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सुधरने को तैयार नहीं पाकिस्तान
सुधरने को तैयार नहीं पाकिस्तान
आशीष वशिष्ठ    14 Apr 2017       Email   


पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को रॉ का एजेंट बताकर मौत की सजा सुना दी है। यह घटना पड़ोसी मुल्क पाक के झूठ पर झूठ वाले किस्से का एक और उदाहरण है, जिसमें रत्ती भर सच्चाई नहीं है। कुलभूषण को रॉ का एजेंट बताकर फांसी की सजा सुनाने के पाकिस्तानी अदालत के फैसले की भारत में जबर्दस्त रोषपूर्ण प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है। इस संबंध में कूटनीतिक तरीके से तो भारत ने अपना विरोध पाकिस्तान के दिल्ली स्थित उच्चायुक्त से व्यक्त कर दिया, परन्तु जनरल परवेज मुशर्रफ  ने जाधव की तुलना मुंबई हमले के आरोपी कसाब को दी गई फांसी से कर, ये स्पष्ट कर दिया कि ये कार्रवाई बदले की भावना से प्रेरित है, जिसका उद्देश्य भारत को चिढ़ाने के साथ ही बदनाम करना भी है। 
जाधव को फांसी की सजा सुनाने के बाद यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या मौजूदा संदर्भ में पाकिस्तान पर एक और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की जाए? इस मामले को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने या जाधव की रिहाई तक पाकिस्तान के साथ तमाम रिश्ते तोड़ लिए जाएं? दरअसल, न्याय के उसूलों और कायदे-कानून की बात करना तो समझदार और विवेकशील देशों के संदर्भ में ही उचित है। ‘केला गणतंत्र’ और ‘केला अदालतों’ वाले देश को उनसे क्या लेना-देना! लिहाजा बार-बार विएना संधि की चर्चा बेमानी है, जबकि खुद पाकिस्तान ने उस संधि पर दस्तखत किए थे। सवाल एक और सर्जरी का तार्किक लगता है। पहले सर्जिकल हमले के बाद पाकिस्तान के जिस रवैए की हमने कल्पना की थी, वह हम हासिल नहीं कर पाए। पाकपरस्त आतंकवाद समाप्त नहीं हुआ। कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ और हमले नहीं थमे, बल्कि कश्मीर को आग की घाटी बना दिया गया। आतंकी अड्डे फिर बना लिए गए। लिहाजा इस बार सर्जिकल स्ट्राइक ऐसी की जानी चाहिए कि पाकिस्तान पलक तक न झपका सके और उसकी रीढ़ तोड़ दी जाए। भारतीय सेना में यह क्षमता और रणनीति खूब है। माना जा सकता है कि यह स्ट्राइक एकतरफा नहीं होगी, लेकिन एक सीमित सी जंग तो अब लड़नी ही होगी। पाकिस्तान अपनी फितरत से बाज नहीं आएगा और हम कब तक उसका शिकार होते रहेंगे? हमारी फौज किसी भी धमकी का सामना करने को सक्षम और तैयार है। भारतीय नागरिक व पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को जिस तरह फांसी की सजा सुनाई गई है, उससे तमाम हदें लांघी जा चुकी हैं। अब भारत सरकार की ओर से कार्रवाई राजनयिक हो या अंतरराष्ट्रीय मंच पर हो अथवा अंततः फौजी कार्रवाई करनी पड़े, भारत को भी पलटवार प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहना चाहिए।
