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कुलभूषण की फांसी सुनियोजित हत्या
कुलभूषण की फांसी सुनियोजित हत्या
अजय कुमार    14 Apr 2017       Email   

पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने सोमवार को भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को बलूचिस्तान में जासूसी वा हिंसा भड़काने के आरोप में फांसी की सजा सुनाई है। पाक की इस एकतरफा कार्रवाई पर भारत ने कड़ा विरोध जताया और कहा कि पाक यदि फांसी देता है तो यह फांसी सुनियोजित तौर पर हत्या होगी। भारत ने यह विरोध पाक राजदूत अब्दुल बासित के समक्ष जताया। वहीं पलटवार करते हुए भारत ने 11 पाक नागरिकों की रिहाई पर रोक भी लगा दी। कुलभूषण को फांसी की सजा उस समय दी गई, जब दोनों देशों के बीच रिश्ते पहले से ही बेहद नाजुक स्थिति में थे। पाक समर्थित आतंकी संगठनों ने पठानकोट और उरी में हमला कर भारत की अस्मिता को खंडित करने की कोशिश की, जिसके जवाब में भारत ने पीओके में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। इसके बाद दोनों देशों के मध्य रिश्ते बेहद नाजुक स्थिति में पहुंच गए, लेकिन पिछले कुछ दिनों से रिश्तों में सुधार की पहल दोनों तरफ  से देखी गई। लेकिन पाक ने कुलभूषण को सजा सुनाकर अपनी पुरानी गलती को जरूर दोहराया, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ना निश्चित है। इसकी आशंका पाक रक्षा मामले के जानकारों ने जताई भी है। पाक का व्यवहार भारतीयों के प्रति हमेशा शत्रुतापूर्ण रहा है। इसी व्यवहार का शिकार कुलभूषण जाधव भी हुए हैं। पाकिस्तान ने जाधव पर मनगढ़ंत आरोप लगाकर कर एकतरफा कार्रवाई की, जो पाकिस्तान के बयानों से स्पष्ट भी हो रहा है। पाक ने कहा है कि जाधव गिरफ्तारी के समय 3 मार्च, 2016 को भारतीय नौसेना में कमांडर थे और मजिस्ट्रेट के सामने उन्होंने रॉ के एजेंट होने की बात मानी है। जाधव ने अपना नाम बदलकर हुसैन मुबारक पटेल कर लिया था, जबकि सच यह है कि उन्होंने नौसेना से तय समय से पूर्व सेवानिवृत्ति ले ली थी। जाधव के पास जो पासपोर्ट मिला था, वो उनके असली नाम पर जारी हुआ था। कुलभूषण जाधव व्यापार के सिलसिले में अक्सर अफगानिस्तान व ईरान जाते रहते थे। जाधव की गिरफ्तारी पाक में नहीं ईरान से की गई थी। उस समय पाक वैश्विक स्तर पर बेनकाब हो रहा था। इससे बचने के लिए पाक ने भारत को वैश्विक स्तर पर बेनकाब करने के लिए कुलभूषण को निशाना बनाया। उसने बलूचिस्तान में हिंसा भड़काने व जासूसी के कथित आरोप में गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद पाक का असली चेहरा सबके सामने आया था।
अगर 7 सितंबर, 2016 को दिए गए सरताज अजीज के बयान पर ध्यान दें तो उन्होंने स्वयं कबूल किया था कि जाधव के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, उसके खिलाफ  कुछ बयान ही हैं। यह बात अजीज ने पाक सीनेट में कही थी। लेकिन पाकिस्तान की इस शत्रुतापूर्ण कार्रवाई के बाद यह तो सिद्ध हो गया कि पाकिस्तान की कथनी और करनी में बहुत फर्क है। जाधव को केवल भारतीय होने की सजा मिल रही है।
अब सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान की असल मंशा क्या है और वह चाहता क्या है। वैश्विक स्तर पर अलग-थलग होने के बावजूद ऐसी कार्रवाई कर पाक अपने लिए नई कूटनीतिक आफत मोल ले रहा है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जाधव को बचाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। इसके बाद भी यदि पाक ने फांसी पर रोक नहीं लगाई तो फिर से दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति विध्वंसक परिणामों में बदल सकती है, जैसा कि भारत ने उरी हमले के बाद किया था। पाकिस्तानी अखबार इसे जहां अभूतपूर्व फैसला बता रहे हैं, वहीं पाक को इसके कूटनीतिक दुष्परिणामों को भी याद दिला रहे हैं। पाकिस्तानी अंग्रेजी अखबार द नेशन ने डेथ टू स्पाई स्पाइक्स टेंशन शीर्षक से खबर प्रकाशित करते हुए लिखा कि एक सैन्य अदालत ने दोनों परमाणु संपन्न देशों के बीच लंबे समय से जारी तनाव को बढ़ाते हुए भारतीय जासूस को सजा सुनाई। अखबार ने रक्षा विशेषज्ञ हसन अस्करी के हवाले से लिखा कि फांसी देने का फैसला दोनों देशों के बीच तनाव में इजाफा करेगा, लेकिन हमें यह देखना होगा कि पाकिस्तान इसके राजनीतिक व कूटनीतिक दुष्परिणामों को झेल पाता है या नहीं। पाक समाचार एजेंसी व रक्षा विशेषज्ञ भारत की कूटनीतिक दक्षता से वाकिफ  हैं, लेकिन पाक सेना अभी भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही। पाक को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत को वो सभी रास्ते खोल देने चाहिए, जिससे पाक के मंसूबों को पस्त किया जा सके, चाहे वो कूटनीतिक हों या फिर सैन्य। क्योंकि पाक ने हमेशा भारतीय निर्दोष नागरिकों को अपना मोहरा बनाया है, ऐसे में अब उसी की भाषा में जवाब देना होगा। कहते हैं कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं, पाक को जवाब देने के लिए इसी कहावत को अमल में लाना होगा। तभी पाक को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकेगा। यह कोई पहला मौका नहीं है, जब पाक ने निर्दोष भारतीय नागरिकों को प्रति एकतरफा कार्रवाई की हो। इससे पहले भी कृपाल सिंह, सरबजीत सिंह, चमेल सिंह को मौत के घाट उतार चुका है, लेकिन पिछली सरकारों का व्यवहार पाक प्रति नहीं बदला, जिसका नतीजा यह हुआ कि आज कुलभूषण को झूठ की बलवेदी पर चढ़ना पड़ रहा है। यदि उस समय की सरकारें सरबजीत सिंह,  चमेल सिंह, कृपाल सिंह के मामले पर आक्रामक रुख अपनाती तो शायद आज कुलभूषण को यह दिन नहीं देखना पड़ता।
मौजूदा केंद्र सरकार को इस मामले में आक्रामक रुख अपनाना होगा और वे सभी कूटनीतिक पहल करनी होंगी, जिससे फांसी की सजा को रोका जा सके। कूटनीतिक रूप से सफलता न मिलने पर सरकार को सीमित सैन्य कार्रवाई से भी परहेज नहीं करना चाहिए। यह समय भारत के लिए अपनी उदार नीति को बदलने का है। भारत को अपना व्यवहार बदलकर इजरायल की शैली में लागू करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो पाक द्वारा हमेशा निर्दोष भारतीय नागरिकों को निशाना बनाना जारी रहेगा।






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