अंतरराष्ट्रीय योग दिवस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से अब पूरी दुनिया में मनाया जाता है। चीन, सिंगापुर से लेकर अमेरिका तक 177 देशों में लाखों-करोड़ों की संख्या में लोग योगासन कर रहे हैं। जब से संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को योग दिवस घोषित किया है, तब से चीन के सभी शहरों में इस दिन को योग उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पिछले तीन साल में योग आंदोलन का रूप ले चुका है और यह लगातार बढ़ता जा रहा है। सनातन काल से योग भारत में एक जीवन पद्धति के रूप में विकसित हुआ। यह एक प्रकार से वह आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ जोड़ने का काम होता है। यदि हम इसकी आध्यात्मिक गहराइयों में न जाएं तो भी इसके द्वारा शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ किया जा सकता है। इसकी शुरुआत 21 प्रकार के आसनों से की जा सकती है और फिर हम चाहें तो प्राणायाम व ध्यान साधना से ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति कर सकते हैं। ऋषि मुनियों के जमाने से चले आ रहे योग की महत्ता को चिकित्सकों ने भी स्वीकार किया है। दुनिया में योग का बड़ा बाजार भी है, पर इस पर एतराज भी कम नहीं है। यूरोप के बाटिस्ट और आंग्लिकन चर्च ने भी स्कूलों में योगाभ्यास प्रतिबंधित करने की मांग की थी। उधर मलेशिया की नेशनल फतवा कांउसिल ने भी फतवा जारी करके मुसलमानों के लिए योगाभ्यास को वर्जित किया था।
21 अक्टूबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्पोर्ट्स फॉर पीस एंड डेवलपमेंट विषय पर आयोजित चर्चा में शामिल हुए भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने यह बात रेखांकित की थी कि भारत को प्राचीन काल से अनगिनत खेलों-कसरतों के उद्धव स्थल के रूप में जाना जाता है। खासतौर से इसके योग को, जिसका अभ्यास पूरी दुनिया में प्रचलित है। वहीं मोदी ने वैश्विक नेताओं से अपील की थी कि वे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में साल में एक दिन का चुनाव करें और उनकी बात मान ली गई। कार्डियोलाजिस्ट प्रो. पीके गोयल का कहना है कि दिल की बीमारी में योगा को स्टे्रस बस्टर माना जाता है। योगा ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर को कंट्रोल रखता है। योगा दो तरह का होता है, आइसोमेट्रिक और आइसोटॉनिक दोनों ही दिल के लिए फायदेमंद होते हैं। फिजिकल योगा जहां कोलेस्ट्राल को कम करता है। वहीं दिल के आर्टरीज के ब्लॉकेज होने की संभावना को भी कम करता है। गाइनीकॉलाजिस्ट डॉ. पीएल शंखवार के अनुसार योगा गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद होता है। योगा से पेल्विस मसल्स रिलेक्स होती है, जिससे महिलाओं में नॉर्मल डिलीवरी होने के चांस बढ़ जाते हैं। योगा से महिलाएं डिलीवरी के बाद वो बहुत जल्दी फिट हो जाती हैं। न्यूरो सर्जन डॉ. एके श्रीवास्तव ने बताया कि स्पाइनल से संबंधित जितनी भी समस्याएं होती हैं, उनके लिए मरीजों को कुछ आसन बताए जाते हैं। चूंकि योगा एंजाइटी डिप्रेशन, स्लीप डिस्टर्ब, मूड रिलेटेड समस्याओं के लिए बहुत फायदेमंद है, इसलिए डॉक्टर्स इसे प्रिफर करते हैं। कई बार मरीज को न्यूरोलॉजिकल समस्या होती है। योगा बीपी और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है, इसलिए इस समस्या से जो न्यूरो की समस्या होती है, वो होने के चांस कम हो जाते हैं। दुनिया के कई विकसित देशों में भी योग की महत्ता स्वीकार की गई है। अमेरिका में लंबे समय से योग को आजमाया जा रहा है। बोस्टन हो या सैन फ्रांसिस्को, वहां के शहरों में लोग योगासन करते दिख जाते हैं। भारतीय मूल के कई योगाचार्य वहां लोगों को बड़े पैमाने पर योग कराते हैं, जैसे योग गुरु विक्रम चौधरी, जिन्होंने हॉट योगा से लेकर योग की कई नई विधियों को अपने नाम पेटेंट कराया हुआ है। इन योग गुरुओं ने पश्चिमी कसरतों के साथ योग के फ्यूजन का प्रयास किया है। यहां योग को लेकर एक बड़ी घटना पिछले साल हुई, जब फर्स्ट लेडी मिशेल ओबामा की देखरेख में ईस्टर के मौके पर व्हाइट हाउस में योग उद्यान बनवाया गया। आयोजन में सैकड़ों अमेरिकियों ने भाग लिया था। इसलिए योग को नई मान्यता भले ही अब मिली हो, पर दुनिया में इसका बड़ा बाजार पहले से तैयार हो चुका है। अमेरिका से प्रकाशित ‘योगा जर्नल’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में ही योग