अभी कुछ दिन पहले असम से आई एक महत्वपूर्ण खबर पर जितनी चर्चा होनी चाहिए थी, देश ने चर्चा नहीं की। खबर यह थी कि असम में राज्य सरकार ने नयी जनसंख्या नीति का मसौदा तैयार किया है। इसके अनुसार, दो से अधिक बच्चे पैदा करने वालों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। असम में सरकारी योजनाओं के लिए भी यह द्विसंतान नीति लागू होगी। यूं तो हमारे देश में अनियंत्रित जनसंख्या को काबू करने के लिए बीच-बीच में निरर्थक और बेमतलब बातें होने लगती हैं, पर असम सरकार ने निश्चित रूप से समूचे देश के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है।
एक तरह से असम सरकार ने यह खुले रूप में स्पष्ट कर दिया है कि वो आबादी पर लगाम लगाने के लिए कृतसंकल्प है। असम में अनधिकृत घुसपैठ के कारण भी आबादी बेलगाम तरीके से बढ़ती ही जा रही है। याद रखिए कि पूरा देश जनसंख्या विस्फोट से सारा देश त्राहि-त्राहि कर रहा है। हर तरफ भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है। रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार, मंदिर, शॉपिंग मॉल्स, सड़कों पर मुंड ही मुंड अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे होते हैं। हर तरफ भीड़ को देखना कई बार डराता भी है। जेहन में सवाल पैदा होने लगते हैं कि किस तरह से देश इतनी अपार और चक्रवृद्धि ब्याज से भी तेज रफ्तार से बढ़ती आबादी के लिए अनाज, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य दूसरी सुविधाएं उपलब्ध करवा पाएगा।
निर्विवाद रूप से भारत ने बीते कई बरसों के दौरान विज्ञान और तकनीक, मेडिसिन और स्वास्थ्य सेवाएं, सूचना प्रौद्योगिकी, बिजनेस, संचार, मनोरंजन आदि क्षेत्रों में लंबी छलांग लगाई है। पर आबादी की रफ्तार के कारण देश को उन उपलब्धियों से अपेक्षित लाभ नहीं हो रहा है, जो देश ने दर्ज की हैं।
आपको मालूम ही है कि हम सवा अरब यानी 1.25 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुके हैं। हम तो बस बढ़ते ही चले जा रहे हैं। देश में 2011 में जनगणना हुई थी। वही अद्यतन है। तब ही हम 1.20 करोड़ से अधिक थे। हम चीन के बाद दूसरे स्थान पर थे, पर अगर हमने तुरंत कठोर कदम नहीं उठाए तो आबादी को रोकने के लिए तो हम 2025 तक चीन को भी शिकस्त दे चुके होंगे। इसी तरह के निश्चित अनुमान लगाए जा रहे हैं। देश के लिए बढ़ती जनसंख्या संकट का कारण बनती जा रही है। दुखद स्थिति यह है कि आबादी नियंत्रण के रास्ते में धार्मिक भावनाएं भी आड़े आने लगती हैं। अब कम से कम इस तरह की मानसिकता पर विराम तो लगना ही चाहिए।
ठीक है कि हम आबादी पर काबू पाने के लिए चीन जैसे कठोर कदम तो नहीं उठा सकते। क्या हम एक भी कम से कम अगले पचास वर्षों के लिए एक बच्चा नीति पर नहीं चल सकते। इस सवाल पर देशव्यापी बहस करवाने में क्या दिक्कत है। लेकिन कम से कम सारा देश असम के रास्ते पर तो चल ही सकता है। असम ने देश को एक नजीर दिखाई है। जनसंख्या विस्फोट इसी तरह से बढ़ती रही तो आने वाली पीढ़ियां खाद्यान्न, जल सहित कई प्राथमिक संसाधनों और रोजगार के लिए तरसेंगी। यह तो कोई नहीं कह रहा कि देश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सरकार या गैरसरकारी स्तरों पर पहल नहीं हो रही। बिल्कुल हो रही हैं। लेकिन जितनी जरूरत है, उतनी भी नहीं हो रही है, पर इस कार्य में और ईमानदारी और गति लाने की आवश्यकता है। बेशक, जनसंख्या नियंत्रण के लिए जो बड़े कदम उठाए जा चुके हैं, उन्हें और गंभीरता से लागू करना होगा। महिलाओं और बच्चियों के कल्याण और उनकी स्थिति को बेहतर करना, शिक्षा के प्रसार, गर्भनिरोधक और परिवार नियोजन के तरीके, पुरुष नसबंदी को बढ़ावा आदि कुछ ऐसे कदम हैं, जिसके चलते आबादी पर काबू पाया जा सकता हैं। यह धर्म और संप्रदाय का तो सवाल ही नहीं है जैसा कि कट्टरपंथी कुप्रचार कर रहे हैं। यह हमारे जीवन-मरण का प्रश्न है।
