उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद से सभी विभागों के लिए नित नए फरमान जारी किए जा रहे हैं, जो कहीं न कहीं जनता के हित में हैं और सराहनीय भी हैं। लेकिन इमारत की पुताई करने से कहीं ज्यादा जरूरी है कि उसकी नींव की मजबूती को प्राथमिकता दें। सरकार द्वारा शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए फरमान जारी किए जा रहे हैं, लेकिन इन फरमानों से पहले सरकार को ध्यान देना चाहिए कि सत्र प्रारंभ हो गया है और अबतक किताबों का प्रबंध नहीं हुआ है। इसी तरह कहीं एक शिक्षक मजबूरन सौ या उससे भी अधिक बच्चों को पढ़ा रहा है तो कहीं 40-50 छात्र संख्या वाले स्कूलों में 6 से 10 शिक्षक तैनात हंै। ऐसी कई समस्याएं हैं, जिन पर सरकार को प्राथमिकता देनी चाहिए। हाल ही में विद्यालयों की छुट्टियों को लेकर मुख्यमंत्री ने कहा कि महापुरुषों के नाम छुट्टियां नहीं होनी चाहिए, ठीक कदम है, लेकिन उसके साथ ही साथ सरकार को कुछ अन्य कदम भी तत्काल उठाने चाहिए, अगर वह शिक्षा में वाकई जमीनी बदलाव लाना चाहती है।
जैसे सभी बेसिक और माध्यमिक शिक्षकों को उनके करीबी ब्लॉक/गृह जनपद/गृह जनपद के सीमावर्ती जनपद के क्रम में स्थानांतरण सुनिश्चित किया जाए, जिससे जब शिक्षक अपने ही गांव में या उसके आसपास तैनात होगा तो वह कहीं न कहीं सामाजिक दबाव और सहयोग दोनों के साथ विद्यालय में अच्छा काम करने की सोचेगा। साथ ही स्कूलों में मिड डे मील की जिम्मेदारी तत्काल प्रभाव से निजी संस्था को दे दी जाए, जिससे शिक्षक को विद्यालय में शिक्षण के समय मिड डे मील के कामों में न उलझना पड़े।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की मांग के लिए गांव-गांव छप्पर में चल रहे बिना मान्यता प्राप्त स्कूलों को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाए, जिससे वहां पढ़ने वाले छात्रों को प्रशिक्षित शिक्षक से शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिले और शिक्षक के सामने भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की मांग बढ़े। वरना अब तक चलती आई व्यवस्था जैसे- ड्रेस, बैग, थाली, जूता-मोजा, स्वेटर आदि के वितरण से शिक्षा की गुणवत्ता नहीं बढ़ने वाली है। बच्चों और अध्यापक की हाजिरी बॉयोमेट्रिक से ली जाए और लगातार शिक्षक अगर तीन दिन लेट से आएं तो वेतन काटने का नियम हो। साथ ही अगर सरकार छात्रवृत्ति भी देना चाहे तो इसी बॉयोमेट्रिक उपस्थिति के आधार पर दी जाए।
शिक्षकों के हित में ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित हो, जिससे शिक्षकों का वेतन किसी भी दशा में महीने के प्रथम तीन कार्यदिवस में दे दिया जाए। शिक्षण में पूर्ण समय देने के लिए शिक्षक को स्कूल की रंगाई-पुताई, फर्श, पानी आदि से दूर रखकर इसके लिए ग्राम पंचायत अधिकारी या सेकेट्री जिम्मेदार माना जाए और समय-समय पर तरह-तरह के कार्यक्रमों जैसे- एल्बेंडाजोल वितरण, पल्स पोलियो, जनगणना, बालगणना आदि कार्यों को शिक्षक के स्थान पर रोजगार सेवक की जिम्मेदारी पर कराया जाए। महिला शिक्षकों की सुविधा और सुरक्षा के लिए उन्हें दूरदराज के ऐसे स्कूल जहां के लिए आसानी से साधन उपलब्ध न हों, वहां यदि आवश्यक न हो तो तैनात न किया जाए।
माना जाता है शिक्षक समाज का आईना होता है तो उसे पूर्ण मर्यादा का भी ध्यान रखना चाहिए। शायद इसी क्रम में योगी सरकार ने यह फैसला लिया है कि अन्य कर्मचारियों की भांति शिक्षकों को विद्यालय में जीन्स नहीं पहनना चाहिए, लेकिन हास्यास्पद है कि महिला शिक्षकों को भी मर्यादित परिधान में रहने का आदेश क्यों नहीं दिया गया। क्या महिला शिक्षक एक शिक्षक नहीं है। क्या विभिन्न शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में महिलाओं के परिधान में साड़ी की अनिवार्यता बेवजह है। अगर पुरुष शिक्षक की परिधान निश्चित की जा सकती है तो महिला शिक्षक की क्यों नहीं। निस्संदेह महिलाओं को भी साड़ी पहनकर ही विद्यालय में रहना अनिवार्य करना चाहिए, क्योंकि शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में महिलाओं के परिधान में साड़ी की अनिवार्यता रहती है।
शिक्षक को विद्यालय की सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी से बाहर करते हुए यह जिम्मेदारी गांव में तैनात सफाईकर्मी को दी जाए, निरीक्षण में विद्यालय की सफाई में किसी भी कमी के लिए सफाईकर्मी पर कार्यवाही हो, नकि शिक्षक पर। शिक्षकों पर कोई भी कार्यवाही करने से पहले उन्हें अपनी बात पूरी तरह से लिखित रूप में रखने का अवसर दिया जाना चाहिए। शिक्षा में सुधार के लिए किसी भी कीमत पर स्कूल को सत्र प्रारंभ होने के एक सप्ताह पूर्व किताबें उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाए। यकीन मानिए, अगर यह परिवर्तन हो जाए तो प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था का कायाकल्प बदल जाएगा और जमीनी स्तर पर शिक्षा व्यवस्था में जबरदस्त बदलाव संभव हो सकेगा, अन्यथा जब तक सरकार द्वारा इन मूलभूत समस्याओं को नहीं समझा गया, तब तक शासन और प्रशासन के बीच पिसेंगे सिर्फ शिक्षक और गरीब बच्चे और शिक्षा व्यवस्था ज्यों कि त्यों दयनीय की दयनीय बनी रह जाएगी।