गाजीपुर। ऑन रिकार्ड माना जाता है कि मुख्तार अंसारी से बड़ा निशानेबाज क्रिमिनल कोई दूजा नहीं था, लेकिन आप यह जानकर चौंक जायेंगे कि निशानेबाजी में मुख्तार अंसारी का भी एक ‘बिग बॉस’ था, जिसका नाम अमल कुमार चटर्जी था। 80 के दशक से भी पूर्व जब पूर्वांचल माफिया लॉबी के ‘बॉस’ गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी बने तब अमल कुमार चर्टी उनका ‘राइट हैंड’ बन गया था। गोरखपुर समेत लखनऊ, देवरिया और पूर्वांचल के अन्य कई जिलों में अपराधिक वारदातों को अंजाम देकर अमन चटर्जी ने अपनी धाक जमा ली थी, लेकिन ज्यादातर घटनाओं में वह अप्रत्यक्ष रुप से सामने आया था। अपराध जगत से जुड़े सूत्रों के मुताबिक अमल चटर्जी उर्फ अमल ‘दादा’ 80 के दशक में यह एक ऐसा नाम था जिसे लोग ‘अचूक निशानेबाज’ कहते थे। सूत्र बताते है कि उस दौर में निशानेबाजी में अमल दादा का कोई मुकाबला नहीं कर सकता था। बाद में उसकी टीम में मुख्तार अंसारी शामिल हुआ, लेकिन वह भी अमल दादा जैसा निशानेबाज नहीं था। सूत्र बताते है कि करीब 7-8 वर्ष पूर्व अमल चटर्जी का निधन हो गया।
आइये जाने कौन था अमल चटर्जी उर्फ ‘दादा’
मूल रुप से बंगाली बिरादरी का अमल कुमार चटर्जी के परिवार के लोग काफी लम्बे समय से शहर कोतवाली के ‘नवापुरा’ हालिया पता (साई मंदिर के समीप) अपने निजी मकान में रहते थे। यहीं अमल दादा का जन्म हुआ था और यहीं से वह अपराध जगत में अपना कदम भी रखा था। शुरुआती दौर में अमल दादा कानपुर में रहकर कुछ काम करता था, लेकिन बाद में वह गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी के सम्पर्क में आया। यहीं उसका सम्बंध उस वक्त के देवरिया जिले के माफिया रुदल सिंह से हुआ और वही से शुरु हुआ अपराध जगत की किताब के नये ‘चैप्टर’ का। चूंकि अमल दादा गाजीपुर का रहने वाला था और रुदल सिंह का भी सम्बंध गाजीपुर के तत्कालीन माफिया मकनू सिंह से था। फिर क्या था अमल दादा भी मकनू सिंह के गैंग का एक हिस्सा बन गया। यही उसका सम्बंध मुख्तार अंसारी से हुआ था।
मुड़ियार के गैंगवार में भी अप्रत्यक्ष रुप से अमल दादा रहा शामिल
सूत्र बताते है कि 80 के दशक में जब सैदपुर का मुड़ियार गांव बारुद के ढेर पर बैठा था उस वक्त अमल दादा ने मकनू सिंह का पूरा सहयोग किया था। बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह से छिड़े गैंगवार में अमल दादा ने मकनू सिंह का फ्रंट पर रहकर मदद की थी। चूंकि उस वक्त मकनू सिंह और उनके भाई साधू सिंह के गैंग में सिर्फ मुख्तार अंसारी ही एक मात्र अचूक निशानेबाज था, लेकिन जब अमल दादा ने अपनी निशानेबाजी का प्रदर्शन किया तो सभी की आंखे खुली की खुली रह गई। क्योकि मुख्तार अंसारी से भी अधिक अचूक निशानेबाज था। सूत्र बताते है कि अमल चटर्जी उर्फ दादा जरुरत पड़ने आंखे बंद करके भी निशाना साध लेता था।
जब! हिल गया था लखनऊ का गाजीपुर थाना
बात वर्ष 1983-84 के बीच की है। उस वक्त अमल चटर्जी उर्फ ‘दादा’ लखनऊ के गाजीपुर थाना क्षेत्र में स्थित एक मकान में किराये पर रहता था। सूत्र बताते है कि वह मकान गोरखपुर जिले के ही रहने वाले एक पूर्व डीजीपी प्रकाश मणि त्रिपाठी का था। इस मकान में ही अमल दादा ने फिनॉयल की एक छोटी सी फैक्ट्री खोल रखी थी। यहां अपराधियों के आने-जाने की खबर मिलने पर तत्कालीन गाजीपुर थाने के एसओ ने मकान पर छापा मारा था। सूत्र बताते है कि एसओ सिविल ड्रेस में था। उसने टी-शर्ट और जिंस पहन रखी थी। खिड़की के भीतर से छिपकर पुलिस की गतिविधि परनजर गड़ाये अमल दादा को लगा कि नकली पुलिस वालों को लेकर बृजेश सिंह उन्हें जान से मारने के लिए आ रहा है। फिर क्या था अचूक निशानेबाज ने राइफल से गाली चलाई और गाली लगते ही एसओ गिर गया। इसके बाद तो सूचना वायरलेस के माध्यम से प्रसारित हो गई और पीएसी समेत कई थानों ने फोर्स ने पूरे मकान को घेरकर अमल दादा को दबोच लिया था।
पुलिस पीएसी की पिटाई से अधमरा हो गया था अमल दादा
सूत्र बताते है कि एसओ को गोली मारके मामले में जब एसी व पुलिस ने घेराबंदी कर अमल दादा को पकड़ा तो उनका रुख काफी गुस्से में था। इसलिए फोर्स ने अमल दादा को बेरहमी से पिटा था, जिसके चलते उसके शरीर के कई हिस्से लम्बे समय तक ठीक से काम नहीं करते थे। जेल से निकलने के बाद भी वह लम्बे समय तक लंगड़ाकर चलता था।
लखनऊ जेल में हुई माफिया अभय से दादा की मुलाकात
लखनऊ के गाजीपुर थाना क्षेत्र में हुई हौलनाक घटना के बाद अमल दादा को लखनऊ जेल में बंद किया था। उसी समय जेल में किसी मामले में अभय सिंह भी बंद था। दोनों एक ही बैरक में मौजूद थे। चूंकि उसी वक्त से अभय सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच गहरा सम्बंध था इसलिए बाचीत के दौरान जब दादा ने अपना परिचय बताया तो अभय सिंह ने उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया था। सूत्र बताते है कि अमल दादा और अभय सिंह के बीच भी नजदीकियां हो गई थी।
मुख्तार के गजल होटल में लम्बे समय तक रहा अमल दादा
अपराध जगत से जुड़े सूत्र के मुताबिक 80 के दशक केे माफिया मकनू सिंह और साधू सिंह के साथ रहकर अमल दादा ने जिन घटनाओं को अंजाम दिया था उसमें अप्रत्यक्ष रुप से ही उसका नाम सामने आया था, इसलिए इस जिले की पुलिस ने कभी उसे अपना सिरदर्द नहीं बनाया। ऐसे में अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में वह करीब पांच वर्षो तक नगर के महुआबाग इलाके में स्थित मुख्तार अंसारी के गजल होटल में गुमनाम की जिंदगी बिताया था। सूत्र बताते है कि बीमारी के चलते उसकी मौत हो गई। बताते चले कि गजल होटल वहीं था जिसे डेढ़ पूर्व प्र्रशासन ने ढहवा दिया था।