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दुनिया की निगाहें मोदी-बेंजामिन मुलाकात पर
दुनिया की निगाहें मोदी-बेंजामिन मुलाकात पर
निरंकार सिंह    03 Jul 2017       Email   

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूरोप, रूस और अमेरिका के दौरे के बाद अब दुनिया की निगाहें उनके इजरायल दौरे पर टिकी हुई हैं। इजरायल के साथ भारत के मजबूत संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय दौरे पर चार जुलाई को इजरायल पहुंचेंगे। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारतीय प्रधानमंत्री की इजरायल यात्रा की सराहना करते हुए इसे एक बहुत महत्वपूर्ण कदम बताया है और कहा है कि इस यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती मिलेगी, जो लगातार आगे बढ़ रही है। देश की आजादी के बाद वह पहले प्रधानमंत्री हैं, जो इजरायल जा रहे हैं। इजरायल तकनीक और हथियारों के मामले में एक अग्रणी देश है। वह समुद्र के खारे पानी को पेयजल बनाकर अपनी जरूरतें पूरा करता है। भारत यह तकनीक उससे हासिल कर अपने दक्षिणी राज्यों की जल समस्या को हल कर सकता है। सीमा पर घुसपैठ और आतंकवाद से लड़ने में वह भारत की मदद कर सकता है। भारत की कमजोर रक्षा निर्माण क्षमता को बढ़ाने की बहुत अधिक जरूरत है और इजरायल से निवेश, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा डिजायन सहयोग के क्षेत्र में प्रचुर संभावनाएं हैं। कांग्रेस सहित कुछ तथाकथित सेकुलर दल मोदी की इस यात्रा का विरोध इस आधार पर कर रहे हैं कि इससे मुस्लिम देश नाराज हो जाएंगे। पर अब तो कई अरब इस्लामी देशों के इजरायल के साथ निकटवर्ती संबंध हैं और पश्चिम एशियाई क्षेत्र में वर्तमान अस्थिरता और दांवपेच में यह बहुत साफ  होता जा रहा है कि कुछ परिस्थितियों में, जैसे आइएस से निबटने के मामले में सऊदी अरब, ईरान और इजरायल तक एक खास स्तर पर अपने हितों और लक्ष्यों को साझा देखते हैं। इसलिए विपक्षी दलों का हो-हल्ला बिल्कुल बेमानी है। भारत के सामने उसका राष्ट्रहित सर्वोपरि है। इजरायल से हमें सस्ती और बेहतर तकनीक मिलेगी, जिसकी आज भारत को बहुत जरूरत है। 
प्रधानमंत्री के इजरायल दौरे के दौरान नौसेना के वायु रक्षा प्रणाली की खरीद सहित कई बड़े रक्षा सौदे हो सकते हैं। मोदी की यात्रा के बारे में इजरायली राजदूत डेनियल कैरमन ने कहा है कि यह अहम यात्रा होगी, जो दोनों देशों के बीच सहयोग की गहराई को दर्शाएगी। यह संभावना है कि नौसेना के लिए बराक-8 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की खरीद का सौदा और स्पाइक टैंक-रोधी मिसाइलों की खरीद का सौदा मोदी की तेल अबीब यात्रा के दौरान किया जा सकता है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी की यात्रा के दौरान अरबों डालर के दो खरीद सौदों को अंतिम रूप दिया जा सकता है। भारत, इजरायल से सैन्य उपकरण खरीदने वाला सबसे बड़ा खरीददार है। इजरायल कुछ साल से भारत को विभिन्न प्रणालियों, मिसाइलों और मानव रहित हवाई यानों की आपूर्ति करता रहा है। फरवरी में भारत ने इजरायल के साथ सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल को विकसित करने की 17 हजार करोड़ की संधि पर औपचारिक घोषणा मोदी की यात्रा के दौरान हो सकती है। विशिष्ट रक्षा सौदों के बारे में राजदूत ने बस यही कहा कि यह संबंध खरीदने और बेचने से कहीं आगे आ चुका है। अब दोनों देश संयुक्त अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इजरायल के भारत के साथ अच्छे संबंध हैं और इस संबंध के रक्षा समेत कई पहलू हैं। 
पिछले कुछ वर्षों से भारत-इजरायल संबंध मजबूत हुए हैं। आज दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 6 अरब डालर तक पहुंच गया है। भारत इजरायल से हर साल करीब एक अरब डॉलर का सैन्य सामान आयात करता है। इजरायल से और ज्यादा महत्वपूर्ण मदद 1999 कारगिल युद्ध के दौरान और उसके बाद भारतीय सैन्य साजो सामान के कुछ हिस्सों के आधुनिकीकरण के रूप में मिली, खासतौर से उम्दा लक्ष्यभेदी युद्ध सामग्री और मिसाइल रोधी तंत्र। नवंबर 2008 के मुंबई हमले के बाद आतंकवाद निरोधी सहयोग भी बढ़ा है, लेकिन इसे जानबूझकर सामने नहीं लाया जाता है। वैसे तो इजरायल पश्चिम एशिया का एक छोटा-सा औद्योगिक खेतिहर देश है। यह तीनों तरफ  से अरब राज्यों से घिरा है। पर अपने वैज्ञानिकों की सामर्थ्य और तकनीकी क्षमता के बल पर वह अमेरिका जैसे देश को भी प्रभावित करता है। आतंकवाद से मुकाबला करने में उसने गजब की महारत हासिल कर रखी है। कारगिल युद्ध में भी उसने भारत की मदद की थी। उसने अपने छोटे से भू-प्रदेश में बड़े कौशल और कार्य-कुशलता से कृषि और उद्योग दोनों का विकास किया है। रेगिस्तान को हरा-भरा बना दिया है। 
