल, किसी काम के प्रति हमारा प्रयास ही सफलता या असफलता की आधारशिला रखता है। प्रयास अगर सही दिशा में हो तो परिणाम सकारात्मक आते हैं, अन्यथा हमें निराश होना पड़ता है। परीक्षा में सफलता या असफलता भी इसी प्राकृतिक सूत्र के इर्द-गिर्द घूमती है। परीक्षा एक माध्यम है जिससे हम साल भर की अपनी पढ़ाई, ज्ञान और याद्दाश्त को परखते हैं। साल भर हमने कितनी ईमानदारी व मेहनत से पढ़ाई की है, वह एक दर्पण की भांति परीक्षा परिणामों में नजर आता है। हालांकि किसी एक वर्ष के इम्तिहान में कम नंबर आना या फेल होना यह कतई नहीं बतलाता है कि भविष्य में आपका प्रदर्शन इसी तरह का रहेगा। कम नंबर लाने का अर्थ यह भी नहीं है कि आपके भीतर टैलेंट की कमी है। असल में यह संभलने का एक अवसर है, जहां से अधिक मेहनत करके अपने भविष्य के निर्माण की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है। अतः निराशा के भंवर में फंसने के बजाय दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ अगली परीक्षा की तैयारी पर ध्यान केंद्रि्रत करना ही समझदारी है।






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