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चहलारी नरेश बलभद्र सिंह के बलिदान दिवस पर विशेष
चहलारी नरेश बलभद्र सिंह के बलिदान दिवस पर विशेष
Daily News Network    13 Jun 2025       Email   

बहराइच। आर्याव्रत के उत्तरी छोर की सांधी माटी के कण-कण आजादी के दीवानों के यशोगान की अनुभूतियां पटी पड़ी है। वसुन्धरा पर बहे शहीदों के लहू उनके सपनों को बारम्बार श्रद्धांजलि अर्पण के लिए सदैव प्रेरित करते है। इन्हीं शहीदों की श्रृंखला में एक अहम नाम शुमार है सुकुमार सम्राट बलभद्र सिंह। बलभद्र सिंह एक ऐसे असाधारण शूरवीर सम्राट योद्धा का नाम है जिन्होंने अवध की सरजमी पर कम्पनी सरकार के बढ़ते कदम को रोक दिया था। आधुनिक सैन्य साजो सामान से लैस होने के बाद भी तरूण बलभद्र सिंह के सामने टिक नहीं पायी और अंग्रेजी सेना और शासक को मोर्चा छोड़कर भागना पड़ा। एक तरीके से ब्रितानियां हुकुमत की पहली शर्मनाक हार थी। तभी तो अंग्रेज फौज के प्रधान सेनापति सर होपग्रांट, मेजर हडसन, कर्नल सर कैम्पवेल, डैली और बिग्रेडियर हार्स फोर्ट को बलभद्र सिंह के वीरता को सलाम कर उनके युद्ध कौशल का मुक्त कंठ से प्रशंसा करने को विवश होना पड़ा। लंदन टाइम्स के रिर्पोटर सर विलियम रसल ने ए डायरी माई लाइफ इन इण्डिया 1857-1858 में बलभद्र सिंह के वीरता के कसीदे गढ़े।
बात सन 1957 की है। कम्पनी सरकार अपने सैनिक अभियान के बलबूते यूपी के सूबो-दर सूबों पर विजय प्राप्त कर अपने अधिपत्य में लेे रही थी। अंगरेजी फौज शासकों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को 13 फरवरी 1856 में गिरफ्तार कर कलकत्ता जेल में नजरबंद कर लिया था। बेगम हजरत महल नन्हें बेटे विरजीश कदर को लेकर अंग्रेजी फौजी शासकों को चकमा देकर महल से भाग खड़ी हुई। उनके साथ उनके खास सिपहसलार मम्मू खां भी थे। बेगम के पालकी की रक्षा के लिए उनके अपने भरोसेमंद कुछ सैनिक भी थे।
बेगम दुर्गम रास्तों का सफर तय कर घाघरा नदी को पार कर भिठौली होते हुए बौण्डी आ गई। उन दिनों बौण्डी रियासत की कमान राजा हरदत्त सिंह के हाथ थी। हरदत्त सिंह ने बेगम को प्रश्रय दिया। बेगम वेवश होकर भी हार नहीं मानी। वे अंगेजों के विजय रथ को रोकना चाहती थी किन्तु अंग्रेजों की विशाल सेना और युद्ध के आधुनिक साजों के सामने बेगम का टिक पाना असम्भव था। विषम विपरीत परिस्थितियों में बेगम ने हौसले को टूटने नहीं दिया। दिमागी जद्दोजेहाद के बाद बेगम ने अंगेजों से मुकाबले के लिए एक नये युक्ति को आयाम दिया। बेगम ने अवध सूबे को सभी जमीदार एवं छ़त्रपों को मार्मिक पत्र भेजकर बौण्डी में तत्काल बैठक बुलाई। इसके लिए बेगम ने ताल्लुकेदारों एवं राजाओं को हरकारो के माध्यम से पत्र भेजा। बेगम के पक्ष के मजमून से रियासती छत्रप् मुश्किलों के आगाज की आहट समझ गए। पत्र भी बहुत मार्मिक था। पत्र पाकर तुलसीपुर की रानी ईश्वरीदेवी, भयारा के यासीन अली, हरदोई रूइया के राजा नरपति सिंह, बिठूर के नाना साहब, नानपारा के नवाब कल्लू खां, महोना