आखिरकार लंबी जद्दोजहद और जटिल कागजी कोरम पूरा करने के बाद जीएसटी का इतिहास लिख दिया गया। रात ठीक बारह बजे पूरा देश टैक्स के एक नए युग में प्रवेश कर गया। इसे स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे बड़ा ‘कर सुधार’ कहा जा रहा, क्योंकि अब पूरे देश में वस्तुओं व सेवाओं पर एक ही तरह का टैक्स होगा और अंततः पूरे देश के सवा अरब लोगों को एकीकृत बाजार में बदल दिया गया। दावा है कि इससे जीडीपी में तकरीबन दो फीसदी का इजाफा होगा। मतलब साफ है भारत सरकार के मेक इन इंडिया व डिजिटल इंडिया के साथ तालमेल करता जीएसटी नए बदलाव का सकारात्मक संकेत है। जीएसटी वस्तुओं और सेवाओं के बीच टैक्स क्रेडिट की सुगमता सुनिश्चित करता है। इससे पहले एक्साइज, सेल्स टैक्स विभाग, वैट अधिकारियों और अन्य विभागों के बीच फाइलों की धीमी गति और अधिकारों की बंधन की वजह से सामंजस्य में कमी का खामियाजा पूरा देश भुगत रहा था। अब इससे छुटकारा मिलेगा। इसका फायदा ट्रेडर भी उठाते थे और टैक्स की चोरी बिल्कुल आम बात थी। जीएसटी की वजह से ऑनलाइन टैक्स फाइलिंग, गुड्स और सविर्सेज के सप्लाई के ऑनलाइन अपडेट्स बनने के कारण वस्तु के निर्माण से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचने की हर जानकारी के सबके पास सुलभ रहेगी।
ऐसे में जरूरी है कि उपभोक्ता या यूं कहें ग्राहक भी थोड़ा सजग रहे। कुछ भी खरीदें तो देखें कि उत्पाद या सेवा पर सही जीएसटी लगा है या नहीं। रसीद में जीएसटी नंबर है या नहीं। यदि नहीं है तो समझिए कुछ न कुछ गड़बड़ है। क्योंकि इसी से तय होगा कि कारोबारी ने इनपुट क्रेडिट का लाभ देते हुए उचित टैक्स लिया है। यदि किसी की रोज की बिक्री 5500 से 6000 रुपए हो और वह जीएसटी में रजिस्टर्ड नहीं तो सूचना एंटी प्राफिटियरिंग अथॉरिटी को दें। माना किसी उत्पाद पर पहले सभी तरह के टैक्स और उपकर मिलाकर कुल 22 प्रतिशत लगता था, लेकिन अब यदि उस पर 12 प्रतिशत जीएसटी है तो ऐसे में दुकानदार 10 प्रतिशत का अंतर ग्राहक को नहीं देगा तो यह मुनाफाखोरी है। ग्राहक को इन्हीं छोटी-छोटी बातों पर जागरूक होना होगा। क्योंकि ग्राहकों की जागरूकता के वजह से ही कारोबारी टैक्स की चोरी नहीं कर पाएंगे। कहा जा सकता है जीएसटी के चलते देश के कारोबार में काली कमाई करने वाले व्यापारियों के दिन लद गए। क्योंकि देश में काले कारोबार बंद करने की शुरुआत हो चुकी है। यह अलग बात है कि 17 से अधिक टैक्सों की समाप्ति के बाद अब सरकार के पास जीएसटी के अंदर आने वाले सभी सेवाओं और वस्तुओं के सप्लाई और प्राइसिंग पर नजर रखने की अभूतपूर्व शक्तियां मिलेगी। पकड़े जाने पर टैक्स चोरी के आरोप में पांच साल की सजा का भी प्रावधान है। यानी जीएसटी लागू होने से अब न सिर्फ देश का टैक्स ढांचा बदल गया, बल्कि बिजनेस करने के ढंग में भी बड़े बदलाव आ जाएंगे। ऐसे में व्यापारियों को भी अपनी कुछ आदतों में सुधार लाना होगा। दरअसल, जीएसटी में धांधली की गुंजाइश कम होने और सबकुछ ऑनलाइन होने के चलते व्यापारियों को अपनी इस आदतों की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। जीएसटी मॉडल ड्राफ्ट में कम से कम 10 हजार की पेनाल्टी से लेकर पांच साल तक की जेल तक की सजा संभव है। अधूरा टैक्स भरने पर 10 हजार की पेनाल्टी या टैक्स डेफिसेट यानी बचा टैक्स का 10 फीसदी जुर्माना हो सकता है। जिस काम पर पहले से पेनाल्टी तय नहीं है, उस पर 25 हजार जुर्माने का प्रावधान है। लिहाजा, अब देखना ये है कि कितनी जल्दी देश में काले कारोबार को बंद किया जा सकेगा और सभी कारोबारियों को टैक्स के दायरे में लाया जाएगा। यदि 2.5 करोड़ या उससे ज्यादा की टैक्स चोर कर रहे हैं तो 5 साल की जेल और जुर्माना तक भरना पड़ सकता है। हालांकि जेल की सजा मुकदमा चलाए जाने के बाद ही हो सकती है।
