नयी दिल्ली.... भारत ने हिंद महासागर के नीचे कार्ल्सबर्ग घाट क्षेत्र के 10 हजार वर्ग किलो मीटर के हिस्से में खनिजों के अन्वेषण का अधिकार हासिल किया है जिससे गहरे समुद्र के नीचे खनिजों के अन्वेषण और निकासी के क्षेत्र में भारत के प्रयासों को बल मिला है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) और अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (आईएसए) के बीच एक नए 15-वर्षीय अनुबंध पर हस्ताक्षर की शुक्रवार को जानकारी दी। इसके तहत भारत को कार्ल्सबर्ग घाट क्षेत्र के उस 10 हजार वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में पॉलीमेटेलिक सल्फाइड (पीएमएस) के अन्वेषण का विशिष्ट अधिकार होगा।
पॉलीमेटेलिक सल्फाइड में लोहा, तांबा, जस्ता, चांदी, सोना और प्लैटिनम जैसी मूल्यवान धातुएँ होती हैं। पीएमएस समुद्र तल की कठोर परत से निकलने वाले गर्म जलतापीय तरल पदार्थों द्वारा निर्मित एक प्रकार के अवक्षेप होते हैं। इनकी रणनीतिक और व्यावसायिक क्षमता ने देशों का ध्यान आकर्षित किया है। अफ्रीकी महाद्वीप और भारत के बीच हिंद महासागर से लेकर अरब सागर तक समुद्र के नीचे तीन लाख वर्ग किलो मीटर क्षेत में फैला कार्ल्सबर्ग घाट क्षेत्र पॉलीमेटेलिक सल्फाइड (पीएमएस) खनिज की संभावनाओं वाला क्षेत्र है।
इस तरह भारत आईएएस के साथ दो पीएमएस अन्वेषण अनुबंध प्राप्त करने वाला पहला देश बना गया है और देश को एक अग्रणी निवेशक के रूप में मान्यता मिली है। यह कामयाबी मोदी सरकार की गहरे समुद्र में खनिजों के अन्वेषण और उत्खनन , खनन प्रौद्योगिकी विकास और भारत की 'नीली अर्थव्यवस्था पहल' को सुदृढ़ करने की नीति के अनुरूप है।
पृथ्वी मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार यह आईएसए के साथ भारत की 30 वर्षों की साझेदारी की पुष्टि है और भारत; गोवा में आईएसए के साथ अनुबंध करने वाले पक्षों के आठवें वार्षिक सम्मेलन की मेजबानी करेगा।
डॉ. सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए गहरे समुद्री मिशन के सपने को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो समुद्र तल खनिज अन्वेषण, खनन प्रौद्योगिकी विकास और भारत की 'ब्लू इकोनॉमी पहल' को मजबूत करने पर केंद्रित है।
उन्होंने कहा, "कार्ल्सबर्ग घाट में पीएमएस अन्वेषण के अनन्य अधिकारों को औपचारिक रूप देकर, भारत ने गहरे समुद्र में अनुसंधान और अन्वेषण में अपनी अग्रणी स्थिति को और मज़बूत किया है। इससे हमारी समुद्री उपस्थिति बढ़ेगी और भविष्य में संसाधनों के उपयोग के लिए राष्ट्रीय क्षमता का निर्माण होगा।"