देश के सबसे बड़े व राजनीति के लिहाज से अहम दर्जा रखने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत दिनों पूरे देश को एक सार्थक बहस का मुद्दा दे दिया। महापुरुषों के नाम पर होनेवाली छुट्टियों को निरर्थक बताते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि महापुरुषों की जयंती या पुण्यतिथि पर विद्यालयों में घंटे-दो घंटे का आयोजन करके छात्रों को उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से अवगत कराना कहीं बेहतर होगा। योगी ने डॉ. अंबेडकर की जयंती के एक आयोजन में यह बात कहने की जो साहसिक पहल की, उसकी पूरे देश में सकारात्मक प्रतिक्रिया देखी गई। सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों ने भी देशभर में होनेवाली छुट्टियों का चिट्ठा पेश कर यह उजागर किया कि सरकारी दफ्तर और शिक्षण संस्थाओं में अवकाश संस्कृति के चलते न तो पूरा काम हो पाता है और न ही पढ़ाई-लिखाई। जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है तो महापुरुषों के नाम पर साल में 42 छुट्टियां होती हैं। 52 रविवार के साथ दूसरे और तीसरे शनिवार की छुट्टी के 24 दिन और हो जाते हैं। फिर सरकारी कर्मचारी को मिलने वाली तमाम छुट्टियां भी तकरीबन 50 दिन तो होती ही हैं। इस तरह कुल मिलाकर सालभर में आधे से ज्यादा समय सरकारी कर्मचारी छुट्टी मनाते हैं जिसका असर सीधा कामकाज पर पड़ता है और जनता हलकान होती है। इसी तरह शिक्षण संस्थाओं में भी कुल मिलाकर आधे दिन भी पढ़ाई हो जाए तो बड़ी बात है। दरअसल, यूपी की पिछली सरकारों ने विभिन्न जातियों की प्रसिद्ध हस्तियों की याद में इसलिए छुट्टी रखवाई, ताकि सजातीय मतदाता संतुष्ट हों। देश के दूसरे राज्य इस मामले में हालांकि उत्तर प्रदेश से पीछे हैं, परंतु महापुरुषों के नाम पर छुट्टी दिए जाने का चलन सभी जगह है। देशभर में औसतन सरकारी कर्मचारियों को वर्ष के 365 दिनों में से सरकारी कार्यालयों में पाच दिवसीय कार्य सप्ताह होता है। इसका तात्पर्य है कि साल में 104 सप्ताहांत छुट्टियां होती हैं। इसके अलावा तीन राष्ट्रीय अवकाश, 14 राजपत्रित अवकाश और दो प्रतिबंधित अवकाश सरकारी कर्मचारियों को मिलते हैं। प्रतिबंधित अवकाश छोटे धार्मिक समूहों की सुविधा के लिए दिए गए थे, किंतु अब ये सभी के लिए दो अतिरिक्त छुट्टियां बन गए हैं। इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों को 12 दिन का आकस्मिक अवकाश, 20 दिन का अर्द्ध वेतन अवकाश, 30 दिन का अर्जित अवकाश और 56 दिन का चिकित्सा अवकाश मिलता है। कुल मिलाकर साल में इन्हें 249 छुट्टियां मिलती हैं और केवल 116 दिन वे कार्य करते हैं। महिलाओं को छह माह का मातृत्व अवकाश और दो वर्ष का चाइल्ड केयर अवकाश भी मिलता है। सरकारी बाबू इतने से ही खुश नहीं होते हैं। सामान्य कार्य दिवस आठ घंटे का होता है जिसमें एक घंटे का भोजनावकाश भी होता है, किंतु सरकारी कर्मचारी के कार्यालय में घुसते ही उसका चाय का समय शुरू हो जाता है और यह दिन भर चलता रहता है। फिर भी उसके लिए ओवर टाइम की कोई कमी नहीं है। हमेशा छुट्टियां मनाने वालों की पदवी हमारे संसद सदस्यों के लिए आरक्षित है। हमारे संसद सदस्य राष्ट्रीय और राजपत्रित अवकाशों के अलावा 36 दिन के प्रतिबंधित अवकाश के हकदार भी हैं। किंतु वे इतने से भी संतुष्ट नहीं हैं, वे बीच-बीच में संसद सत्र की भी छुट्टी करवा देते