भारत में लागू जीएसटी के प्रावधान की सबसे खास बात यह है कि यहां कारोबार का डिजिटलाइजेशन किया जा रहा है। इसे प्रभावी ढंग से करने के लिए जीएसटी में टैक्स क्रेडिट व्यवस्था बनाई गई है। इसके तहत कारोबारी को अपने प्रोडक्ट अथवा सेवा के इनवॉयस को प्रति माह जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करना होगा। इस इनवॉयस को कारोबारियों के सप्लायर और वेंडर के आंकड़ों से मिलाने का काम जीएसटी नेटवर्क में लगा सॉफ्टवेयर करेगा। और यह मिलान सही पाए जाने पर कारोबारी को टैक्स क्रेडिट का फायदा मिलेगा। इस नियम के चलते देश में कारोबारियों को काले कारोबार से बाहर निकलने के लिए सिर्फ रजिस्टर्ड सप्लायर और वेंडर का सहारा लेना होगा। ये सप्लायर और वेंडर भी रजिस्टर्ड होने के साथ ही 20 लाख रुपए के टर्नओवर से अधिक होने पर जीएसटी के दायरे में होंगे। वहीं कारोबारियों को टैक्स क्रेडिट का फायदा लेने के लिए सिर्फ और सिर्फ रजिस्टर्ड सप्लायर और वेंडर के साथ काम करने की मजबूरी होगी नहीं तो उनके सामने ग्राहक गंवाने की चुनौती बनी रहेगी।
दरअसल, संसद में जीएसटी लांच के वक्त बताया गया कि देश में महज 85 लाख कारोबारी टैक्स अदा करते हैं। यानी 125 करोड़ की आबादी वाले इस देश में एक फीसदी से भी कम लोग कारोबार पर टैक्स देते हैं। ऐसा इसलिए कि भारत एक ऐसा देश है, जहां लोग टैक्स बचाने, छिपाने और चुराने के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं। देश में टैक्स चोरी और काले कारोबार के चलते अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की सॉवरेन रेटिंग बेहद कम है। इसके चलते विदेशी निवेशक जहां भारत का रुख करने से कतराते हैं, वहीं मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों को बड़े निवेश का इंतजार रहता है। गौरतलब है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसिया दुनियाभर के देशों की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति के आधार पर उसे क्रेडिट रेटिंग देती हैं। वैश्विक निवेशक इस रेटिंग के आधार पर अपना निवेश किसी देश में करने के लिए तैयार होते हैं। 2017 के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और अच्छे निवेश ठिकानों की सूची में भारत की स्थिति यह चार्ट बयान करती है।
जीएसटी कानून के मुताबिक, व्यापारियों को हर महीने रिटर्न भरना है, वो भी एक निश्चित तारीख पर। साथ ही कंज्यूमर्स से जो जीएसटी कलेक्ट किया है, उसे भी टाइम पर सरकार को देना होगा। इस मामले में लेटलतीफी नहीं चलेगी। जीएसटी कानून के तहत यह एक अपराध है। ऐसे में टैक्स अधिकारी नोटिस भेज सकते हैं। कानूनी कार्रवाई भी मुमकिन है। जीएसटी के तहत हर खरीद और ब्रिक्री का रिकार्ड रखना बेहद जरूरी है। अगर हिसाब-किताब रखने का आदत नहीं है तो इसे सुधार लें। हिसाब-किताब नहीं होने से आपका रिटर्न अधूरा रहेगा। सबकुछ ऑनलाइन और रिकॉर्ड में होने के चलते किसी न किसी प्वाइंट पर आप पकड़ में आ जाएंगे। इसके चलते आप पर टैक्स चोरी का आरोप लग सकता है। जीएसटी के तहत बिजनेस करने वाले हर व्यक्ति को खरीद-बिक्री का हर एक एन्वॉइस संभालकर रखना जरूरी है। इतना ही नहीं अगर आप एन्वाइस में छेड़छाड़ करते हैं, टैक्स ऑफिशियल्स को गलत जानकारी देते हैं, टैक्स भरने में गड़बड़ी करते हैं, सप्लाई या ट्रांसपोर्ट के लिए गैरकानूनी तरीके अपनाते हैं तो भी आपको जेल जाना पड़ सकता है। यदि आप 25 से 50 लाख तक की टैक्स चोरी कर रहे हैं तो आपको एक साल की जेल और जुर्माना हो सकता है। वहीं, 50 लाख से 2.5 करोड़ की टैक्स चोरी पर आपको तीन साल की जेल और जुर्माना दोनों हो सकता है।
फिलहाल, कुछ लोग जीएसटी के विरोध में हैं, वह इसे काला कानून की संज्ञा दे रहे हैं। लेकिन वह नहीं जानते हैं कि बड़ा बदलाव हमेशा पीड़ादायक होता है और अगर यह देशव्यापी है तो तकलीफ और भी बढ़ जाती है। देश में वस्तु और सेवा कर यानी जीएसटी ऐसा ही व्यापक कर बदलाव है। जीएसटी आजादी के बाद का सबसे अहम आर्थिक सुधार है। इससे कर व्यवस्था दुरुस्त होगी, पारदर्शिता बढ़ेगी। इसमें कोई शक नहीं है कि बदलाव इतने व्यापक हैं कि उन्हें लागू करना कष्टकारी साबित होगा। लेकिन, बाद में धीरे-धीरे हालात सामान्य हो जाएंगे। इससे पूरे देश में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें लगभग एक हो जाएंगी, कुछ अपवादों को छोड़ कर। मैनूफैक्चरिंग लागत घटेगी, जिससे उपभोक्ताओं के लिए सामान सस्ते होंगे। कहा जा सकता है, नई व्यवस्था से अर्थव्यवस्था को भारी फायदा होगा, जो उपभोक्ता राज्य हैं, उन्हें ज्यादा फायदा होगा।