के दिग्यविजय सिंह, राजा चरदा के जगजोत सिंह, फैजाबाद के मौलवी अहमद शाह उर्फ डंका शाह, संड़ीला हरदोई के चौधरी हशमत अली, चंदापुर के राजा शिवदर्शन सिंह, कटियारी के हरदेव बख्श सिंह, राजा हनुमन्त सिंह, कमियार राजा शेर बहादुर सिंह अमेठी के राजा माधव सिंह, निजामाबाद के फिरोज शाह, धौरहरा के राजा जांगड़ा, रायबरेली शंकरगढ़ के राजा बेनीमाधव सिंह, भटुआ मऊ के तजमल हुसैन खां, रामनगर के राजा गुरूबक्श सिंह, अयोध्या के राजा मानसिंह, गोण्डा के राजा देवीबक्श सिंह, खजूर गांव के राजा रघुनाथ सिंह, इकौना के राजा उदित प्रकाश सिंह, राजापुर के दुनिया सिंह, बरूवा के गुलाब सिंह, रेहुवा के रघुनाथ सिंह, बौण्डी राजा हरदत्त सिंह तयशुदा समय पर पहुंच गए।
चहलारी सम्राट बलभद्र सिंह उन दिनों लघु अनुज छत्रपाल को व्याहने शिवपुर गए हुए थे। जनवासे में बेगम के प्रमुख हरकारा मुख्तार शिवपुर पहुंचकर बेगम की पाती सौंपी। बारात की विदाई दूसरे दिन होनी थी और बैठक भी उसी दिन मुकर्रर थी। सो बलभद्र सिंह देशहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए बैठक में भाग लेने का निर्णय लिया। बारात के विदाई का जिम्मा काका हीरा सिंह के जिम्मे कर बलभद्र सिंह बौण्डी के लिए प्रस्थान कर दिया।
अवध की मल्लिका के नेतृत्व में पधारे राजाओं एवं जमीदारों की बैठक शुरू हुई। सभी का एक ही मत था कि अवध को प्रत्येक दशा में अंगेजी शासन से मुक्त रखा जाये। इसके लिए अंग्रेज को युद्ध में शिकस्त देना ही एक रास्ता था। हर बिन्दुओं पर व्यापक विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि अवध क्षेत्र के सभी राजे रजवाडे जमीदार और नवाब की पूरी सैनिक शक्ति को गठबंधन का रूप देकर अंग्रेजों से मोर्चा लिया जाय। सहमति के उपरान्त अवध मुक्त सेना का गठन हुआ। बैठक में तय हुआ कि सभी लोग अपनी-अपनी सेना, रसद, युद्ध के साजो सामान के साथ जून के प्रथम पखवारे में महादेवा में एकत्र होगे। बैठक समाप्त हो गई। लोग अपने-अपने स्थान के लिए प्रस्थान कर गए।
तयशुदा समय पर बैठक में उपस्थित रहे सभी सूबेदार राजा सैनिकों के साथ महादेव पहुंच गए। प्रातः बेगम साहिबा ने स्वर्ण कलश पर एक जोड़ा पान रखवा दिया। तात्पर्य यह था कि पान उठाने वाला संयुक्त सेना का प्रधान सेनापति होगा। उसी के अगुवाई में युद्ध होना था। प्रातः से शाम की बेला आने को हो गई लेकिन किसी शूरवीर ने पान नहीं उठाया। तो मल्लिका अधीर हो उठी। विचलित बेगम की हालत बलभद्र सिंह से देखी न गई और स्वयं पान का भक्षण कर प्रधान सेनापति का पद स्वीकार कर लिया। बेगम हजरत महल ने बलभद्र के साहस से मुग्ध होकर गले लगा लिया। अवध महारथियों ने निष्कर्ष निकाला कि अवध की सेना लखनऊ अंग्रेजी छावनी रेजीडेन्सी पर अचानक आक्रमण बोलकर छावनी ध्वस्त कर कब्जा कर लिया जाय।
दुर्भाग्य ही था कि रेजीडेन्सी पर आक्रमण की सूचना सर होपग्रान्ट को मिल गई। अवध संयुक्त सेना के बारे में किसी देशद्रोह ने उस खेमें में पहुंचा दी। होपग्रांट ने निर्णय लिया कि अवध की सेना रेजीडेन्सी पहुंचे उससे पहले ही विरोधी को कुचल दिया जाय। होपग्रांट ने बाराबंकी के ओबरी जंगल के रेठ नदी पर जबरदस्त किलेबंदी कर ली।
