नयी दिल्ली.... उच्चतम न्यायालय ने 770 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में एसआरएस ग्रुप के अध्यक्ष अनिल जिंदल की जमानत याचिका को बुधवार को मंजूरी दे दी।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि जिंदल पहले ही साढ़े छह साल जेल में बिता चुके हैं और मामले में अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है। अपराध की गंभीरता को स्वीकार करते हुए पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि बिना सुनवाई के लंबे समय तक का कारावास जमानत के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। पीठ ने टिप्पणी की कि अगर जिंदल को दोषी ठहराया भी जाता है, तो कंपनी अधिनियम की धारा 447 के तहत अधिकतम सजा 10 साल है।
शीर्ष न्यायालय ने जमानत मंजूरी के लिए पासपोर्ट जमा करना, एसएफआईओ के साथ अपने संपर्क विवरण साझा करना और निचली अदालत को सभी अचल संपत्तियों और बैंक खातों का खुलासा करने जैसी सख्त शर्तें शामिल है। इसके अलावा जिंदल को अपने किसी भी नये बैंक खाते की जानकारी निचली अदालत को देनी होगी और अपनी संपत्तियां बेचने से बचना होगा।
शीर्ष न्यायालय ने कथित धोखाधड़ी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा , “जमानत नियम है, जेल नहीं, लेकिन 770 करोड़ रुपये की ठगी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
एसआरएस समूह के खिलाफ वित्तीय दस्तावेजों में हेराफेरी, झूठे प्रतिनिधित्व के माध्यम से ऋण प्राप्ति और अपने कथित इरादे से संबंधित उद्देश्यों के लिए धन का दुरुपयोग किये जाने के आरोप हैं। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने अप्रैल 2024 में जिंदल की जमानत रद्द कर दी थी। एसएफआईओ की जांच में जिंदल पर सोना, आभूषण, कमोडिटी और रियल एस्टेट सहित विभिन्न क्षेत्रों में धोखाधड़ी की गतिविधियों को अंजाम देने का आरोप है।