नयी दिल्ली... उच्च्तम न्यायालय ने बुधवार को वकील और कार्यकर्ता सुरेंद्र गाडलिंग की वर्ष 2016 के सूरजगढ़ आगजनी मामले से संबंधित जमानत याचिका पर स्थगन मांगने के लिए महाराष्ट्र सरकार की आलोचना की।
राज्य सरकार ने कुछ दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लंबित होने का हवाला देते हुए स्थगन का अनुरोध किया है।
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की खंडपीठ ने मामले की तात्कालिक सुनवाई पर जोर देते हुए कहा, “यह कोई सामान्य मामला नहीं है। हमें इस पर सुनवाई करनी है।”
पीठ ने राज्य सरकार को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।
बम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ की ओर से जनवरी-2023 में जमानत याचिका खारिज किये जाने के बाद गाडलिंग ने शीर्ष न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। याचिका दिसंबर 2016 की उस घटना से संबंधित है, जिसमें महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सूरजगढ़ खदानों से लौह अयस्क ले जा रहे 39 वाहनों को कथित तौर पर माओवादियों ने आग लगा दी थी। गढ़चिरौली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की कई धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम(यूएपीए) की धारा 16, 18, 20 और 23 और शस्त्र अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप तय किये गये। याचिका में कहा गया है कि गाडलिंग को इस घटना में फंसाया गया और उस पर यूएपीए अपराध के आरोप लगाए गए। गाडलिंग 2018 भीमा कोरेगांव मामले में भी एक प्रमुख आरोपी है, जिसकी वर्तमान में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) जांच कर रही है। वह तलोजा सेंट्रल जेल में न्यायिक हिरासत में है। उच्च न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) में गाडलिंग की सीधी संलिप्तता के आरोप प्रथम दृष्टया विश्वसनीय प्रतीत होते हैं।