पाकिस्तान में भारतीय कैदी कुलभूषण जाधव के मुद्दे पर संसद के दोनों सदन गरम और आक्रोशित रहे। संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को यहां तक बयान देना पड़ा कि भारत के बेटे को बचाने के लिए ‘आउट ऑफ  द वे’ काम भी करेंगे। ‘आउट ऑफ  द वे’ पाकिस्तान के लिए साफ  धमकी है और उसे हर अंजाम भुगतने को तैयार रहना चाहिए। लोकसभा में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट कहा कि भारत को जो करना है, हम करेंगे। कुलभूषण को बचाने और इंसाफ  दिलाने की हरसंभव कोशिश की जाएगी। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की यह टिप्पणी थी कि यदि हम कुलभूषण को फांसी से नहीं बचा सके तो देश के तौर पर हमारी हार होगी। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद का मानना था कि जाधव के जरिए यह विश्व मंच पर भारत की छवि खराब करने की कोशिश है। एक सोची-समझी साजिश के तहत जाधव को फंसाया गया है। कई अन्य सांसद भी इस पर बोले। मुद्दा साफ  है और हालात भी उग्र हैं। भारतीय नेताओं के बयानों की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ  को भी जवाब देना पड़ा कि पड़ोसी देशों से दोस्ताना रिश्ते रखना पाकिस्तान की नीति है, लेकिन इसे कमजोरी समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। 
जिस भारत ने पाकिस्तान के 90 हजार से ज्याद युद्धबंदियों को 1971 की जंग के बाद हुए शिमला समझौते के तहत अपने वतन जाने के लिए छोड़ दिया था, उसी पाकिस्तान ने भारत के 54 युद्धबंदियों को कभी रिहा नहीं किया। ये सभी भारतीय फौज के बड़े अफसर थे। उनमें मेजर अशोक सूरी भी थे। उन्होंने 1971 की जंग में हिस्सा लिया था। पांच जुलाई, 1988 को एक भारतीय कैदी मुख्तार सिंह को पाकिस्तान ने रिहा किया था। वह उसी जेल में थे, जिधर सरबजीत सिंह को मार डाला गया। उसने बताया कि मेजर अशोक सूरी लखपत जेल में ही हैं। 5 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान के प्रमुख अखबार संडे पाकिस्तान ने खबर छापी कि पांच जंगी विमानों के पायलटों को गिरफ्तार कर लिया गया है। खबर में साफतौर पर फ्लाइट लेफ्टिनेंट वीवी तांबे के नाम का भी उल्लेख था। राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन खिलाड़ी तांबे की पत्नी दमयंती तांबे के अनुसार, उन्हें 1978 में एक बांग्लादेशी नेवी के अफसर ने बताया कि लायलपुर जेल में तांबे नाम का एक भारतीय कैदी था। सरबजीत सिंह, चमेल सिंह उसके बाद लाहौर की जेल में भारतीय नागरिक किरपाल सिंह की वर्ष 2016 में रहस्मय परिस्थितियों में मौत हो गयी। पाकिस्तान की जेलों में न जाने कितने भारतीय नागरिक मर गए या मौत का इंतजार कर रहे हैं। भारतीय कैदियों को दी जाने वाली बर्बर यातनाओं को सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
पाकिस्तान अतीत में भी ऐसी हरकतें करता रहा है। जाधव को ईरान से अपहरण कर पाकिस्तान लाया गया और बलूचिस्तान में विद्रोह भड़काने का आरोप लगाकर मौत की सजा सुना दी गई। इस दौरान भारतीय उच्चायोग को लगातार आवेदनों के बाद भी उससे मिलने नहीं देना ही पाकिस्तानी रवैये का संकेत है। पिछले अनुभवों को देखते हुए जाधव को बचा पाना आसान नहीं होगा। यद्यपि भारत ने दबाव बनाने के लिये दर्जन भर पाकिस्तानी कैदियों की रिहाई रोक दी है, परंतु मात्र इतना करना काफी नहीं है। बेहतर होगा पाकिस्तान के साथ संबंधों पर नये सिरे से विचार करते हुए उसे घेरने की कोशिश हो। मोदी सरकार के लगातार प्रयासों से हालांकि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी अलग-थलग पड़ा है, परंतु चीन की शह मिलती रहने से वह हरकतों से बाज नहीं आता। जाधव की फांसी का फैसला दरअसल पाक सरकार की खीझ और हताशा का परिचायक ही है, परंतु कुत्ता यदि पागल हो जाए तो फिर उसे दूध-रोटी नहीं खिलाई जाती। पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति भी पागल कुत्ते जैसी हो गई है, अतः उसके साथ कूटनीति नहीं कुटिल नीति से निपटना होगा। 
