दुनिया के विकसित देशों में शुमार चीन अक्सर भारत की ओर आंखें तरेरता रहता है। दरअसल, वह दक्षिण एशियाई देशों पर अपना हुक्म जमाना चाहता है। कमोबेश यही मंशा भारत की भी है। बावजूद इसके कई मामलों में भारत से समृद्ध होने के कारण वह अक्सर बंदरघुड़की देता रहता है। यह अलग बात है कि उसकी बंदरघुड़की से भारत की सेहत पर कोई खास असर नहीं होता, लेकिन युद्ध होने तक मामला पहुंच जाए, यह किसी भी देश के लिए ठीक नहीं है। कमोबेश सबको पता है कि युद्ध से नुकसान के अलावा लाभ नहीं होता। फिलहाल, दोनों देशों के बीच तकरार चरम पर देखी जा रही है। इसी के मद्देनजर जानकार युद्ध की आशंका भी जताने लगे हैं। पर, मुझे लगता है कि दोनों देशों के बीच मौखिक वार ही चलता रहेगा। युद्ध के आसार कम ही हैं, क्योंकि युद्ध टालने में दोनों देशों के व्यक्तिगत स्वार्थ निहित है। होना भी यही चाहिए। यदि दोनों देशों के बीच का तकरार मौखिक वार तक ही सीमित रहे तो ज्यादा अच्छा है। इसके लिए दोनों देशों को प्रयास करना होगा, लेकिन चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। बताते हैं कि विवाद के बीच हिंद महासागर में चीनी युद्धपोतों को गश्त करते देखा गया है। बीते दिनों चीनी सैनिकों ने सिक्किम स्थित भारतीय सीमा में घुसकर दो बंकर नष्ट कर दिए थे, जिसके बाद से इलाके में तनाव व्याप्त है। दोनों देशों ने डोका ला स्थित सीमा पर अतिरिक्त सैनिक तैनात कर दिए हैं।
तनाव इस कदर बढ़ गया है कि दोनों देशों की ओर से उल्टी-सीधी बयानबाजी का दौर जारी है। चीनी रक्षा विशेषज्ञों के हवाले से चीनी मीडिया ने तो यह आशंका तक जाहिर कर दी है कि चीन सीमा विवाद में युद्ध तक जा सकता है। इससे पहले चीनी मीडिया ने कहा था कि भारत को 1962 के युद्ध का सबक याद रखना चाहिए। इसके जवाब में भारतीय रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि 2017 का भारत 1962 का भारत नहीं है। भारतीय रक्षा मंत्री के बयान पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि चीन भी 1962 वाला नहीं है। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार दोनों देशों ने सिक्किम स्थित सीमा पर टेंट लगा कर लंबे संघर्ष के लिए पोजिशन बना ली है। सिक्किम का विवादित इलाके में भारत की चीन, भूटान और तिब्बत से सीमा लगती है। भारतीय नौसेना इंडियन ओसियन रीजन में चीनी युद्धपोतों की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है। कहा जा रहा है कि दोनों देशों के बीच 1962 के बाद यह सबसे लंबा गतिरोध है। हालांकि तीन जुलाई को सेना ने इसका खंडन करते हुए भारतीय बंकर गिराने के लिए बुलडोजर के इस्तेमाल और भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच धक्कामुक्की की खबरों को गलत बताया था। जानकारी के अनुसार, भारतीय नौसेना सैटेलाइट रुक्मणी यानी जीसैट-7 और लंबी दूरी के नौसैनिक गश्ति एयरक्राफ्ट यानी पोसेडोन-81 और युद्धपोतों ने इंडियन ओसियन रीजन में पिछले दो महीने में कम से कम 13 चीनी नौसैनिक इकाइयां देखी हैं। इनमें चीन की नवीनतम क्लास गाइडेड मिसाइल हुयांग-3 और हाइड्रोग्राफिक रिसर्च वैसेल शामिल हैं। इस विवाद की जड़ में चीन द्वारा भूटान की डोकलाम घाटी में सड़क निर्माण की कोशिश है। भूटान और भारत ने इस इलाके में चीन द्वारा सड़क निर्माण का विरोध किया है। चीन डोकलाम घाटा को अपना बताता रहा है। चीन जो सड़क बना रहा है, वो 40 टन वजन वाले सैन्य वाहनों और टैंकरों के यातायात के लिए सक्षम होगी। भारत ने चीन को पत्र लिखकर कहा है कि वो इलाके में यथास्थिति और संयम बरकरार रखे। यद्यपि चीन के साथ भारत का सीमा विवाद पुराना है। कभी-कभी इसकी वजह से दोनों तरफ के सैनिक टकरा जाते हैं या गलतफहमी पैदा हो जाती है, पर यह अक्साई चिन या अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर होता आया है। इस लिहाज से ताजा तकरार नई घटना है, क्योंकि यह सिक्किम से लगे सीमावर्ती क्षेत्र में हुई है। विडंबना यह है कि पहले के वाकयों के विपरीत इस बार चीन ने भारत पर अतिक्रमण का आरोप लगाया है और इसी बिना पर उसने भारतीय तीर्थयात्रियों को नाथू ला के रास्ते होकर कैलाश मानसरोवर जाने की इजाजत नहीं दी।
