नयी दिल्ली..... प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को नागरिकों से प्राकृतिक खेती अपनाने की अपील करते हुए कहा कि यह देश के कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखता है।
उन्होंने सोशल मीडिया में जारी एक पोस्ट में कहा कि वह कोयंबटूर में हाल ही में आयोजित दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि सम्मेलन में भाग लेकर आए हैं और वह कृषि के सतत दृष्टिकोण को लेकर किसानों में उत्साह से प्रभावित हुए हैं।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती, भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों और आधुनिक पारिस्थितिकी सिद्धांतों से प्रेरित है और यह रसायनों के बिना कृषि करने पर जोर देती है। यह वह तरीका है, जिसमें पौधे, वृक्ष और पशु एक साथ मिलकर जैव विविधता को बढ़ावा देते हैं। इसमें खेतों के अवशेषों को दोबारा से इस्तेमाल कर लिया जाता है। मिट्टी की सेहत बढ़ाने के लिए बाहरी रासायनिक चीजों को मिलाने से परहेज किया जाता है।
श्री मोदी ने लिखा कि उनकी कोयंबटूर यात्रा एक ऐतिहासिक घटना साबित हुई, जिसने भारतीय किसानों और कृषि-उद्यमियों के मानसिकता, कल्पना और आत्मविश्वास में बदलाव का संकेत दिया। इस सम्मेलन में तमिलनाडु के किसानों से बातचीत हुई, जिन्होंने प्राकृतिक खेती के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को साझा किया और इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसी प्रेरणादायक कहानियाँ सुनीं, जिनसे वह हैरान रह गये। एक किसान ने बताया कि उसने 10 एकड़ क्षेत्र में केले, नारियल, पपीते, काली मिर्च और हल्दी की मिलीजुली खेती की थी, साथ ही वह 60 देसी गायों, 400 बकरियों और स्थानीय मुर्गों का पालन भी किया। एक अन्य किसान ने देशी चावल की किस्मों को संरक्षित करने का कार्य किया है और वे इन चावलों से स्वास्थ्य मिश्रण, पफ राइस, चॉकलेट और प्रोटीन बार जैसी मूल्य-वर्धित उत्पाद बना रहे हैं।
इसके अलावा, एक अन्य किसान ने 15 एकड़ की प्राकृतिक खेती की और 3,000 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित किया है। वह हर महीने लगभग 30 टन सब्जियाँ भी उगाते हैं। वहीं, कुछ लोग एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) चला रहे हैं। इन प्रयासों को देख कर यह स्पष्ट है कि किसानों, विज्ञान, उद्यमिता और सामुदायिक कार्य की एक मजबूत साझेदारी भारत के कृषि क्षेत्र को नई दिशा दे सकती है।
श्री मोदी ने लिखा कि भारत सरकार ने पिछले साल "नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग" की शुरुआत की थी, जिसके तहत लाखों किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने का कार्य किया गया है। इसके अतिरिक्त, किसान क्रेडिट कार्ड और पीएम-किसान जैसी योजनाओं के माध्यम से प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को व्यापक वित्तीय सहायता मिल रही है। भारत में प्राकृतिक खेती की दिशा में विशेष प्रगति हो रही है, और अब महिलाएँ भी इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग ने मृदा की उर्वरता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, लेकिन प्राकृतिक खेती इन सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है। पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत और मल्चिंग जैसी पारंपरिक पद्धतियाँ मिट्टी के स्वास्थ्य को संरक्षित करती हैं और उत्पादन लागत को भी कम करती हैं।
उन्होंने लिखा कि किसानों को "एक एकड़, एक मौसम" के सिद्धांत को अपनाना चाहिए। यह देखा जा सकता है कि जब पारंपरिक ज्ञान, वैज्ञानिक प्रमाण और संस्थागत समर्थन एक साथ आते हैं, तो प्राकृतिक खेती को सफल और परिवर्तनकारी बनाया जा सकता है।
उन्होंने देशवासियों से अपील करते हुए कि वे प्राकृतिक खेती से जुड़ने के लिए एफपीओ से जुड़ने या इस क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू करने पर विचार करें। कोयंबटूर में किसानों, वैज्ञानिकों और उद्यमियों के बीच जो समन्वय देखने को मिला, वह न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भारतीय कृषि को एक स्थिर और उत्पादक भविष्य की ओर ले जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।