नयी दिल्ली.... केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने यहां कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 'सुविधा की नहीं, बल्कि संकल्प की राजनीति' करते थे।
श्री गडकरी ने अशोक टंडन लिखित पुस्तक 'अटल संस्मरण' के विमोचन के मौके पर ये विचार रखे। श्री टंडन श्री वाजपेयी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय में मीडिया सलाहकार थे। यह पुस्तक पूर्व प्रधानमंत्री की 100वीं जयंती के महीने में जारी की गई है।
श्री गडकरी ने कहा कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में इस पुस्तक की प्रासंगिकता बहुत अधिक है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री के साथ अपनी निजी बातचीत को याद करते हुए कहा कि स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास में बहुत कम ऐसे नेता थे, जो श्री वाजपेयी की बौद्धिक गहराई या साहित्य, कला और संस्कृति से उनके जुड़ाव का मुकाबला कर पाते थे।
श्री गडकरी ने कहा कि श्री वाजपेयी के लिए विकास सिर्फ भौतिकता में निहित नहीं था, बल्कि उससे अधिक था। उनका मानना था कि विकास में मानवीय विकास, धैर्य और सामाजिक संवेदनशीलता भी शामिल होनी चाहिए।
श्री वाजपेयी के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए श्री गडकरी ने कहा कि वे कम बोलते थे, लेकिन फैसले दृढ़ता से लेते थे। श्री गडकरी ने कहा, "उनका यह विश्वास था कि किसी भी समय यदि कोई आपसे मिलने आता है तो आपको मना नहीं करना चाहिए। श्री गडकरी ने कहा कि जिंदगी का यह सबक उन्होंने युवा पार्टी कार्यकर्ता के रूप में सीखा था और वह आज बतौर कैबिनेट मंत्री भी इसका पालन करते हैं।"
श्री गडकरी ने यह भी कहा कि वाजपेयी सत्ता-केंद्रित राजनीति को अस्वीकार करते थे और इसके बजाय विचारधारा, संकल्प और सामाजिक जिम्मेदारी पर आधारित राजनीति की वकालत करते थे। उन्होंने कहा कि वाजपेयी विवादों से नहीं डरते थे, लेकिन उनका मानना था कि यह आदर्शों की कीमत पर नहीं होना चाहिए।
उन्होंने श्री वाजपेयी को याद करते हुए कहा कि उनका मानना था कि शासन व्यक्ति नहीं, बल्कि संस्थाओं और विचारों में प्रतिनिधित्व होता है। श्री वाजपेयी का कहना था, "प्रधानमंत्री की कुर्सी कौन संभालता है, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण विचारों की विरासत होती है।"
श्री गडकरी ने श्री वाजपेयी की इस क्षमता के बारे में भी बताया कि बिना कटुता के वह असहमत हो सकते थे। वे तीव्र राजनीतिक मतभेदों के बीच भी सार्वजनिक जीवन में गरिमा बनाये रखने पर जोर देते थे। श्री गडकरी ने कहा, "उनका मानना था कि विरोध महत्वपूर्ण है, लेकिन चर्चा अनिवार्य है।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि लोकतंत्र में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन घृणा और व्यक्तिगत प्रतिशोध कभी नहीं होनी चाहिए।
पुस्तक विमोचन के मौके पर मौजूद इंडिया टीवी के एडिटर इन चीफ रजत शर्मा ने कहा कि वाजपेयी की सबसे विशेष खूबियों में से एक यह थी कि कब मौन रहना है, वह जानते थे। कविता और निजी बातचीत के जरिये उन्होंने वाजपेयी का वर्णन ऐसे नेता के रूप में किया, जो असहमति को कभी कटुता में नहीं बदलते थे और जिनके लिए संवाद हमेशा टकराव से ऊपर था।
श्री शर्मा ने श्री वाजपेयी की नैतिक शक्ति और उनकी राजनीति की स्थायी प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डाला। श्री वाजपेयी के साथ जुड़ी कहावतों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, "पूर्व प्रधानमंत्री अक्सर सवाल उठाते थे कि क्या सत्ता नेताओं को बेहतर इंसान बनाती है।"
श्री शर्मा ने कहा, "अटल जी हमें याद दिलाते थे कि राजनीति को लोगों को शुद्ध करना चाहिए, जंग नहीं लगाना चाहिए,"
रजत शर्मा ने राजनीतिक स्मृति को संरक्षित करने का महत्व भी रेखांकित किया और कहा कि ऐसी यादें आने वाली पीढ़ियों के मार्गदर्शन के लिए आवश्यक हैं, ताकि इतिहास को भुलाया न जा सके।