नयी दिल्ली, 26 फरवरी अमीर वर्ग की महिलाओं के प्रसव पीड़ा तथा उससे जुड़ी अन्य दिक्कतों से बचने और निजी अस्पतालों द्वारा पैसा कमाने के लिए सिजेरियन कराने का दबाव डालने के कारण देश में ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मेडिकल चिकित्सा जर्नल ‘लान्सेट’ की मातृत्व स्वास्थ्य पर जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत के अमीर परिवार प्रसव के लिए सिजेरियन (ऑपरेशन से प्रसव) को प्राथमिकता देते हैं जिसकी वजह से 21 वर्ष में 2014 तक इस वर्ग में सिजेरियन के मामले औसतन 10 प्रतिशत से बढ़कर 30 फीसदी पर पहुंच गए हैं और देश में ऐसे मामलों का औसत 10 फीसदी से बढ़कर 18 प्रतिशत हो गया है जबकि निम्न आय वर्ग में ऐसे मामले अभी भी पांच प्रतिशत तक सीमित हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट 20।5-16 में भी 1992 से 2015 के दौरान ऐसे मामलों के 18 प्रतिशत पर पहुंचने की बात कही गई है। लान्सेट की रिपोर्ट कहती है कि ऐसा देखने में आया हेै कि अमीर वर्ग की महिलाएं प्रसव पीड़ा ज्यादा देर झेलने या इससे जुड़े जोखिम उठाने को तैयार नहीं होतीं इसलिए आवश्यक न होने के बावजूद सिजेरियन के विकल्प को प्राथमिकता देती हैं। इसके अलावा निजी अस्पताल भी पैसा कमाने के लिए जरूरत न होते हुए भी सिजेरियन करने का दबाव डालते हैं। इन कारणों से स्वास्थ्य सेवाओं के जरूरी संसाधन,इन चीजों में जाया हो जाते हैं जबकि इनका दूसरी जगह इस्तेमाल हो सकता था। इसका परिणाम यह होता है कि गरीब जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हो जाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश ही नहीं बल्कि दुनिया में भी बेवजह सिजेरियन का चलन बढ़ रहा है। वर्ष 2010 में उच्च और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में 35 लाख से 57 लाख सिजेरियन के ऐसे मामले हुए जिनकी आवश्यकता नहीं थी जबकि गरीब मुल्कों में इस दौरान ऐसे 10 से 35 लाख प्रसव के मामले हुए, जिनमें सिजेरियन की जरूरत थी लेकिन उन्हें यह सुविधा नहीं दी जा सकी। केन्द्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने सिजेरियन से प्रसव के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को सुझाव भेजा है। उन्होंने सिजेरियन से प्रसव को निजी अस्पतालों और डाक्टरों का गोरखधंधा बताते हुए कहा है कि इस पर रोक तभी लगेगी, जब ऐसे अस्पतालों और डाक्टरों के लिए इसके कारणों का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया जाए।