भुवनेश्वर.... केन्द्रीय कपड़ा सचिव नीलम शमी राव ने कपड़ा क्षेत्र में दस्तकारों की उत्पादकता बढ़ाने और कठिन परिश्रम की आवश्यकता कम करने के लिए पारंपरिक हस्त-कौशल के साथ आधुनिक उपकरणों के साथ संतुलित प्रयोग की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (निफ्ट) और भारतीय हथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएचटी) जैसी एजेंसियों से खरीद सीजन से पहले बाजार में डिजाइन और रंग के नये रुझानों का पूर्वानुमान लगा कर उद्योग को लोकप्रिय उत्पाद तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह किया है। श्रीमती राव शनिवार को यहां हथकरघा और हस्तशिल्प पर राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित कर रही थीं।
यह सम्मेलन केंद्र और ओडिशा सरकार के सहयोग से आयोजित किया गया था। दो दिन के इस सम्मेलन में कारीगरों और बुनकरों के लिए परंपरा और तकनीक के बीच संतुलन बनाते हुए और विकसित भारत के उद्देश्यों के साथ तालमेल बिठाते हुए एक समेकित, समावेशी और नवाचार-संचालित पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की साझा राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की पुष्टि की गयी।
कपड़ा सचिव ने अंतर-राज्यीय समन्वय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, हस्तशिल्प क्षेत्र में कुशल आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करने के लिए राज्यों में कच्चे माल की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित किये जाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, "हमें उसी पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करनी चाहिए जिसका हम पोषण कर रहे हैं। चाहे हम इसे हथकरघा कहें या हस्तशिल्प, इसे हमारी अर्थव्यवस्था के किसी एक कोने के हिस्से के रूप में नहीं बल्कि के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए- यह वास्तव में भविष्य का प्रीमियम उत्पाद है।"
उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच निरंतर संवाद सुनिश्चित करने, सर्वोत्तम प्रथाओं के पारस्परिक ज्ञान को सुगम बनाने और हथकरघा एवं हस्तशिल्प क्षेत्रों में की गई पहलों की प्रगति की समीक्षा के लिए हर छह-छह महीने में ऐसे सम्मेलन आयोजित किए जाएँगे। उन्होंने दोहराया कि विकसित भारत के लक्ष्यों के अनुरूप एक मजबूत, समावेशी और नवाचार-संचालित हस्तशिल्प अर्थव्यवस्था के साझा दृष्टिकोण को सफल करने के लिए निरंतर समन्वय और आवधिक समीक्षा आवश्यक है।
ओडिशा सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं विकास आयुक्त श्रीमती अनु गर्ग ने हथकरघा के सांस्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्य पर ज़ोर दिया और कोटपाड़ और डोंगरिया शॉल को टिकाऊ उदाहरण बताया। उन्होंने कारीगरों की अधिक पहचान (उत्पादों पर नाम-टैगिंग सहित), बाज़ार अनुसंधान और उत्पाद डिज़ाइन में युवा-उन्मुख प्रशिक्षण का आह्वान किया, और एक स्थिरता प्रकोष्ठ और कत्था सिल्क जैसे पर्यावरण-अनुकूल वस्त्रों को बढ़ावा देने की योजना की घोषणा की।
इस सम्मेलन में विकास आयुक्त (हथकरघा) डॉ. एम. बीना ने राष्ट्रीय पारंपरिक वस्त्र मिशन (2026-31) का खाका प्रस्तुत किया। इसमें सहकारी संघवाद, कौशल और डिज़ाइन उन्नयन, महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास, क्लस्टर अवसंरचना, कारीगरों के लिए सार्वभौमिक वित्तीय सहायता और जीआई-लिंक्ड ब्रांडिंग के लिए नवाचार केंद्रों पर ज़ोर दिया गया है।
विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) अमृत राज ने मिशन के तहत शासन सुधारों की रूपरेखा प्रस्तुत की और मजबूत डिजिटल शासन और प्रभाव निगरानी के साथ विकेंद्रीकृत, परिणाम-आधारित कार्यान्वयन के लिए एक त्रि-स्तरीय राष्ट्रीय-राज्य-ज़िला मॉडल का प्रस्ताव रखा।
सम्मेलन का उद्घाटन शुक्रवार को ओडिशा के मुख्य सचिव मनोज आहूजा ने किया था। इस सम्मेलन के साथ-साथ, ओडिशा की समृद्ध हथकरघा और हस्तशिल्प विरासत को प्रदर्शित करने वाला एक मंडप भी तैयार किया गया।