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जितने से पेट भर जाए
जितने से पेट भर जाए
जाहिद खान    16 Apr 2017       Email   

होटलों में एक व्यक्ति को एक थाली में कितना खाना परोसा जाए? पिछले दिनों केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने इस संबंध में एक बयान देते हुए कहा कि यदि एक मेहमान होटल में दो इडली खाने की क्षमता रखता है तो उसे बर्बाद करने के लिए चार इडलियां क्यों परोसी जाएं। यह खाने और पैसे दोनों की बर्बादी है। लोग उसके लिए भुगतान करते हैं, जिसका वह इस्तेमाल नहीं करते हैं। पासवान ने इस बारे में विस्तार से कहा कि खाने की बर्बादी को रोकने के लिए होटलों और रेस्तरां को इस मुहिम में साझीदार बनाया जाएगा। अलबत्ता ढाबों और छोटे होटलों को इस नियम से रियायत हासिल होगी। उन्हें इस नियम के दायरे में नहीं लाया जाएगा। उपभोक्ता, खाद्य और लोक वितरण मंत्रालय होटलों और रेस्तरां के लिए एक प्रश्नावली तैयार कर रहा है, जिसमें उनसे यह पूछा जाएगा कि एक सामान्य उपभोक्ता को कितनी मात्रा में डिश परोसी जाए। होटलों से प्रश्नावली का जवाब मिलने के बाद उन्हें दिशानिर्देश जारी किया जाएगा कि वो कितनी मात्रा में डिश ग्राहकों को परोसें। होटल, रेस्तरां के मैन्यू में साफ  लिखा होगा कि परोसे जाने वाले खाने की मात्रा कितनी है। यदि सबकुछ ठीक योजना के मुताबिक मुमकिन हुआ तो इसके सीधे-सीधे दो मकसद हैं। पहला, होटलों में खाने की बर्बादी कम करना। दूसरा, लोग जितना खाएं, उसी का पैसा चुकाएं। जाहिर है कि पहली नजर में यह कहीं से भी गलत नहीं लगता। खाने की बर्बादी रोकने के लिए यह सही   कदम है। 
खाने की बर्बादी रुके और बचा खाना जरूरतमंदों तक पहुंचे, देश में इस पर कोई दो राय नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने मासिक रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में खाने की बर्बादी पर चिंता जता चुके हैं। अपने इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि भोजन की बर्बादी समाज द्रोह के बराबर है और इसे हर हाल में बचाया जाना चाहिए। घर, शादियों और होटलों में बचा खाना, जरूरतमंदों तक पहुंचना चाहिए। जाहिर है, प्रधानमंत्री की इस राय के बाद से ही खाने की बर्बादी रोकने को लेकर देश भर में चर्चा शुरू हो गई थी। उपभोक्ता, खाद्य और लोक वितरण मंत्रालय का हालिया कदम इस दिशा में आगे बढ़ने की शुरुआत भर है। खाने की बर्बादी रोकने के लिए सरकार, आने वाले दिनों में संसद के जरिए नया कानून भी बना सकती है। कोई भी नया कानून या नियम बनाने से पहले सरकार देशभर में सर्वे करके सभी पक्षों से जानकारी लेगी, जिसमें लोगों की खुराक, कितनी बार खाना छोड़ते हैं, क्या एक ऑर्डर पर अलग जगहों पर अलग मात्रा मिलती है जैसे 25 से 30 सवाल होंगे। इन सवालों के जवाब के आधार पर नियम बनेंगे। लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि जो भी नियम बनेगा, उसे अमल में कैसे लाया जाएगा। होटल और रेस्तरां नियम पर अमल कर रहे हैं या नहीं, इसकी किस तरह से मॉनिटरिंग होगी? सभी पक्ष क्या इससे आसानी से सहमत होंगे?
आम तौर पर एक दिन में एक आदमी को दो हजार कैलोरी और महिलाओं को 1500 से 1800 कैलोरी चाहिए। एक समय के भोजन में एक व्यक्ति को 75 ग्राम आटा या तीन रोटी, 30 ग्राम दाल, 35 ग्राम सब्जी, 25 ग्राम सलाद और 50 ग्राम दही पर्याप्त है। बड़े होटलों में इस लिहाज से ज्यादा खाना दिया जाता है। फिर सबकी खुराक भी अलग-अलग होती है। कुछ राज्य सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर अपने यहां खाने की बर्बादी रोकने के लिए कुछ अच्छे प्रावधान भी किए हैं। मसलन, जम्मू-कश्मीर सरकार ने अपने एक फैसले के तहत शादी समारोह में मेहमानों से लेकर व्यंजनों की संख्या तक सीमित कर दी है। शादियों और दीगर सामाजिक समारोहों में खाद्य पदार्थों की बर्बादी और दिखावा रोकने की गरज से किया गया यह फैसला राज्य में पहली अप्रैल से लागू हो गया है। इस प्रावधान से निश्चित तौर पर शादियों में होनेवाले खाने के अपव्यय पर रोक लगेगी। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक संगठनों का अनुमान है कि देश में होनेवाली ज्यादातर शादियों में कम से कम 20 फीसद भोजन बर्बाद हो जाता है। 
विश्व खाद्य संगठन के मुताबिक भारत में हर साल पचास हजार करोड़ रुपए का भोजन बर्बाद चला जाता है, जो कि देश के खाद्य उत्पादन का 40 फीसद है। जाहिर है कि खाद्य अपव्यय को रोके बिना खाद्य सुरक्षा संभव नहीं है। तमाम व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी कोशिशों के बाद भी खाद्य अपव्यय नहीं रुक पा रहा है। इसके लिए देश में एक मुहिम छेड़नी होगी। खासकर बच्चों में शुरू से ही यह आदत डालनी होगी कि उतना ही थाली में परोसें, जितनी भूख हो। एक-दूसरे से बांटकर खाना खाया जाए। 
घर, होटल और शादियों में भोजन की बर्बादी पर तो रोकथाम होनी ही चाहिए। लेकिन सरकार और खाद्य मंत्रालय अनाज, दाल व फल की बर्बादी को रोकने पर भी ध्यान दे। देश में गोदामों के अभाव और सही ट्रांसपोर्टेशन न होने के चलते हर साल लाखों टन अनाज सड़ जाता है। 2.1 करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है, क्योंकि उसे रखने के लिए हमारे पास माकूल भंडारण की सुविधा नहीं है। एक साल में जितना सरकारी खरीद का धान और गेहूं खुले में पड़े होने की वजह से मिट्टी हो जाता है, उससे ग्रामीण अंचलों में पांच हजार वेयर हाउस बनाए जा सकते हैं। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर साल उतना गेहूं बर्बाद होता है, जितना ऑस्ट्रेलिया की कुल पैदावार है। बर्बाद हुए गेहूं की कीमत तकरीबन पचास हजार करोड़ रुपए होती है, जिससे 30 करोड़ लोगों को सालभर भरपेट खाना दिया जा सकता है। अनाज व सब्जियों के भंडारण ही नहीं, वितरण प्रणाली में भी दिक्कतें हैं। देश के कुल उत्पादित फल-सब्जी का 40 फीसद समय पर मंडी नहीं पहुंच पाने की वजह से सड़-गल जाता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल 23 करोड़ टन दालें, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियां वितरण प्रणाली में खामियों की वजह से खराब हो जाती हैं। जाहिर है कि देश में भुखमरी और कुपोषण की समस्या का समाधान कहीं और है। 






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