नयी दिल्ली....राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने देश में आम जनता, नीति निर्माताओं और समाज विश्लेषकों से गिरती प्रजनन दर के मुद्दे पर गहन विचार करने का आह्वान किया है।
जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. अश्विनी महाजन ने बुधवार को यहां कहा कि कुल प्रजनन दर - टीएफआर में गिरावट प्रतिस्थापन स्तर से भी कम हो रही है, जो लंबे समय में समाज के अस्तित्व को खतरे में डाल रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने समस्या अपनी जनसंख्या को बनाए रखना है, ताकि विकास प्रयासों में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर हम इस संबंध में नहीं चेते, तो घटती प्रजनन दर जनसंख्या में खतरनाक असंतुलन पैदा कर सकती है।
तेजी से घटती टीएफआर का तात्पर्य एक औसत 15-49 वर्ष की महिला अपने जीवनकाल में कितने बच्चों को जन्म देती है।
इससे पहले आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने भी भारत में कुल प्रजनन दर 2.0 से नीचे गिरने पर चिंता व्यक्त की थी। उल्लेखनीय है कि विज्ञान पत्रिका लैंसेट ने बताया है कि भारत का टीएफआर वर्ष 2021 तक घटकर 1.91 हो गया है। वर्ष 1950 में प्रजनन दर 6.18 बच्चे प्रति महिला थी।
जागरण मंच का कहना है कि राष्ट्र को यह सुनिश्चित करना होगा कि जनसंख्या वास्तव में कम नहीं होनी चाहिए।
इस चेतावनी को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। टीएफआर में कमी, प्रतिस्थापन दर से कम होने से किसी के द्वारा उन्हें नष्ट किए बिना ही समाज का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। इसलिए समाज को लंबे समय में विलुप्त होने का खतरा है, जो एक बड़ी चिंता की वजह है। वैज्ञानिकों के अनुसार टीएफआर किसी भी स्थिति में 2.1 से नीचे नहीं गिरना चाहिए।
लगातार घटते और कम टीएफआर वाले विकसित देश अपनी जनसंख्या में गिरावट का सामना कर रहे हैं। दक्षिण कोरिया, जापान, जर्मनी आदि में टीएफआर प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से बहुत नीचे गिर गया है, जिससे उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। विज्ञप्ति के अनुसार भारत को इन देशों से सीखना चाहिए और घटती प्रवृत्ति को उलटने के लिए उपचारात्मक उपाय करने चाहिए।
शिशु मृत्यु दर में कमी आने से देश में युवा आबादी लगातार बढ़ने लगी, जिसे 'जनसांख्यिकी लाभांश' के नाम से जाना जाता है। वर्ष 2001 के आंकड़ों के अनुसार देश में युवाओं (15 से 34 वर्ष की आयु वर्ग) की आबादी कुल जनसंख्या का 33.80 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 34.85 प्रतिशत हो गई। वर्तमान में यह कुल जनसंख्या का 35.3 प्रतिशत से अधिक है। बदलते समय के साथ माना गया कि बढ़ती जनसंख्या बोझ नहीं है और स्वास्थ्य सेवाओं में तेजी से हो रही प्रगति के कारण मृत्यु दर, खासकर शिशु मृत्यु दर में भारी कमी आई है।