पाकिस्तान की दरिंदगी की तुलना में भारतीय एनआईए कोर्ट के एक फैसले का उल्लेख जरूर किया जाना चाहिए। एनआईए कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि दो पाकिस्तानी नौजवान मासूम और बेकसूर थे, नतीजतन उन्हें रिहा कर दिया गया। इज्जत और हिफाजत के साथ उन्हें वाघा बॉर्डर पर पाक फौज को सौंप दिया गया। यह भारतीय न्यायिक व्यवस्था का मानवीय पक्ष है। क्या कुलभूषण के संदर्भ में अब भी पाक हुकूमत और फौज से ऐसी अपेक्षाएं की जा सकती हैं? पाकिस्तान के अलावा, श्रीलंका में पांच भारतीयों को फांसी की सजा सुनाने का प्रसंग भी याद आता है। अक्टूबर, 2014 में भारत सरकार ने श्रीलंका सरकार पर ऐसा तार्किक दबाव बनाया था कि नवंबर, 2014 में ही पांचों भारतीयों को बाइज्जत रिहा करना पड़ा। क्या कुलभूषण के संदर्भ में भारत सरकार को वैसी कामयाबी हासिल होगी? उधर पाक रक्षा मंत्री का बयान आया है कि जाधव के पास 60 दिनों में ही अपील करने का विकल्प है। अपील भी सैन्य कोर्ट में ही मेजर जनरल स्तर का अफसर सुनेगा। उसके बाद पाक सेना प्रमुख, सुप्रीम कोर्ट और अंततः राष्ट्रपति के विकल्प भी शेष हैं, लेकिन अंदरूनी तौर पर सभी पाकिस्तानी पक्ष मक्कार हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र के जरिए यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी उठा सकता है। लेकिन सबसे पहले मोदी सरकार इसकी पुष्टि पाक हुकूमत से करे कि कुलभूषण जिंदा हैं या नहीं। पाकिस्तान की फितरत के मद्देनजर यह आशंका भी स्वाभाविक है।
अब भारत के सामने एक कठिन चुनौती रहेगी कि वह पाकिस्तान के हाथों से भारतीय नागरिक को कैसे रिहा कराता है। पाकिस्तान ने सजा की घोषणा करके अपना काम कर दिया है। अब भारत, पाकिस्तान के इस षड्यंत्र को कैसे नाकाम करता है, इस पर देश की निगाहें लगी रहेंगी। ऐसा लग रहा है कि भारतीय नागरिक पर जासूसी सरीखे गंभीर आरोप मढ़कर वह अपनी भड़ास निकालना चाहता है। वहीं भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को मौत की सजा देकर पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने एक बार फिर दिखा दिया है कि किस तरह उसने अंतरराष्ट्रीय मानकों का मखौल उड़ाया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सैन्य अदालत के इस फैसले की क्षमता पर भी सवाल उठाए हैं। अफसोस इस बात का है कि दुश्मन की ऐसी फितरत का तोड़ निकालने में हम आज तक असफल रहे हैं और वह अपराधी होने के बावजूद उल्टा दबाव डालता आया है। इसलिए वह एक और भारतीय नागरिक को सता रहा है। भारत सरकार को इस मसले पर पाकिस्तान की नापाक हरकत पर सख्त कदम उठाने चाहिए। क्योंकि सवाल एक भारतीय नागरिक की जिंदगी का नहीं, बल्कि यह मसला देश की अस्मिता और नागरिकों के मनोबल से जुड़ा है। 






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