आपको बता दें कि चीन की दृढ़ता की वजह से तीर्थयात्रियों को लौटना पड़ा। चीन ने स्पष्ट कह दिया कि जब तक गतिरोध दूर नहीं हो जाता, वह नाथू ला के रास्ते से यानी तिब्बत होकर कैलाश मानसरोवर जाने की अनुमति नहीं देगा। सवाल है कि यह गतिरोध क्या है, क्यों पैदा हुआ, इसका जिम्मेवार कौन है। चीन का कहना है कि पिछले दिनों भारत के सैनिकों ने डोका ला क्षेत्र में आकर वहां हो रहे निर्माण कार्य पर एतराज किया और बाधा डाली, जबकि यह क्षेत्र चीनी भूभाग का हिस्सा है। इस पर दिल्ली में चीन के राजदूत ने भारतीय विदेश मंत्रालय से तो विरोध जताया ही, चीन के विदेश मंत्रालय ने बीजिंग में भारतीय राजदूत से भी अपनी नाराजगी जताई। यही नहीं, चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के दो बंकर ध्वस्त कर दिए, यह कहते हुए कि ये उसकी सीमा में बने थे। इस घटनाक्रम के सिलसिले में कई सवाल उठते हैं। जब चीन ने कूटनीतिक स्तर पर अपना विरोध दर्ज करा दिया तो भारत के जवाब या स्पष्टीकरण का इंतजार उसने क्यों नहीं किया। यही नहीं, उसने विवाद को यहां तक खींचा कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी उसकी बलि चढ़ गई, जबकि इससे बचा जा सकता था। भारत ने कभी भी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अतिक्रमण नहीं किया। डोंगलांग या डोका ला का मामला कुछ अलग तरह का है। इस क्षेत्र पर चीन का कब्जा है, मगर भूटान भी इस पर अपना दावा जताता है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में चीन ने दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा का विरोध करते हुए कहा था कि भारत को इसका परिणाम भुगतना होगा। लेकिन उसने भारत को चोट पहुंचाने का यही वक्त क्या इसलिए चुना कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका में थे और वे और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, दोनों दक्षिण चीन सागर की बाबत बगैर नाम लिए चीन पर निशाना साध रहे थे। चीन अपनी महत्वाकांक्षी योजना ओबीओआर पर भारत और अमेरिका के रुख से भी खफा है। तो क्या चीन कहीं और की नाराजगी कहीं और निकाल रहा है! जो हो, तमाम विवाद के बावजूद भारत-चीन सीमा पर शांति बनी रही है। यों सीमा विवाद को स्थायी रूप से सुलझाने के लिए न जाने कितने दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं, जिनका नतीजा सिफर रहा है, पर करीब साढ़े तीन हजार किलोमीटर लंबी सीमा पर, दशकों से हिंसा की कोई घटना न होना भी एक उपलब्धि है और यह कायम रहनी चाहिए। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर खिटपिट कोई नई बात नहीं है, मगर इस बार चीन ने सिक्किम में जो किया है, उसे मामूली नहीं कह सकते। पहले चीन ने सीमा पर मौजूद भारतीय सेना के बंकरों को क्षति पहुंचाई, फिर अब उलटे भारत से वहां से सेना वापस बुलाने की मांग कर रहा है। चीन का कहना है कि भारत जब तक सीमा पर से अपनी सेना को वापस नहीं बुला लेता, तब तक सीमा विवाद को लेकर आगे कोई बात नहीं होगी। समझा जा सकता है कि चीन की स्पष्ट मंशा सीमा विवाद को उलझाने और फिजूल में भारत को परेशान करने की है।