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दुस्साहसिक वारदात, खुदगर्ज सियासत और शिवभक्तों की मौत
दुस्साहसिक वारदात, खुदगर्ज सियासत और शिवभक्तों की मौत
सुमंगल दीप त्रिवेदी    13 Jul 2017       Email   

अमरनाथ यात्रियों पर हमले की खबर ने समूचे देश को झकझोर कर रख दिया। सोशल मीडिया पर शोक संवेदनाओं का तांता लग गया। चारों ओर आतंकवाादियों के इस कृृत्य की निंदा की जाने लगी। लेकिन इन सबके बीच मानस पटल पर अचानक कई सवाल भी कौंधने लगे। सभी के दिलोदिमाग में ऐसे सवाल उठने लाजमी हैं। भगवान शिव की पूजा-अर्चना का अनुपम महत्व लिए श्रावण मास की शुरुआत जो हुई थी, सभी के दिल में संवेदनाएं हिचकोलें ले रही थीं तो एक गुस्सा भी छाया हुआ था। श्रावण मास के प्रथम सोमवार की रात साढ़े आठ बजे बाबा अमरनाथ बर्फानी की यात्रा पूरी कर लौट रहे शिवभक्तों पर आतंकवादियों द्वारा किए गए हमले ने पूरे देश को सदमे में डाल दिया। इस हमले में गुजरात प्रांत के आठ शिवभक्तों की मौत हुई। रात करीब साढ़े आठ बजे जम्मू-कश्मीर प्रांत के अनंतनाग में आतंकवादियों ने इस कुकृत्य को अंजाम दिया। घटना की जानकारी मिलते ही सीआरपीएफ  की 90वीं और 40वीं वाहिनी मौका-ए-वारदात पर पहुंच जाती हैं। घायलों को उपचार के लिए अस्पताल ले जाया जाता है। 
यह सब कार्रवाई तो घटना के बाद की है। आवश्यकता है, घटना से पूर्व की स्थितियों पर अवलोकन करने की। सबसे महत्वपूर्ण गौर करने वाली बात यह है कि रात में सात बजे के बाद जब काफिले की यात्रा प्रतिबंधित है तो हाइवे पर यह बस कैसे आ गई। जब इस बस का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ था तो इसे तीर्थयात्रियों को कैसे मुहैया कराया गया। तीसरा आखिर गुजरात प्रांत के ही तीर्थयात्रियों से भरी बस बिना काफिले कैसे देर रात अकेले जा रही थी। 
यह सब ऐसे सवाल हैं, जिन पर गौर करना जरूरी है। देश के गृहमंत्री इस हमले की कड़ी निंदा करते हैं। लेकिन इस निंदा यानी कड़ी निंदा से क्या आज तक आतंकवादियों पर कोई प्रभाव पड़ा। देश की सवा सौ करोड़ जनता इन कई सवालों के जवाब ढूंढ़ रही है। बड़ा अजीब इत्तिफाक है कि जिस दिन देश के गृहमंत्री का जन्मदिन होता है, उसी दिन आतंकवादियों द्वारा इस दुस्साहस को अंजाम दिया जाता है। खुफिया एजेंसियों ने सरकार एवं श्राइन बोर्ड को हमले के पूर्व में ही चेताया था। लेकिन सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। आखिर एक सवाल और कौंधता है कि श्री अमरनाथ यात्रा को सेना के हवाले क्यों नहीं कर दिया जाता है। अमरनाथ यात्रा का बहुसंख्यक समुदाय में विशेष महत्व है। सरकार भी जानती है कि इस यात्रा में यदि इस तरह की घटनाएं होंगी तो करोड़ों बहुसंख्यकों को आघात पहुंचेगा। हिंदी भाषी क्षेत्रों से बहुतायत संख्या में लंगर भी श्री अमरनाथ यात्रा के दौरान लगते हैं। वर्ष 2012 में श्री अमरनाथ जी यात्रा के बेस कैंप बालटाल में चंद कश्मीरियों द्वारा बवाल भी किया गया था। इसके बाद सीआरपीएफ  ने हल्का बल प्रयोग कर मामले को काबू में किया गया था। वर्ष 2007 में भी यात्रा दौरान काफी बड़ा हमला हुआ था। लेकिन वर्ष 2007 के बाद से अब 2017 में फिर अमरनाथ श्रद्धालुओं पर पूर्व नियोजित हमला हुआ है। पूर्व नियोजित इसलिए क्योंकि आतंकवादियों को बस के मार्ग, समय आदि की पूरी जानकारी थी। इस बात को नकारा नहीं जा सकता। रही बात बिना रजिस्ट्रेशन के बस का यात्रियों को लेकर जाना। आखिरकार किस ट्रैवेल एजेंसी द्वारा यह बस यात्रियों को मुहैया करायी गई, इस पर भी विचार करना होगा। चूंकि भारत अनेकता में एकता के सूत्र में बंधा हुआ है, इसलिए यहां विभिन्न बोलियों, वेश-भूषाओं, रहन-सहन, लोक संस्कृतियों का अद्भुत संगम है। लेकिन अंग्रेजों ने बंटवारे की जो तस्वीर सन् 1947 में बनाई थी, आज उसका दंश हम सब झेल रहे हैं। गुजरात प्रांत के यात्रियों से भरी बस को निशाना बनाना कुछ और भी इंगित कर रहा है। वर्ष 2017 में गुजरात में चुनाव होने हैं। अभी कुछ अरसा पूर्व ही गुजरात जातिवादी आंदोलनों की आग में झुलस रहा था। हार्दिक पटेल पर रासुका के तहत कार्रवाई भी की गई थी। मोदी का गुजरात के मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के बाद आनंदीबेन को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन हालात बेकाबू हो चले थे, इसलिए उनको पद से हटा भी दिया गया। इसके आगे समझना स्वयं में आसान है। 
हम सब भावनाओं में बहुत जल्दी बह जाते हैं। धर्म को संकुचित कर पेश कर दिया गया है। एक कट्टरता का माहौल बनाया जा रहा है। आखिरकार, आईसीजे द्वारा कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ा रवैया अपनाया गया। इस खबर के बाद आखिरकार कुलभूषण जाधव कहां चला गया। क्या वो मां भारती की संतान नहीं है। जिसके लिए देश में तमाम आंदोलन होते हैं, गोष्ठियां होती हैं, क्या वह अपने परिवार का चहेता नहीं? भारतीय सेना के दो जवानों के सिर पाकिस्तानी फौज काटकर ले जाती है और केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रह जाती है। सरकार की मंशा दृढ़ होनी चाहिए कि अब आतंकवाद को और बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसका समूल नाश करने के लिए जो भी कदम उठाने पड़ें, उठाएंगे। यदि अब नहीं तो आखिर कब।         






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