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नशा मुक्ति के क्या हों कारगर कदम
नशा मुक्ति के क्या हों कारगर कदम
अरविंद जयतिलक    27 Jun 2017       Email   

एक कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने नागरिकों को शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखे। एक स्वस्थ व समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए उसके नागरिकों का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है। पर यह तभी संभव है, जब राज्य अपने नागरिकों को उचित स्वास्थ्य उपलब्ध कराने के लिए नशाखोरी पर लगाम कसेगा। किसी से छिपा नहीं है कि नागरिकों के बिगड़ते स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक रूप से शराब और तंबाकू उत्पाद ही जिम्मेदार हैं और इसके सेवन से हर वर्ष लाखों लोग मौत की भेंट चढ़ रहे हैं। 2006 में देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा कहा जा चुका है कि केंद्र व राज्य सरकारें संविधान के 47वें अनुच्छेद पर अमल करते हुए शराब की खपत घटाएं। लेकिन विडंबना है कि सरकारों का रवैया ठीक इसके उलट है। वे शराब पर पाबंदी कसने के बजाए बढ़ावा दे रही हैं। दुनिया भर में शराब और तंबाकू से मौतों को रोकने के लिए जन स्वास्थ्य और नीति विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय संगठन ने विश्व प्रसिद्ध स्वास्थ्य पत्रिका ‘लांसेट’ को पत्र लिखकर अपील किया है कि संपूर्ण विश्व में तंबाकू की बिक्री पर 2040 तक रोक लगनी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कह चुका है कि तंबाकू के सेवन से प्रतिवर्ष 60 लाख लोगों की मौत होती है। दुनिया में कैंसर से होने वाली मौतों में 30 फीसदी लोगों की मौत तंबाकू उत्पादों के सेवन से होती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों को उम्मीद है कि अगर विभिन्न देशों की सरकारें सिगरेट कंपनियों के खिलाफ  राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएं और कठोर कदम उठाएं तो विश्व 2040 तक तंबाकू और इससे उत्पन्न होने वाली भयानक बीमारियों से मुक्त हो सकता है। ऑकलैंड विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ रॉबर्ट बिगलेहोल का कहना है कि सार्थक पहल के जरिए तीन दशक से भी कम समय में तंबाकू को लोगों के दिलोदिमाग से बाहर किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए सभी देशों, संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को एक मंच पर आना होगा। जागरूकता की कमी और सिगरेट कंपनियों के प्रति नरमी का नतीजा है कि तंबाकू सेवन से मरने वाले लोगों की तादाद बढ़ रही है। देश की जीडीपी का यह हिस्सा जो तंबाकूजनित बीमारियों पर खर्च हो रहा है, अगर उसे गरीबी और कुपोषण मिटाने पर खर्च किया जाए तो उसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेगा। विडंबना यह है कि तंबाकू उत्पादों का सर्वाधिक उपयोग युवाओं द्वारा किया जा रहा है और उसका दुष्प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। गत वर्ष भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के एक सर्वेक्षण से खुलासा हुआ कि कम उम्र के बच्चे धूम्रपान की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 70 फीसद छात्र और 80 फीसद छात्राएं 15 साल से कम उम्र में ही नशीले उत्पादों मसलन पान मसाला, सिगरेट, बीड़ी और खैनी का सेवन शुरू कर देते हैं। अभी गत वर्ष ही स्वीडिश नेशनल हेल्थ एंड वेल्फेयर बोर्ड और ब्लूमबर्ग फिलांथ्रोपिज की रिसर्च से उद्घाटित हुआ कि धूम्रपान से हर वर्ष 6 लाख से अधिक लोग मरते हैं, जिनमें तकरीबन 2 लाख से अधिक बच्चे व युवा होते हैं। धूम्रपान कितना घातक है, यह ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लैंसेट की उस रिपोर्ट से पता चल जाता है, जिसमें कहा गया है कि स्मोकिंग न करने वाले 40 फीसदी बच्चों और 30 फीसद से अधिक महिलाओं-पुरुषों पर सेकेंड धूम्रपान का घातक प्रभाव पड़ता है। वे शीघ्र ही अस्थमा और फेफड़े का कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बन जाते हैं। पर राहत की बात यह है कि देश में वर्ष 2016-17 के दौरान तंबाकू का सेवन करने वालों की संख्या में तकरीबन 81 लाख की कमी आई है और इनमें किशोर और युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ‘ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वेक्षण द्वितीय’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2009-10 