और योग से जुड़ी चीजों पर वहां के लोग सालाना कई अरब डॉलर खर्च करते हैं। नियमित योगासन करने वालों की संख्या करीब पौने दो करोड़ है। वर्ष 2002 के मुकाबले यह इजाफा 43 से 50 फीसदी तक बताया गया था। एक दावा यह भी है कि कई कठिन बीमारियों से निजात पाने के लिए ब्रिटेन, आस्टे्रलिया, अमेरिका, न्यूजीलैंड समेत कई यूरोपीय मुल्कों के नामी कास्मेटिक या प्लास्टिक सर्जन भी योग व आयुर्वेद की शरण लेते हैं। कुल मिलाकर अमेरिका में योग का बाजार फिलहाल 5.7 अरब डॉलर का है। अपने देश में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, गीता, रामचरितमानस आदि सभी धार्मिक ग्रंथों और उनके संतो ने योग की महत्ता को जाना-समझा और समाज को समझाया। योग की दुनिया को कोने-कोने तक पहुंचाने में महेश योगी और स्वामी रामदेव की बड़ी भूमिका है। स्वामी रामदेव ने दुनिया के कई देशों में योग शिविर लगाकर विदेशी सत्ताधीशों को भी ‘अनुलोम-विलोम’ सिखा दिया है। हमारा आष्टंाग योग आठ अंगों में विभक्त है। पहला है यम यानी अहिंसा, सत्य, अस्तेय यानी चोरी का अभाव, ब्रम्हचर्य और अपरिग्रह। दूसरा है नियम यानी शौच, संतोष, तपस्या, स्वाध्याय यानी अध्यात्म-शास्त्रपाठ और ईश्वरप्राणिधान यानी ईश्वर को आत्मसमर्पण। तीसरा है आसन यानी बैठने की प्रणाली। चौथा है प्राणायाम यानी प्राण का संयम। पांचवा है प्रत्याहार यानी मन की विषयाभिमुखी गति को फेरकर उसे अंतर्मुखी करना। छठा है धारणा यानी किसी स्थल पर मन का धारण। सातवां है ध्यान। और आठवां है समाधि यानी अतिचेतन अवस्था। यम और नियम चरित्र निर्माण के साधन हैं। इनकी नींव बनाए बिना किसी तरह की योग साधना सिद्ध न होगी। यम और नियम में दृढ़प्रतिष्ठ हो जाने पर योगी अपनी साधना का फल अनुभव करना आरंभ कर देते हैं। इनके न रहने पर साधना का कोई फल न होगा। योगी को चाहिए कि तन-मन-वचन से किसी के विरुद्ध हिंसाचरण न करें। दया मनुष्य जाति में ही आबद्ध न रहे, वरन उसके परे भी वह जाए और सारे संसार का अलिंगन कर ले। यम और नियम के बाद आसन आता है। जब तक बहुत उच्च अवस्था की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक रोज नियमानुसार कुछ शारीरिक और मानसिक क्रियाएं करनी पड़ती हैं। अतएव जिससे दीर्घकाल तक एक ढंग से बैठा जा सके, ऐसे एक आसन का अभ्यास आवश्यक है। जिनको जिस आसन से सुभीता मालूम होता हो, उनको उसी आसन पर बैठना चाहिए। एक व्यक्ति के लिए एक प्रकार से बैठकर सोचना सहज हो सकता है, परंतु दूसरे के लिए, संभव है वह बहुत कठिन जान पड़े।
योगियों के अनुसार, योगसाधना के समय शरीर के भीतर नाना प्रकार के कार्य होते रहते हैं। स्नायविक शक्ति प्रवाह की गति को फेरकर उसे नए रास्ते से दौड़ाना होगा। तब शरीर में नए प्रकार के स्पंदन या क्रिया शुरू होगी। सारा शरीर मानो नए रूप से गठित हो जाएगा। इस क्रिया का अधिकांश मेरूदंड के भीतर होगा। इसलिए आसन के संबंध में इतना समझ लेना होगा कि मेरूदंड को सहज स्थिति में रखना आवश्यक है- ठीक सीधा बैठना होगा- वक्ष, ग्रीवा और मस्तक सीधे और समुन्नत रहे, जिससे देह का सारा भार पसलियों पर पड़े। यह तुम सहज ही समझ सकोगे कि वक्ष यदि नीचे की ओर झुका रहे तो किसी प्रकार का उच्च चिंतन करना संभव नहीं। राजयोग का यह भाग हठयोग से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। हठयोग केवल स्थूल देह को लेकर व्यस्त रहता है। इसका उद्देश्य केवल स्थूल देह को सबल बनाना है। डेलसर्ट और अन्य आचार्यों के ग्रंथों में इन क्रियाओं के अनेक अंश देखने को मिलते हैं। उन लोगों ने भी शरीर को भिन्न-भिन्न स्थितियों में रखने की व्यवस्था की है। हठयोग की तरह उनका भी उद्देश्य दैहिक उन्नति है। शरीर की ऐसी कोई पेशी नहीं, जिसे हठयोगी अपने वश में न ला सके। हृदययंत्र उसकी इच्छा के अनुसार बंद किया या चलाया जा सकता है- शरीर के सारे अंश वह अपनी इच्छानुसार चला सकता है।
मनुष्य किस प्रकार दीर्घजीवी हो, यही हठयोग का एकमात्र उद्देश्य है। शरीर किस प्रकार पूर्ण स्वस्थ रहे, यह हठयोगियों का एकमात्र लक्ष्य है। हठयोगियों का यह दृढ़ संकल्प है कि हम हम अस्वस्थ न हों। और इस दृढ़ संकल्प के बल से वे कभी अस्वस्थ होते भी नहीं। वे दीर्घजीवी हो सकते हैं, सौ वर्ष तक जीवित रहना तो उनके लिए मामूली सी बात है। पर भारतीय योगसाधना का लक्ष्य बहुत ऊंचा है। उसने योग को आत्मा के परमात्मा से मिलने का उपाया बताया है।
(लेखक हिंदी विश्वकोश के सहायक संपादक रहे हैं)