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इजरायल से रिश्तों की कुछ अनजानी कुछ अनकही
इजरायल से रिश्तों की कुछ अनजानी कुछ अनकही
के. विक्रम राव    10 Jul 2017       Email   

भारत के प्रधानमंत्री ने खुल्लम-खुल्ला इजरायल की यात्रा की। ऐसा संभव हुआ चार दशकों बाद। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इजरायल के विदेश मंत्री मोशे दयान से नई दिल्ली में लुके-छिपे रात के अंधेरे में मिले थे। मोरारजी देसाई ने तो कहा भी था कि यदि यह मुलाकात सार्वजनिक हो जाए तो उनकी जनता पार्टी की सरकार गिर जाती। इतनी नफरत थी इजरायल के लिए। चुनावी दबाव भी था। बात अगस्त 1977 की है। इजरायल के विदेश मंत्री मोशे दयान दिल्ली आए थे, छद्म वेष में। उनकी मशहूर कानी आंख, जो सदा ढकी रहती थी, पट्टी से आवृत्त थी और निजी पहचान बन गई थी। मतलब यही कि कोई उन्हें पहचान तक नहीं सकता था। रात में मोशे दयान की अटल बिहारी वाजपेयी से गुप्त स्थान पर भेंट हुई। मोरारजी देसाई से भी मोशे दयान अनजानी जगह वार्ता हेतु मिले। पर जनता पार्टी के इस प्रधानमंत्री के कड़े निर्देश थे कि मोशे दयान से भेंट की बात पूरी तरह से रहस्य रहे। संपादक एमजे अकबर ने इस गोपनीय घटना को खूब प्रचारित किया। आज वे विदेश राज्य मंत्री हैं। यानी ऐसी दशा, बल्कि दुर्दशा थी भारत-इजरायल के संबंधों की। यहूदी सरकार से इतना आतंक, वह भी (उस समय के) हिंदूवादी अटल बिहारी वाजपेयी की हिचकिचाहट, जो विगत कई वर्षों से संसद में विपक्ष के सदस्य के नाते इजरायल के प्रतिबद्ध पक्षधर रहे थे।
गौर कीजिए इतना जबरदस्त दबाव था अरब शेखों का, भारत के मुस्लिम वोटरों का। हालांकि 1962 में जवाहरलाल नेहरू को चीन के आक्रमण पर, 1965 में लाल बहादुर शास्त्री को मार्शल मोहम्मद अयूब खां द्वारा हमले पर और 1971 में इंदिरा गांधी को बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष पर इजरायली सैन्य उपकरण भारतीय सेना को दिए गए थे। फिर भी इजरायल को बल्लियों दूर रखना कांग्रेसी प्रधान प्रधानमंत्रियों की कृतघ्नता थी। हिंदूवादी अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनकर उसी लीक पर चले। मगर उनके पहले थोड़ा बदलाव लाए थे पीवी नरसिम्हा राव (1992 में), जब इजरायली दूत को मुंबई में कार्यालय के लिए ठौर किराए पर दिया था।
इसी परिवेश में जरा परखें नरेंद्र दामोदर दास मोदी को। मोदी खुल्लम-खुल्ला, डंका बजाकर इजरायल गए। बाकी जो कुछ कहा, लिखा और लिया-दिया हो, मगर मोदी ने येरूशलम के होटल के झरोखे से अल कुद्दस तीर्थकेंद्र देख ही लिया। यह मुसलमानों के लिए पवित्र कैलाश सरीखा, यहूदियों के लिए अमरनाथ सरीखा, ईसाइयों के लिए केदारनाथ सरीखा है, लेकिन है यह विवादित धर्मस्थल जैसे काशी, अयोध्या और मथुरा इत्यादि।
नरसिंह राव के अलावा मोदी ही भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने इस शामी नस्लवाले यहूदी राष्ट्र से आत्मीयता दर्शाई। दुनिया में अलग-थलग पड़े इस रेतीले, पथरीले इलाके को चमन बनानेवालों में भारत से गए अस्सी हजार यहूदी हैं, जो केरल, गुजराल, महाराष्ट्र के थे। अब एशिया के दो गणराज्यों के इन प्रधानमंत्रियों की बाडी लैंग्वेज का अर्थ निकालें, संकेतों की व्याख्या देखें। दोनों के कुशल क्षेम जानने और आदाब अर्ज की शैली से स्पष्ट है कि विश्व के किसी भी राष्ट्राध्यक्षों ने आज तक चालीस मिनट में तीन बार परिरंभण नहीं किया होगा। दो दिनों के प्रवास में जब भी मिले तो मोदी उनसे होली वाला आलिंगन करते रहे। नरेंद्र मोदी और नेतनयाहू ने बेनगुरियन विमान स्थल पर स्नेह की ऐसी ही प्रगाढ़ता पेश की। समूचा काबीना मंत्रालय छोड़कर एयर इंडिया के विमान की बाट जोहे? अद्भुत है। राष्ट्रपति रेवेलिन से किसी ने पूछा कि सारे नियमों को तोड़कर पूरा काबीना विमानपत्तनम पर मोदी के स्वागत में खड़ा है तो उन्होंने कहा- शिष्टता महज एक औपचारिक रीति है। दोस्तों से औपचारिकता कैसी? मोदी मित्र हैं। मोदी का श्लोम का उच्चारण करना, जिसके हिब्रू भाषा में अर्थ है शुभम और भारत में