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ट्रंप-मोदी मुलाकात ने बढ़ाई चीन की कुंठा
ट्रंप-मोदी मुलाकात ने बढ़ाई चीन की कुंठा
प्रमोद भार्गव    29 Jun 2017       Email   

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की असाधारण मुलाकात से चीन लगभग बौखला गया है। उसकी इस बौखलाहट की आग में घी डालने का काम अमेरिका द्वारा आतंकवादी संगठन हिजबुल के प्रमुख सयैद सलाहुद्दीन को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की कार्यवाही ने भी किया है। लिहाजा चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में कहा है कि भारत अमेरिका से दोस्ती बढ़ाकर चीन की बराबरी न करे। अन्यथा इस कोशिश के विनाशकारी परिणाम भारत को भुगतने होंगे। दरअसल, चीन को भ्रम है कि इस प्रगाढ़ दोस्ती की पृष्ठभूमि में चीन का बढ़ता प्रभाव है, जो भारत और अमेरिका को कतई नहीं सुहा रहा है। लिहाजा इस प्रभाव को रोकने के लिए वाशिंगटन में इस दोस्ती को नया रंग दिया गया है। लेख में यह भी उल्लेख है कि भारत अपनी गुटनिरपेक्ष नीति का त्याग कर चीन से मुकाबले के लिए अमेरिका का मोहरा बनता जा रहा है। यह नई स्थिति दक्षिण एशियाई देशों के लिए नई दुविधा खड़ी कर सकती है। इसी का जबाव देने के लिए चीन ने कैलाश मानसरोवर यात्रा पर रोक लगाई हुई है और सिक्किम में अंतरराष्ट्रीय वास्तविक नियंत्रण रेखा लांघकर भारत के दो अस्थाई बंकर नष्ट कर दिए हैं।
कमोवेश चीन ने ऐसा ही रवैया तब अपनाया था, जब भारत में तैनात अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा ने अरुणाचल प्रदेश की यात्रा की थी। तब भी बुरे नतीजे भुगतने की धमकी भी दी थी। हालांकि इन धमकियों का भारतीय संप्रभुता के परिप्रेक्ष्य में कोई औचित्य नहीं है। लेकिन चीन ये एतराज इसलिए दर्ज कराता रहता है, जिससे दुनिया को यह एहसास होता रहे कि सिक्किम और अरुणाचल विवादित क्षेत्र हैं। इस परिप्रेक्ष्य में चीन इतना कुंठित हो गया है कि वह उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की मनःस्थिति में आ गया है। हकीकत तो यह है कि चीनी सेना की टुकड़ी ने सिक्किम में नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय डोका ला के लालटन क्षेत्र में घुसपैठ की और हमारी सेना के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों से हथापाई की। जबकि चीन ने भारतीय सेना पर आरोप लगाया है कि उसने चीनी सीमा में घुसपैठ की है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारत से अपील की है कि भारत सीमा पार करने वाले सैनिकों को तुरंत वापस बुलाए और इस मामले की जांच कराए। दूसरी तरफ  चीन ने नाथुला दर्रें के रास्ते से मानसरोवर जा रहे यत्रियों को अब तक क्यों रोके रखा है, इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। हां, यह बहाना जरूर गढ़ लिया है कि तिब्बत क्षेत्र में भूस्खलन की आशंका के चलते 350 श्रद्धालुओं को रोका गया है। यह मार्ग भारत और चीन के बीच 2015 में हुए द्विपक्षीय संधि के तहत खोला गया है। चीन की यह बौखलाहट चीन में संपन्न किए गए ओबीओआर शिखर सम्मेलन में भारत का बहिष्कार भी एक कारण है। एनएसजी के मुद्दे पर भारत और चीन की कड़वाहट पहले से ही बनी हुई है। अब चीन भारत की गुटनिरपेक्ष नीति पर सवाल उठा रहा है तो यह उसकी धूर्तता ही है। 
दरअसल, चीन का लोकतांत्रिक स्वांग उस सिंह की तरह है, जो गाय का मुखौटा ओढ़कर धूर्तता से दूसरे प्राणियों का शिकार करता है। इसका नतीजा है कि चीन 1962 में भारत पर आक्रमण करता है और पूर्वोत्तर सीमा में अक्साई चिन की 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प लेता है। बावजूद अरुणाचल की 90 हजार वर्ग किमी पर दावा जताता रहता है। कैलाश मानसरोवर जो भगवान शिव के आराध्य स्थल के नाम से हमारे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में दर्ज हैं, सभी ग्रंथों में इसे अखंड भारत का हिस्सा बताया गया है। लेकिन भगवान भोले भंडारी अब चीन के कब्जे में हैं। यही नहीं गूगल अर्थ से होड़ बरतते हुए चीन ने एक ऑनलाइन मानचित्र सेवा शुरू की है। जिसमें भारतीय भू-भाग अरुणाचल और अक्साई चिन को चीन ने अपने हिस्से में दर्शाया है। विश्व मानचित्र खंड में इसे चीनी भाषा मंदारिन में दर्शाते हुए अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताया गया है, जिस पर चीन का दावा पहले से ही बना हुआ है। वह अरुणाचलवासियों को चीनी नागरिक भी मानता है। यहां गौरतलब है कि साम्यवादी देशों की हड़प नीति के चलते ही छोटा सा देश चेकोस्लोवाकिया बरबाद