गोभक्ति के नाम पर हिंसा के खिलाफ आगाह करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अहमदाबाद में साबरमती आश्रम के पास गोशाला मैदान से उन्होंने सख्त संदेश दिया कि किसी को भी कानून हाथ में लेने का हक नहीं है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि जिस देश में चींटी, कुत्ते और मछली तक को खाना देने का संस्कार है, वहां गाय के नाम पर इंसान को मार डालना कहां तक उचित है? कौन दोषी है और कौन नहीं, इसका फैसला कानून करेगा। हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। गांधी और विनोबा से ज्यादा किसी ने गोरक्षा की बात नहीं की है। महात्मा गांधी भी आज होते तो गोरक्षा के नाम पर हिंसा के खिलाफ होते। यह रास्ता बापू का नहीं हो सकता। विनोबा का संदेश यह नहीं है। दोषी कौन इसका फैसला कानून करेगा, हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
प्रधानमंत्री का यह सख्त संदेश तब आया है, जब गोरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा में आएदिन कोई न कोई मारा जा रहा है। गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा का मामला उच्चतम न्यायालय में भी विचाराधीन है और पिछली 3 मई को कोर्ट ने केंद्र और छह राज्यों को नोटिस जारी करके छह सप्ताह में जवाब तलब किया है। पिछले साल अगस्त में भी प्रधानमंत्री ने सख्त लहजे में हिंसक गोभक्तों को चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि कुछ लोग गाय भक्ति के नाम पर अपनी दुकान चला रहे हैं। यह बंद करना होगा। उन्होंने राज्यों को ऐसे लोगों का डोजियर भी तैयार करने को कहा था। कुछ माह में देश के कई हिस्से से गोमांस को लेकर हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं। एक दिन पहले ही इस मुद्दे पर कुछ संगठनों ने प्रदर्शन किया है। ऐसे में पीएम ने अपनी बात कहने के लिए गांधी की भूमि को चुना। साबरमती आश्रम से उन्होंने कथित गोभक्तों पर हमला किया। देश के कई हिस्सों में भीड़ द्वारा हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री के बयान की लंबे समय से प्रतीक्षा थी।
गोशाला में गायों की मौत और गोहत्या के नाम पर कानून हाथ लेने के चर्चित मामलों को लेकर कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ने गोरक्षकों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अगस्त 2016 में ही जनहित याचिका दाखिल की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सहित छह राज्यों- राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और झारखंड की सरकारों से पूछा है कि क्यों न गोरक्षा के नाम पर हिंसा करने वाले समूहों को प्रतिबंधित कर दिया जाए। याचिका में कहा गया है कि गोरक्षा के नाम पर सक्रिय समूहों की हिंसा इतनी बढ़ गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद इन पर टिप्पणी करनी पड़ी थी। प्रधानमंत्री ने ऐसे लोगों को ‘सामाजिक ताना-बाना बिगाड़ने वाला’ कहा है। याचिका में पिछले दो साल में गोरक्षा के नाम पर हुई करीब 10 वारदातों का हवाला दिया गया है। इसमें 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी कांड, गुजरात के ऊना में पिछले साल दलितों पर हुए हमले और अलवर एक व्यक्ति की हत्या का विशेष जिक्र है। गौरतलब है कि अलवर में गो-तस्करी का आरोप लगाते हुए 10-12 लोगों ने 55 साल के पहलू खां नाम के एक व्यक्ति की पिटाई कर दी थी। इससे उसकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, उसकी सभी पसलियां टूट गई थीं और फेफड़ों में खून जमा हो गया था। याचिका में तहसीन ने गौरक्षा दलों पर सलवा जुडूम की तर्ज पर पाबंदी लगाने की मांग की है। साथ ही गोरक्षकों को दिए लाइसेंस भी रद्द करने की मांग की है। गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र ने गोरक्षकों को ट्रकों की चेकिंग के लिए लाइसेंस दिए हुए हैं।
इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते सात सालों में गाय से जुड़े हिंसा के 63 मामले सामने आए। 32 मामले भाजपा शासित राज्यों के थे। आठ कांग्रेस और बाकी अन्य के शासन वाले राज्यों में हुए। बीते सात वर्षों में गाय से जुड़ी हिंसा में 28 लोग मारे गए, 124 जख्मी हुए। 52 फीसद घटनाओं की वजह अफवाह थी। 2017 के पहले छह महीने में गाय से जुड़ी हिंसा की 20 घटनाएं हुईं। ये 2016 में हुई घटनाओं से 75 फीसद ज्यादा हैं। इन घटनाओं में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डालना, हत्या और हत्या की कोशिश, उत्पीड़न और नुकसान पहुंचाना शामिल है।
वर्ष 2010 से अब तक 7 सालों में गाय को लेकर हुई हिंसा के 51 प्रतिशत मामलों में एक खास कम्युनिटी को निशाना बनाया गया। गाय को लेकर 97 प्रतिशत हिंसा की घटनाएं 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद हुईं। वहीं, हमले की 63 घटनाओं में मारे गए लोग भी एक खास समुदाय के थे। एक नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है।
इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 7 साल में गाय से जुड़े हिंसा के 63 मामले सामने आए। इनमें से 32 केस बीजेपी शासित राज्यों में हुए। 8 मामले कांग्रेस और बाकी अन्य सरकारों के शासन वाले राज्यों में हुए। रिपोर्ट में 2014 से 25 जून, 2017 तक के केसों को शामिल किया गया है। बीते 7 सालों में गाय से जुड़ी हिंसा में 28 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 24 का ताल्लुक एक खास कम्युनिटी से था। इसमें 124 लोग जख्मी हुए। हमले की 52 प्रतिशत घटनाओं की वजह महज अफवाह थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 के पहले 6 महीने में गाय से जुड़ी हिंसा की 20 घटनाएं हुईं। ये 2016 में हुईं घटनाओं से 75 प्रतिशत ज्यादा हैं। गाय के मसले पर हुई हिंसा के मामले 2010 के बाद सबसे बदतर साबित हुआ। इन हमलों में भीड़ का पीट-पीटकर मार डालना, किसी गुट द्वारा अटैक, हत्या और हत्या की कोशिश, हैरेसमेंट, नुकसान पुहंचाना और गैंगरेप को शामिल किया गया है। हमले के 2 मामलों में विक्टिम्स को बांधा गया, उनके कपड़े उतारे गए और पीटा गया। जबकि दो मामलों में पीड़ितों को लटका दिया गया।
सोशल मीडिया पर इन हमलों को गो-आतंकवाद का नाम दिया गया। दक्षिणी या पूर्वी राज्यों यानी बंगाल और ओडिशा से महज 21 प्रतिशत हिंसा की घटनाएं सामने आईं। वहीं, कर्नाटक में 13 में से 6 मामले दर्ज किए गए। 30 अप्रैल, 2017 में असम में केवल एक मामला सामने आया, जिसमें दो लोगों की हत्या कर दी गई। हमले के 5 प्रतिशत मामलों में हमलावरों पर कोई रिपोर्ट ही दर्ज नहीं की गई। 21 प्रतिशत मामलों में तो पुलिस ने पीड़ित के खिलाफ ही केस दर्ज कर लिया।
इस बीच प्रधानमंत्री की कड़ी चेतावनी को कांग्रेस ने नाटक बताया है। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, पीएम इसके खिलाफ सिर्फ बोलते हैं, लेकिन ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। गोरक्षा के नाम पर भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मारने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इसके पीछे असली वजह यह है कि सरकार ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पीछे से उन्हें बढ़ावा देती है। दिखावे के लिए निंदा कर चेतावनी दी जाती है। उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसे मामलों में अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई है। एआईएमआईएम के मुखिया व सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी मोदी के बयान को नाटक बताया है। उन्होंने कहा, भाजपा शासित प्रदेशों में ही ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि मोदी हमें गांधी के सिद्धांतों के बारे में न बताएं। वो केवल एक्शन लें। भाकपा महासचिव एस सुधाकर रेड्डी व राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने कहा कि भाजपा शासित प्रदेश कार्रवाई करने में सक्षम क्यों नहीं हो पा रहे हैं।