के दौरान तंबाकू सेवन के मामले जहां 34.6 प्रतिशत थे, वही 2016-17 में यह छह प्रतिशत घटकर 28.6 प्रतिशत पर आ गया है। अच्छी बात है कि इस दौरान 15 से 24 वर्ष के युवाओं में तंबाकू सेवन में औसतन 33 प्रतिशत, 15 से 17 वर्ष के वर्ग में 54 प्रतिशत और 18 से 24 वर्ष के वर्ग में 28 प्रतिशत की कमी आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से तैयार इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में 42.4 प्रतिशत पुरुष और 14.2 प्रतिशत महिलाएं यानी कुल 28.6 प्रतिशत वयस्क तंबाकू सेवन करते हैं। तंबाकू की खपत के मामले में छह पूर्वोत्तर राज्य- मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा और असम सबसे आगे हैं। इनमें मिजोरम पहले स्थान पर जहां 15 से 49 वर्ष उम्र के बीच के 80.4 प्रतिशत पुरुष और 59 प्रतिशत महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, मिजोरम के बाद मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा और असम का स्थान है। रिपोर्ट से यह भी उद्घाटित हुआ है कि पिछले 12 महीनों में तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों में से 55 प्रतिशत ने इसे छोड़ने की कोशिश की है। दरअसल, तंबाकू सेवन से गहराती बीमारी और जनजागरुकता के कार्यक्रम ने युवाओं को तंबाकू से दूर किया है। तंबाकू सेवन से कैंसर, फेफड़ों की बीमारियां और हृदय संबंधी कई रोगों की संभावना बढ़ती है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन के टोबैको-फ्री इनिशिएटिव के प्रोग्रामर डॉ. एनेट की मानें तो अगर लोगों को इस बुरी लत से दूर नहीं रखा गया तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। गौर करें तो केवल उत्तर-पूर्व में ही नहीं, बल्कि देशभर में लाखों लोग तंबाकू सेवन के कारण कई जानलेवा बीमारियों की चपेट में हैं। उचित होगा कि भारत सरकार तंबाकू सेवन के विरुद्ध जनजागरूकता कार्यक्रम का विस्तार करने के साथ ही तंबाकू की खेती पर भी रोक लगाए। ‘ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वेक्षण द्वितीय’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में सबसे ज्यादा सेवन खैनी और बीड़ी जैसे उत्पादों का होता है। इसमें 11 वयस्क खैनी का और 8 प्रतिशत वयस्क बीड़ी का सेवन करते हैं। कार्यालयों और घरों के अंदर काम करने वाले हर 10 में से तीन व्यक्ति पैसिव स्मोकिंग का शिकार होते हैं। जबकि सार्वजनिक स्थानों पर इसके प्रभाव में आने वाले लोगों की संख्या 23 प्रतिशत है। गत वर्ष ग्रेटर नोएडा के एक्सपो मार्ट में फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल यानी एफसीटीसी कॉप-7 यानी कांफ्रेंस ऑफ  पार्टीज-7 सम्मेलन में भारत की ओर से विभिन्न संस्थानों के सहयोग से चबाने वाले तंबाकू की वजह से होने वाले कैंसर, हृदय रोग और मुंह की बीमारियों के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट पेश किया गया। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 15 साल और उससे अधिक उम्र की सात करोड़ महिलाएं भी चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का सेवन कर रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि इसके सेवन से गर्भवती महिलाओं में एनीमिया का खतरा 70 फीसद बढ़ गया है। चबाने वाला तंबाकू किस हद तक जानलेवा साबित हो रहा है, इसी से समझा जा सकता है कि अगर इस पर रोकथाम नहीं लगी तो 21वीं शताब्दी में तंबाकू सेवन से होने वाली मौत का आंकड़ा एक बिलियन तक पहुंच सकता है। एफसीटीसी सेक्रेजटेरिएट की मानें तो वर्ष 2030 तक इससे होने वाली 80 फीसद मौतें कम आय वाले देशों में होंगी, जिनमें से एक भारत भी है। विशेषज्ञों का कहना है कि तंबाकू का सेवन मौत की दूसरी सबसे बड़ी वजह और बीमारियों को उत्पन करने के मामले में चौथी बड़ी वजह है। दुनिया में कैंसर से होने वाली मौतों में 30 फीसदी लोगों की मौत तंबाकू उत्पादों के सेवन से होती है। लोगों को तंबाकू सेवन से उत्पन बीमारियों से निपटने पर अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ रहा है। अच्छी बात है कि भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के तहत देश में तंबाकू उत्पादों के सेवन में 2020 तक 15 प्रतिशत और 2025 तक 30 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा है। लेकिन यह तभी संभव होगा, जब इसके लिए कारगर कदम उठाए जाएंगे।






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