हुआ। चीनी दखल के चलते बरबादी की इसी राह पर नेपाल और पाकिस्तान हैं। पाकिस्तान में भरपूर निवेश करके चीन ने मजबूत पैठ बना ली है। बांग्लादेश को भी वह बरगलाने में लगा है। ऐसा करके वह सार्क देशों के संगठन का सदस्य बनने की फिराक में है। ऐसा संभव हो जाता है तो उसका क्षेत्रीय दखल दक्षिण एशियाई देशों में और बढ़ जाएगा। इन कूटनीतिक चालों से इस क्षेत्र के छोटे-बड़े देशों में उसका निवेश और व्यापार तो बढ़ेगा ही सामरिक भूमिका भी बढ़ेगी। यह रणनीति वह भारत से मुकाबले के लिए भी रच रहा है। चीन की यह दोगली कूटनीति तमाम राजनीतिक मुद्दों पर साफ  दिखाई देती है। चीन बार-बार जो आक्रामकता दिखा रहा है, इसकी पृष्ठभूमि में उसकी बढ़ती ताकत और बेलगाम महत्वाकांक्षा है। यह भारत के लिए ही नहीं दुनिया के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। दुनिया जनती है कि भारत-चीन की सीमा विवादित है। सीमा विवाद सुलझाने में चीन की कोई रुचि नहीं हैं। वह केवल घुसपैठ करके अपनी सीमाओं के विस्तार की मंशा पाले हुए है। चीन भारत से इसलिए नाराज है, क्योंकि उसने जब तिब्बत पर कब्जा किया था, तब भारत ने तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बतियों को भारत में शरण दी थी। जबकि चीन की इच्छा है कि भारत दलाई लामा और तिब्बतियों द्वारा तिब्बत की आजादी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई की खिलाफत करे? दरअसल भारत ने तिब्बत को लेकर शिथिल व असंमजस की नीति अपनाई है। जब हमने तिब्बतियों को शरणर्थियों के रूप में जगह दे ही दी थी, तो तिब्बत को स्वतंत्र देश मानते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच पर समर्थन की घोषणा करने की जरुरत भी थी। डॉ. राममनोहर लोहिया ने संसद में इस आशय का बयान भी दिया था। लेकिन ढुलमुल नीति के कारण नेहरू ऐसा नहीं कर पाए। इसके दुष्परिणाम भारत आज भी झेल रहा है।
चीन कूटनीति के स्तर पर भारत को हर जगह मात दे रहा है। पाकिस्तान ने 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर का 5180 वर्ग किमी क्षेत्र चीन को भेंट कर दिया था। तब से चीन पाक का मददगार हो गया। चीन ने इस क्षेत्र में कुछ सालों के भीतर ही 80 अरब डॉलर का पूंजी निवेश किया है। चीन की पीओके में शुरू हुई गतिविधियां सामरिक दृष्टि से चीन के लिए हितकारी हैं। यहां से वह अरब सागर पहुंचने की जुगाड़ में जुट गया है। इसी क्षेत्र में चीन ने सीधे इस्लामाबाद पहंुचने के लिए काराकोरम सड़क मार्ग भी तैयार कर लिया है। इस दखल के बाद चीन ने पीओके क्षेत्र को पाकिस्तान का हिस्सा भी मानना शुरू कर दिया है। यही नहीं चीन ने भारत की सीमा पर हाइवे बनाने की राह में आखिरी बाधा भी पार कर ली है। चीन ने समुद्र तल से 3750 मीटर की ऊंचाई पर बर्फ  से ढके गैलोंग्ला पर्वत पर 33 किमी लंबी सुरंग बनाकर इस बाधा को दूर कर दिया है। यह सड़क सामरिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि तिब्बत में मोशुओ काउंटी भारत के अरुणाचल का अंतिम छोर है। अभी तक यहां कोई सड़क मार्ग नहीं था। अब चीन इस मार्ग की सुरक्षा के बहाने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को सिविल इंजीनियर के रूप में तैनात करने की कोशिश में है। मसलन वह गिलगित-बलूचिस्तान में सैनिक मौजदूगी के जरिए भारत पर एक और दवाब की रणनीति को अंजाम देने के प्रयास में है। हालांकि कूटनीतिक चाल चलते हुए नरेंद्र मोदी ने जबसे बलूचिस्तान का समर्थन किया है, तबसे बलूच के विद्रोही लिबरेशन आर्मी और चीन द्वारा पाकिस्तान में बनाए जा रहे आर्थिक गलियारे का मुखर विरोध शुरू हो गया है। 
यह ठीक है कि भारत और चीन की सभ्यता 5000 साल से भी ज्यादा पुरानी है। भारत ने संस्कृति के स्तर पर चीन को हमेशा नई सीख दी है। अब से करीब 2000 साल पहले बौद्ध धर्म भारत से ही चीन गया था। वहां पहले से कनफ्यूशियस धर्म था। दोनों को मिलाकर नव कनफ्यूशनवाद बना, जिसे चीन ने अंगीकार किया। लेकिन चीन भारत के प्रति लंबे समय से आंखे तरेरे हुए है। इसलिए भारत को भी आंख दिखाने के साथ कूटनीतिक परिवर्तन की जरूरत है। भारत को उन देशों से मधुर व सामरिक संबंध बनाने की जरूरत है, जिनसे चीन के तनावपूर्ण संबंध हैं। ऐसे देशों में अमेरिका, जापान, वियतमान और म्यांमार हैं। मोदी की ट्रंप से जो ताजा मुलाकात हुई है, उससे चीन असहज हुआ है और परिणामस्वरूप सिक्किम की सीमा पर घुसपैठ को अंजाम देने की हरकतें की हैं। 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)






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