हैं। होली और रामनवमी को भी ऐसा ही होता है। हमारे जनसेवकों ने स्वयं को सप्ताह में दो दिन की छुट्टी का हकदार बना दिया है, चाहे इससे करदाताओं का करोड़ों रुपया बर्बाद क्यों न हो जाए। एक सांसद के शब्दों में बीच में ऐसी छुट्टियां करने से मुझे दैनिक भत्ते का नुकसान होता है। जहांतक कार्य संस्कृति का सवाल है तो इस मामले में सबसे खराब रिकार्ड न्यायपालिका का है। न्यायपालिका में लाखों मामले लंबित हैं, फिर भी उच्चतम न्यायालय साल में 193 दिन, उच्च न्यायालय 210 दिन और निचली अदालतें 245 दिन कार्य करती हैं। वहीं अमेरिकी उच्चतम न्यायालय में सालाना छुट्टियां नहीं होती हैं, जबकि वहां के उच्चतम न्यायालय में केवल नौ न्यायाधीश हैं, फिर भी वह सभी मामलों का निपटारा कर देता है, जबकि हमारे यहां 27 न्यायाधीश हैं और मामले कई दशकों से लंबित पड़े हुए हैं। हम नहीं चाहते कि हमारे न्यायाधीशों को छुट्टियां न मिलें, किंतु यदि वे कम छुट्टियां करें और अधिक न्याय दें तो इससे लोगों को न्याय मिलने में सहायता मिलेगी। खुशी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति जेएस खेहर ने घोषणा की है कि इस वर्ष ग्रीष्मावकाश के दौरान तीन पीठें कार्य करेंगी।
बहरहाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस विषय को उठाकर निश्चित रूप से बेहद सूझबूझ का परिचय दिया है। हो सकता है कि इससे महापुरुषों की जाति रूपी पहचान को भुनाने वाले नेतागण बवाल मचाएं, किंतु इससे एक बात साफ हो गई है कि गेरुआ वस्त्रधारी यह संन्यासी मुख्यमंत्री केवल हिंदुत्व का वाहक नहीं, अपितु सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर गहरी पकड़ रखने वाला राजनेता भी है। पिछले दिनों देश के प्रधान न्यायाधीश ने ग्रीष्मावकाश के दौरान सर्वोच्च न्यायालय में संविधान पीठ द्वारा कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई किए जाने का जब निर्णय किया, तब भी अवकाश संस्कृति को लेकर हल्की-सी बहस छिड़ी थी, किंतु योगी जी ने जिस अंदाज में यह सवाल छेड़ा, उसकी जो चर्चा और स्वागत हुआ, इससे लगता है कि बात बढ़ सकती है। उन्होंने अधिकारियों को 16-16 घंटे काम करने की हिदायत दे रखी है। आधी रात तक वे स्वयं बैठकें करते हैं।
दफ्तरों में समय पर आने के लिए भी सख्ती बरती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सुबह जल्दी केंद्र्रीय सचिवालय पहुंच जाते हैं। इसका नतीजा हुआ कि वहां समय पर उपस्थिति होने लगी। इसी तरह योगी जी की इस मुहिम पर राष्ट्रव्यापी चर्चा होनी चाहिए, क्योंकि यदि देश को विकास करना है तो लोगों को भी भरपूर मेहनत करनी चाहिए। प्रश्न उठता है कि क्या हमारा देश इतनी छुट्टियों का भार वहन कर सकता है? अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के बावजूद क्या हम छुट्टियों की इतनी विलासिता भोग सकते हैं? क्या हम अंतहीन छुट्टियां कर सकते हैं और एक बहुसांस्कृतिक विरासत में ये छुट्टियां पेशेवर नुकसान नहीं पहुंचाती हैं? इसके लिए दरअसल हमारे राजनेता दोषी हैं जो प्रतिस्पर्धी लोकप्रियतावाद की खातिर अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए छुट्टियों की घोषणा करते रहते हैं। ऐसे में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अवकाश को लेकर जो बहस शुरू की, वह उत्तर प्रदेश तक ही सीमित न रहकर पूरे देश में फैले, यह जरूरी है।