नई दिल्ली .... आपरेशन सिंदूर में पाकिस्तानी सेना ने भारत के विरुद्ध बड़ी संख्या में ड्रोन का इस्तेमाल किया था। इसके मद्देनजर भारतीय सेनाएं दुश्मन के ड्रोन के विरुद्ध अपनी क्षमताओं को और मजबूत बना रही हैं।
इसके लिए थलसेना और वायुसेना 16 स्वदेशी ‘ड्रोन डिटेक्शन एंड इंटरडिक्शन सिस्टम’ के आर्डर देने जा रही हैं। यह प्रणाली दो किलोमीटर दूर से दुश्मन के ड्रोन को लेजर बीम से मार गिराने और उन्हें निष्कि्रय करने में सक्षम है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के इंटीग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन एंड इंटरडिक्शन सिस्टम (मार्क 2) को रक्षा मंत्रालय जल्द मंजूरी दे सकता है। रक्षा अधिकारियों ने बताया कि 10 किलोवाट की लेजर बीम से दुश्मन ड्रोन को मार गिराने की दूरी दोगुनी हो जाएगी। इससे पहले की प्रणाली सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी तक ही दुश्मन ड्रोन को निशाना बनाने में सक्षम थी। डीआरडीओ दरअसल लगातार लंबी दूरी की लेजर-आधारित ड्रोन डिटेक्शन एंड इंटरसेप्शन सिस्टम्स को विकसित कर रहा है। विकास के इस क्रम में उसने डायरेक्ट एनर्जी वेपन सिस्टम का भी सफल परीक्षण किया है, जो पांच किलोमीटर की दूरी तक की प्रणालियों को निशाना बना सकता है। वह भारतीय सेना की भागीदारी से अपने परीक्षण जारी रखे हुए है। पांच किलोमीटर की मारक क्षमता 30 किलोवाट के लेजर-आधारित डायरेक्ट एनर्जी वेपन से हासिल की जाएगी। डीआरडीओ की एक प्रयोगशाला सेंटर फार हाई एनर्जी सिस्टम्स एंड साइंसेज (चेस) ने आंध्र प्रदेश के कुरनूल में अप्रैल में पहली बार 30 किलोवाट के लेजर-आधारित वेपन सिस्टम (डीईडब्ल्यू एमके-2ए) का उपयोग करके फिक्स्ड-विंग वाले विमानों, मिसाइलों और स्वार्म ड्रोनों को मार गिराने की क्षमता प्रदर्शित की थी। ऐसा करके भारत इस तरह की क्षमता रखने वाले अमेरिका, चीन और रूस सहित चुनिंदा देशों में शामिल हो गया। डीआरडीओ प्रमुख डा. समीर वी. कामत ने कहा था कि डीआरडीओ अन्य हाई-एनर्जी सिस्टम्स पर भी काम कर रहा है।