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लुप्त हो रही जनजातियों का संरक्षण
लुप्त हो रही जनजातियों का संरक्षण
एजेंसी    06 May 2024       Email   

नयी दिल्ली... ह्यूंडई मोटर इंडिया फाउंडेशन (एचएमआईएफ) ने भारत की समृद्ध पारंपरिक विरासत के उत्थान, संरक्षण और प्रचार-प्रसार की पहल के तहत अब लुप्त हाे रही जनजातियों के संरक्षण की दिशा में काम शुरू किया है।

फाउंडेशन के प्रयास आदिवासी कल्याण और संरक्षण से जुड़े क्षेत्रों पर केंद्रित हैं, विशेष रूप से तमिलनाडु के इरुंगट्टुकोट्टै में इरुला जनजाति और आंध्र प्रदेश के कुरनूल में चेंचू जनजाति जैसे स्थानीय एवं कमजोर जनजातीय समुदायों पर। फाउंडेशन के वनीकरण के प्रयासों से संरक्षक के रूप में 165 आदिवासी परिवारों को जोड़ते हुए एचएमआईएफ की सामाजिक पहल के साथ एकीकृत किया गया है। एचएमआईएफ ने लुप्तप्राय सांस्कृतिक कलाओं के संरक्षण के लिए भी अपने प्रयासों को समर्पित किया है। तमिलनाडु के कट्टैकुट्टू संगम थिएटर, पश्चिम बंगाल की सोहराई वॉल आर्ट, केरल के ओट्टम थुल्लल नृत्य, कर्नाटक के कावंडी निर्माण के संरक्षण के प्रयास किये गये हैं।

फाउंडेशन ने आज यहां जारी बयान में कहा कि इन पहलों ने समृद्ध भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने में मदद की है, साथ ही कलाकारों के लिए आजीविका के अवसर पैदा किए हैं और उनके सामाजिक कल्याण में योगदान दिया है।

एचएमआईएफ ने आंध्र प्रदेश के कुरलून में चेंचू जनजाति के 150 से अधिक परिवारों वाले पांच गांवों की पहचान की है ताकि उनके कृषि कौशल को बढ़ाते हुए एवं 250 एकड़ भूमि में आजीविका सृजन की गतिविधियों के माध्यम से उन्हें सशक्त किया जा सके। यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान देती है बल्कि स्थानीय जनजाति के परिवारों को कृषि-वन के संरक्षक के रूप में जोड़ती है, उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती है।

तमिलनाडु के इरुंगट्टुकोट्टै में इरुला जनजाति के लिए एचएमआईएफ ने चेन्नई में ह्यूंडई मोटर इंडिया के कारखाने के पास एसआईपीसीओटी क्षेत्र में एक परिवर्तनकारी पहल की है, जिसमें इरुला जनजाति के 15 स्थानीय परिवारों को एकीकृत किया गया है, ताकि 5,000 से अधिक पेड़ों और 12.16 एकड़ ओपन स्पेस रिजर्व (ओएसआर) भूमि में बनी नर्सरी के हरे-भरे क्षेत्र को बनाए रखा जा सके। इस प्रयास से न केवल बंजर भूमि को हरे-भरे जंगल में बदलना संभव हुआ है, बल्कि स्थानीय जनजातीय समुदाय के लिए यह आय का एक स्रोत भी है, जो सतत विकास और पर्यावरणीय प्रबंधन को बढ़ावा देता है। शुरुआत में दोनों क्षेत्र बंजर भूमि के रूप में थे और अब समृद्ध कृषि-वानिकी की प्रक्रियाओं, समृद्ध वनस्पतियों एवं जीवों के साथ हरे-भरे जंगल हैं, जिनका रखरखाव संबंधित जनजातीय समुदायों द्वारा किया जाता है।

संस्कृति एवं लुप्तप्राय कलाओं का संरक्षण कर्नाटक की सिद्दी महिलाओं द्वारा कावंडी बनाने में मदद किया गया है। फाउंडेशन ने कावंडी बनाने की तकनीक के प्रचार-प्रसार के लिए अपने संरक्षण के प्रयासों के तहत कर्नाटक में महिलाओं को प्रशिक्षण, उपकरण और संसाधन प्रदान किए हैं, जिससे वे अपने कौशल को बढ़ाने में सक्षम हो सकें और आय के अवसर सृजित कर सकें।






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