उसके कृषि विकास की प्रमुख विशेषताएं हैं- सामूहिक कृषि, सिंचाई की योजनाएं और रेगिस्तानी भूमि को खेती के लायक बनाना। निर्यात की प्रमुख मद है रसीले फल। शराब बनाने का उद्योग भी व्यापक स्तर पर है। हीरा तराशने के उद्योग में इजरायल का स्थान बेलजियम के बाद दूसरे नंबर पर है। जॉर्डन की घाटी और मृत सागर से नमक, गंधक और पोटाश प्राप्त होता है। इजरायली अर्थव्यवस्था की मुख्य शाखा मैनूफैक्चरिंग उद्योग है, जिसमें हल्के और खाद्य सामग्री उद्योग को प्रधानता प्राप्त है। रसायन, इंजीनियरिंग और रेडियो इलेक्ट्रॉनिकी उद्योगों का भी विकास हुआ है, जो सैन्य सामग्री उत्पादन से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं। उसके उद्योग तेल अबीब, हाइफा बंदरगाह और दूसरे नगरों में केंद्रित है। कृषि की विशिष्ट शाखा नींबू-संतरों का उत्पादन है, किंतु गेहूं, धान, मक्का की खेती, पशुपालन और मुर्गी पालन पर ध्यान दिया गया है। 
इजरायल का क्षेत्रफल 20,772 किलोमीटर है और इसकी आबादी एक करोड़ से भी कम है। इस राज्य में प्राचीन फिलिस्तीन का भी थोड़ा सा भाग है। 29 नवंबर, 1947 को राष्ट्र संघ ने फिलिस्तीन का विभाजन करके एक भाग ज्यूज यानी यहूदियों को और एक भाग अरबों को दे दिया। 15 मई, 1948 को यहूदियों ने अपने भाग को इजरायल नाम से घोषित कर दिया। पड़ोसी अरब देशों ने इजरायल पर आक्रमण कर दिया। 1949 में युद्ध विराम घोषित किया, लेकिन तब तक इजरायल के क्षेत्र में एक तिहाई की वृद्धि हो चुकी थी। मिस्र के साथ इजरायल की अनेक लड़ाइयां हुईं। 1956 में सुएज संकट, 1967 में 6 दिवसीय युद्ध में गाजा पट्टी, पश्चिमी किनारा यानी जोर्डन की नदी और सिनाई पेनिनसुला पर इजरायल का कब्जा हो गया। 1973 में फिर युद्ध हुआ। 1978 में मिस्र और इजरायल में समझौता वार्ता संयुक्त राज्य अमेरिका के केंप डेविड में शुरू हुई। मार्च 1979 में इजरायल सिनाई पट्टी से हट गया। 30 अगस्त, 1993 को इजरायल ने सीमित फिलिस्तीनी स्वायत्ता को सहमति दी। यह 26 वर्षों से संयुक्त क्षेत्रों से सेना के अधिपत्य की समाप्ति का पहला कदम था। फिलिस्तीनी मुक्ति मोर्चे और इजरायल के मध्य 13 सितंबर को ऐतिहासिक समझौता हुआ। इजरायल व जोर्डन ने जुलाई 94 में एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके 46 वर्षीय युद्ध की समाप्ति की। अगस्त 95 में इजरायल व फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चे के मध्य एक समझौते से वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी स्वशासन की स्थापना हुई। जून 1996 में इजरायल के राइट विंग लिकुड पार्टी के नए नेता नेतानयाहु ने कहा कि वे कभी भी अलग फिलिस्तीनी राज्य को समर्थन नहीं देंगे। इजरायल ने जून 1997 को जेरूसलम में फिलिस्तीनियों द्वारा सुसाइडल बांबिंग के बाद शांति वार्ता बंद कर दी। कुल मिलाकर इजरायल का इतिहास संघर्ष और विकास का अनूठा उदाहरण है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ता रहा है। 
भारत और इजरायल के गहराते रिश्ते लेकर अरब देशों में अब कोई बेचैनी नहीं दिखती, एक तरह से उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है। अचरज की बात यह है कि अरब दुनिया में भारत के किसी दोस्त की तरफ  से इसे लेकर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की गई है। भारत और इजरायल के गहराते रिश्ते को लेकर अरब दुनिया में इस बेपरवाही की एक वजह यह स्वीकारोक्ति है कि इन दोनों देशों में बहुत सी बातें एक सी हैं। इस्लामी आतंकवाद के रूप में इनका दुश्मन साझा है। फिर अरब देशों में फलस्तीन को लेकर एक थकान सी पैदा हो गई है। अब कुछ देश तो खुद इजरायल से रिश्ता बनाना चाहते हैं। सऊदी अरब और बहरीन जैसे देश पिछले कुछ समय से इस प्रयास में जुटे हैं। जनवरी 2016 में अमेरिका और दूसरी बड़ी शक्तियों के ईरान के साथ परमाणु करार पर दस्तखत के बाद से प्रधानमंत्री बेंजामिन ‘बीबी’ नेतन्याहू की हुकूमत के साथ अरब देशों का नजरिया बदला है। 
(लेखक हिंदी विश्वकोश के सहायक संपादक रहे हैं)






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