सलाम। श्लेषालंकार का मोदी ने नमूना पेश किया यह कहकर कि ई माने इंडिया और ई माने इजरायल। नेतनयाहू ने कह भी दिया कि भारत तथा इजरायल के ये दोनों व्यक्ति विश्व का जुगराफिया बदल सकते हैं। यह गठजोड़ जन्नत में रचा गया है। हिब्रू में नेतनयाहू का अर्थ है, जबरदस्त जीत। और संस्कृत में पुरुषों में श्रेष्ठ को नरेंद्र कहा जाता है। आगे क्या होगा, यह संकेत बताएंगे। एक बड़ी गूढ़ उक्ति थी नेतनयाहू की। वे बोले कि वर्षों पूर्व शादी तय करने अपनी प्रेयसी को लेकर एक भारतीय (कश्मीरी) रेस्त्रां में गए थे। परिणामस्वरूप उनकी दो सुंदर संताने हुईं। मोदी का स्वागत करने के लिए फिर उसी भारतीय भोजनालय से इजरायली प्रधानमंत्री ने खाना मंगवाकर खाया और मोदी को खिलाया था। इस बार क्या जन्मेगा? देखना बाकी है। मोदी की यहूदी देश की गर्मजोशीवाली यात्रा अरब देशों में सनसनी पैदा कर चुकी है। मगर मोदी भी जानते हैं कि कश्मीर को ये अरब देश पाकिस्तान का हिस्सा मानते हैं। जब भारत का ब्रिटिश विभाजन कर रहे थे तो इन मुस्लिम राष्ट्रों ने जिन्ना की पाकिस्तान वाली मांग का पुरजोर समर्थन किया था। मगर उन्हीं ब्रिटिश ने जब फिलीस्तीन का बंटवारा कर इजरायल बनाया तो ये अरब विद्रोह कर बैठे और उसे इस्लाम पर हमला करार दिया। इन देशों का एक संगठन है आर्गेनाइजेशन ऑफ  इस्लामी कंट्रीज, जिसने हमेशा पाकिस्तान को भाई माना और भारत से दूरी रखी। इसका सम्मेलन एक बार मोरक्को की राजधानी रब्बात में हुआ था। भारत आमंत्रित नहीं था। फिर भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फखरुद्दीन अली अहमद को भेजा। वहां निहायत बेअदबी से इस भारतीय मुसलमान से ये सब अरब  पेश आए। जब अहमद ने सुबह गरम पानी मांगा कि दाढ़ी बना सकें, तो जवाब मिला, सच्चा मुसलमान दाढ़ी रखता है। गरम पानी नहीं दिया गया। 
ये सारे मुस्लिम देश इजरायल के शत्रु हैं। कुछ चीन के भी। अतः मोदी की यात्रा से एक लाभ तो मिला कि हमारे शत्रु (पाकिस्तान और चीन) के शत्रु हमारे मित्र होंगे। इजरायल से रिश्तों का इसलिए भी महत्व है। इजरायल का राष्ट्रध्वज सफेद पर नीली धारियों वाला है। इसे स्टार ऑफ  डेविड कहते है। दो त्रिकोण है। ये सनातन धर्म में षटकोण है। यशोदानंद कृष्ण का प्रतीक है। ब्रहम संहिता में इसका उल्लेख है। इसके अर्थ में प्रत्येक कोण एक सूचक है। पहला है विचार, फिर शब्द, क्रिया, स्वभाव, चरित्र और नियति। सूत्र है, लोका समस्ता सुखिनो भवन्तु। इसमें विश्व कल्याण की भावना निहित है। पांच हजार वर्ष पुराने इस नीले स्टार ऑफ  डेविड पताका ने चांद सितारे वाले हरे परचम से सदियों से टक्कर ली है। आज भी भिड़ा पड़ा है। मोदी ने इसमे तड़का छौंका, जब अपने घवल सूट की जेब से नीला रुमाल झलकाया। हम एक हैं, वाली भावना। आखिर इन दोनों प्राचीन राष्ट्रों की संस्कृति भी पांच हजार वर्षों पुरानी है। 
अब विदेश नीति की बाबत। राष्ट्रभक्ति ही उसका आधार होता है। मजहब या कबीला नहीं। जो मुसलमान मोदी की यहूदियों से यारी के आलोचक हैं, उन्हें स्मरण कराना पड़ेगा। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इजरायली और भारतीय गुप्तचर एजेंसियों से संयुक्त कार्यवाही और सहयोग को प्रोत्साहित किया था। भारतीय संस्था ‘रा’ से कहीं अधिक दुरूह तथा दुर्दांत इसराइल का मोसाद है। यह सर्वविदित है कि इसके प्रमुख नाहुम एडमोनी की 1970 से नई दिल्ली में इंदिरा गांधी के उच्चतम गुप्तचर मुखिया आरएन काओ से करीबी थी। मोसाद के अन्य प्रमुख शब्ताई शामित और एप्रहेम हालेबी की राजीव गांधी तथा विश्वनाथ प्रताप सिंह से कई गोपनीय मुलाकातें होती थीं। ये दोंनों प्रधानमंत्री लोग भारतीय मुसलमानों के अत्यंत चहेते रहनुमा थे। इस्लामी जम्हुरियाये पाकिस्तान के विदेश मंत्री मियां खुर्शीद कसूरी ने 6 सितंबर, 2005 को एलानिया तौर पर बताया था कि पाकिस्तान और इजरायल के गुप्त ताल्लुकात गत एक दशक से चल रहे हैं। अब क्या और प्रमाण चाहिए कि मुस्लिम राष्ट्र भी यहूदी इजरायल से सौदेबाजी करते रहे।






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