जनसंख्या विस्फोट और रोजगार के सवाल एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस परिप्रेक्ष्य में मैं देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश का उल्लेख करना चाहूंगा। उत्तर प्रदेश की आबादी 20 करोड़ से अधिक हो चुकी है। जाहिर है, इतनी अधिक आबादी के लिए रोजगार के अवसर सृजित करना बड़ी चुनौती है। उत्तर प्रदेश का नौजवान रोजगार के लिए धक्के खा रहा है। उन्हें उनकी शैक्षणिक योग्यता के मुताबिक रोजगार नहीं मिल रहा है। राज्य में नौकरी पाने के लिए हाहाकार मचा हुआ है। नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन यानी एनएसएसओ के मुताबिक, वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में बेरोजगारों, जो 18-35 साल के आयुवर्ग के हैं, की फौज का आंकड़ा 1.3 करोड़ के आसपास होगा। राज्य में एक नौकरी के लिए सैकड़ों-हजारों नौजवान अप्लाई कर रहे हैं। क्या आप मानेंगे कि राज्य में सफाई कर्मियों के 40 हजार पदों के लिए 18 लाख से ज्यादा आवेदन आए हैं। सरकार ने पिछले साल जुलाई में इन पदों को भरने के लिए विज्ञापन दिए थे। अकेले कानपुर नगर निगम यानी केएमसी को 3275 स्थानों के लिए सात लाख अर्जियां प्राप्त हुई हैं। इनमें पांच लाख से ज्यादा ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, एमबीए वगैरह हैं। कमोबेश सारे देश की यही हालत हो चुकी है। पर उत्तर प्रदेश और बिहार एक जैसे हैं। आप सारे देश में इन दोनों सूबों के नौजवानों को नौकरी करते हुए देख सकते हैं। चूंकि अपने प्रदेशों में आबादी के अनुपात में रोजगार सृजित नहीं हो रहे तो ये नौजवान घरों से सैकड़ों-हजारों मील भी विपरीत हालातों में काम करने को अभिशप्त हैं।
मोटे तौर पर अनियंत्रित आबादी के कारण हैं- जन्म दर का मृत्यु दर से अधिक होना और अशिक्षा। देश में प्रजनन दर कम तो हुई है, पर फिर भी यह दूसरे देशों के मुकाबले बहुत अधिक है। सबसे अहम कारण निरक्षरता है। निरक्षरता के कारण देश की एक बड़ी आबादी बच्चे पैदा करती रहती है। उसे छोटा परिवार-सुखी परिवार का महत्व समझ ही नहीं आता। इसलिए जनसंख्या विस्फोट के मूल में एक बड़ा कारण हमारे यहां करोड़ों लोगों का अनपढ़ होना भी है। आप देश के गांवों और छोटे शहर तो छोड़िए जरा कभी राजधानी के सबसे खास कनॉट प्लेस इलाके में हनुमान मंदिर के बाहर का मंजर देख लीजिए तो समझ आ जाएगा कि अभी देश किन हालातों में है। वहां सड़क पर एक मियां-बीवी के छह-छह बच्चे दिन-रात भीख मांग रहे होते हैं।
इसलिए निरक्षरता पर करारा प्रहार करना होगा। आबादी के तेजी से बढ़ने का एक अन्य कारण गरीबी भी है। गरीब परिवारों में एक धारणा है कि परिवार में जितने ज्यादा सदस्य होंगे, उतने ज्यादा लोग कमाने वाले होंगे। इसके अलावा भारत अब भी गर्भ निरोधकों और जन्म नियंत्रण विधियों के इस्तेमाल में पीछे है। और क्या कोई यह मानने से इनकार करेगा कि देवी और सीता को अराध्य मानने वाले भारतीय समाज में बेटे को पाने की तीव्र इच्छा बनी रहती है। इस मानसिकता के कारण पति-पत्नी पर बेटा पैदा करने का दबाव बना रहता है। बेटा पाने के लिए लोग अनेक बच्चे पैदा करते रहते हैं।
असम और अन्य भारतीय राज्यों में कितने बांग्लादेशी अवैध रूप से रहते हैं, उसका ठोस आंकड़ा मिलना बेहद मुश्किल है। इस संबंध में अलग-अलग दावे होते हैं। हालांकि कहने वाले दावा करते हैं कि भारत में तीन-चार करोड़ बांग्लादेशी नागरिक आ गए हैं। इन्हें आप देश के हर शहर में छोटा-मोटा काम करते हुए देख सकते हैं। ये आपराधिक मामलों में भी लिप्त रहते हैं। पश्चिम बंगाल में भी अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों का मुद्दा काफी संवेदनशील है। राज्य के सबसे अधिक मुस्लिम बहुल जिले मुर्शिदाबाद से सटे सीमावर्ती इलाकों की सबसे बड़ी समस्या ये है कि कथित बांग्लादेशियों और मूल स्थानीय निवासियों का रहन-सहन और भाषा एक जैसी है। घुसपैठिये देश के संसाधनों पर बोझ बन रहे हैं। इसलिए घुसपैठ तो रोकनी ही होगी। बहरहाल देश में फिलहाल आबादी थमने का नाम ही नहीं ले रही है। पर यह स्थिति रोकी जानी होगी। अब भले ही देश को इस लिहाज से कुछ अप्रिय ही फैसले लेने पड़े। इस मसले पर सभी राजनीतिक दलों में सर्वानुमति है। ये इसलिए भी आवश्यक है, ताकि देश की आर्थिक विकास दर का बढ़ती आबादी की मांग के साथ तालमेल बिठाया जा सके। असम ने देश के सामने नजीर रख दी है। अब फैसला सभी को करना है।
(लेखक भाजपा के राज्यसभा सांसद व हिंदुस्थान समाचार के अध्यक्ष हैं)