नयी दिल्ली। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि जातिगत जनगणना सिर्फ आंकड़ों का विषय नहीं है, यह सामाजिक न्याय का आधार है। श्री मलिक ने सोमवार को यहां एक संवाद में कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी)और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों को आज भी उनकी आबादी के हिसाब से संसाधन और अधिकार नहीं मिल रहे हैं। शिक्षा और रोजगार में पिछड़ों और दलितों की स्थिति दयनीय है। सरकार की योजनाओं और आरक्षण की समीक्षा तभी हो सकती है, जब सही आंकड़े सरकारी तंत्र के पास हों।
ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय नेताओं प्रमुख नेताओं की समिति के सदस्य धर्मेंद्र सिंह कुशवाह ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, “जातिगत जनगणना से यह स्पष्ट होगा कि देश के वंचित वर्गों को उनकी आबादी के अनुपात में अधिकार मिले हैं या नहीं। यह सामाजिक असमानता और भेदभाव को उजागर करने का माध्यम बनेगी। ओबीसी महासभा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीर सिंह बघेल ने कहा, “ जब तक समाज में सही प्रतिनिधित्व नहीं होगा, तब तक विकास और समानता का सपना अधूरा रहेगा। जनगणना के आंकड़े नीति निर्माण में मील का पत्थर साबित होंगे।
ओबीसी महासभा ने जातिगत जनगणना की अनिवार्यता को लेकर एक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें देशभर के प्रमुख सामाजिक और राजनीतिक हस्तियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में जातिगत जनगणना को ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने और उनकी वास्तविक स्थिति को उजागर करने के लिए महत्वपूर्ण कदम बताया गया।
वक्ताओं ने कहा कि ओबीसी के लिये केंद्र सरकार की नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन केंद्र की कुल 4.87 लाख नौकरियों में ओबीसी की हिस्सेदारी मात्र 14.6 फीसदी है। इसी तरह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी), भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी समुदाय के प्रोफेसरों और उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व नगण्य है।