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यौन उत्पीड़न अधिनियम के क्रियान्वयन को मजबूत बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
यौन उत्पीड़न अधिनियम के क्रियान्वयन को मजबूत बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
एजेंसी    03 Dec 2024       Email   

नयी दिल्ली,....उच्चतम न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाए गये महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम, संरक्षण और निवारण) अधिनियम-2013 को पूरे देश में एक समान रूप से लागू करने में चुनौतियों के मद्देनजर इस कानून को मजबूत बनाने के लिए मंगलवार को कई दिशानिर्देश जारी किये।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को अधिनियम के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए हर जिले में जिला अधिकारियों की नियुक्ति सुनिश्चित किये जाने के निर्देश दिये हैं। धारा पांच के प्रावधानों के तहत इन अधिकारियों को आंतरिक शिकायत समितियों के बिना जिलों में कार्यस्थल उत्पीड़न की शिकायतों को दूर करने के लिए धारा छह में निर्धारित स्थानीय समितियों का गठन करना आवश्यक है।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इन समितियों और अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि जिला अधिकारियों को शिकायत प्रबंधन की सुविधा और स्थानीय समितियों को सीधे प्रस्तुतियाँ देने के लिए प्रत्येक तालुका या क्षेत्र में नोडल अधिकारी भी नियुक्त करने चाहिए। उन्होंने कहा कि इन प्रावधानों को उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू करने की सख्त जरुरत है, जहाँ इन्हें अभी तक लागू नहीं किया गया है।

शीर्ष न्यायालय ने पारदर्शिता और पहुंच की आवश्यकता पर जोर देते हुए निर्देश दिया कि नोडल अधिकारियों के नाम सार्वजनिक रूप से ‘शीबॉक्स’ पोर्टल पर उपलब्ध होने चाहिए, जो यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने के लिए एक केंद्रीकृत ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म है।

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने शिकायतकर्ताओं की सहायता के लिए अपने मौजूदा तंत्रों के बारे में न्यायालय को सूचित किया। इनमें एक हेल्पलाइन-15100 शामिल है जो सीधे जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों से संबंद्ध है तथा शिकायतों के संदर्भ में ऑनलाइन विधिक सेवा प्रबंधन प्रणाली और विधिक सेवा क्लीनिक और पैरा-लीगल स्वयंसेवकों के माध्यम से सहायता प्रदान करती है।प्राधिकरण के वकील ने हालांकि स्वीकार किया कि इन तंत्रों की प्रभावशीलता पर व्यापक डेटा अभी तक उपलब्ध नहीं है।

सुनवाई के दौरान ‘शीबॉक्स’ पोर्टल पर पंजीकृत निजी क्षेत्र के संगठनों की कमी के बारे में चिंताएं जाहिर की गयी।

एमिकस क्यूरी ने तर्क दिया कि यह चूक शिकायतों के लिए वन-स्टॉप समाधान के रूप में मंच की प्रभावशीलता को कम करती है।

शीर्ष न्यायालय ने इस पर सहमति व्यक्त की और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम, संरक्षण और निवारण) अधिनियम-2013 अधिनियम के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में कार्यस्थलों का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने स्वीकार किया कि ‘शीबॉक्स’ पोर्टल चालू होने के बावजूद निजी क्षेत्र के हितधारकों को एकीकृत करने के प्रयास अपर्याप्त रहे हैं। उन्होंने इस मुद्दे को हल करने के लिए निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा आयोजित करने का प्रस्ताव रखा।

शीर्ष न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण कदम के तहत मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उपायुक्त या जिला मजिस्ट्रेट उन कार्यस्थलों की पहचान करने के लिए सर्वेक्षण करें, जिन्होंने अभी तक आंतरिक शिकायत समितियों का गठन नहीं किया है। ऐसे संगठनों को अधिनियम की धारा चार का अनुपालन करने का निर्देश दिया जायेगा और ऐसा न किये जाने पर धारा 26 के तहत दंडित किया जायेगा।

शीर्ष न्यायालय ने यह भी निर्देश दिये कि जिला अधिकारी श्रम विभाग या महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से ‘शीबॉक्स’ पोर्टल पर आंतरिक शिकायत समितयों और स्थानीय समितियों का विवरण अपलोड करें।

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने तथा पीड़ित महिलाओं को निवारण की मांग करने के लिए सुलभ तंत्र प्रदान करने के लिए ये उपाय आवश्यक हैं और इन निर्देशों का उद्देश्य निर्बाध शिकायत प्रबंधन एवं समाधान की सुविधा प्रदान करना है।

पीठ ने पूरे भारत में महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और अधिक न्यायसंगत कार्यस्थल वातावरण सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जतायी।






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