बलभद्र सिंह के नेतृत्व में अवध की सेना रेजीडेन्सी के लिए कूच कर गई। रेठ नदी पर ही दोनों सेनाओं के बीच 12 जून 1857 को युद्ध प्रारम्भ हो गया। 18 वर्षीय तरूण सेनापति बलभद्र सिंह गजब क्षमता से युद्ध किया। भारी रक्तपात हुआ। कम्पनी सरकार के सभी सैनिक मारे गए। अंग्रेजी सेनाधिकारी जान बचाकर भाग खड़े हुए। अवध की विजयी सेना ने अंग्रेजों के तोप, रसद, सैन्य साजो सामान अपने खेमे में उठा लाये। विजय श्री की सूचना पाकर मल्लिका बहुत खुश हुई। घायल सैनिकों के उपचार के लिए सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया गया। तस्वीर काफी हद तक साफ हो गई थी कि अंग्रेज हुक्मरान इतनी जल्दी हार नही मानेगे। इधर रात में ही कम्पनी सरकार के प्रधान सेनापति होपग्रांट ने अपने अन्य छावनियों से भारी संख्या में सैनिक एवं युद्ध के साजो सामान एकत्र कर अलह सुबह रेठ नदी पर मोर्चा बंदी कर लिया।
13 जून को एक बार फिर देानेां पक्ष की सेनाए आमने सामने हो गई। विकराल युद्ध शुरू हो गया। बलभद्र सिंह अंग्रेम पंक्ति में रहकर ब्रिटिस सैनिकांे का संघार कर रहे थे। यह युद्ध भी अवध सेनाओं के पक्ष में जाने लगा। अंग्रेजी फौजों में भगदड़ मच गई। होपग्रांट के लाख कोशिशों एवं प्रलोभनों के बाद भी उसके सैनिक मोर्चा छोड़ रहे थे।
ब्रतानियां हुकूमत के सभी सैन्य अधिकारी चारो ओर से घिर चुके थे। मौत चंद कदमों पर लमहों की आहट देने लगी। तभी होपग्रांट ने छल का सहारा लिया। निहत्थे बलभद्र के सामने जाकर पूछा आप लोग युद्ध बंद कर दीजिए आपकी शर्तें मान रहा हूं। बलभद्र सिंह झांसे में आ गए। युद्ध बंद करने का हुक्म दिया। शर्तो में वाजिद अली शाह की रिहाई, अवध क्षत्र मुक्त तथा रेजीडेन्सी खाली करने को कहा। होपग्रांट राजी हो गया। बलभद्र सिंह ने हथियार रख दिए। जिसका फायदा उठाकर अंग्रेज सैन्य अधिकारी ने बलभद्र सिंह के गर्दन पर पीछे से तलवार से प्रहार कर दिया। जिससे सर धड़ से अलग हो गया। किवदंतियां है कि बलभद्र सिंह का रूण्ड काफी देर तक घनघोर युद्ध किया। जब एक महिला ने काला कपड़े का स्पर्श कराया तब धड़ गिरा और धोखे से जीतते-जीतते अवध सेना हार गई। बलभद्र सिंह शहीद होते ही अवध की सेनाए मोर्चा छोड़कर भाग गई लेकिन चहलारी के सभी जवान अंतिम सांसो तक युद्ध करके शहीद हो गए। चहलारी सम्राट 18 साल तीन दिन की उम्र में भारत ही नहीं ब्रिटिश में भी भूरि-भूरि प्रंशसा के पात्र बने। तरूण सम्राट बलभद्र सिंह तो देश की आन बान शान पर शहीद हो गए लेकिन यह पंक्तियां ‘‘इस धरा का हर तरफ सम्मान है तुमसे, सूर्यवंशी पूर्वजों की आन है तुमसे। पीढ़ियों तक यश तुम्हारा मिट न पायेगा, विश्व में चहलार की पहचान है तुमसे।‘‘ सुखद स्मृति में 13 जून को सदैव सदिया हर सदियां उल्लास का एहसास कराती रहेगी।






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