अभी कुछ दिन पहले समाचार पत्रों में एक छोटी-सी खबर छपी। खबर थी भारत में वर्ष 2016 में 62.3 अरब डॉलर प्रत्यक्ष पूंजी निवेश यानी एफडीआई हुआ। खबर महत्वपर्ण थी। परंतु, ज्यादातर मीडिया ने इसे जितना महत्व देना चाहिए था, नहीं दिया। भारत से अधिक एफडीआई अन्य किसी देश को नहीं मिली। यकीन मानिए भारत में अमेरिका तथा चीन से भी अधिक एफडीआई आई। देश में असहिष्णुता के सवाल पर बेवजह बहस चलाई जा रही है। कहा जा रहा है कि सरकार कुछ कर ही नहीं रही। कहने वाले जो भी कहें, देश विकास के रास्ते पर चल रहा है। दुनियाभर के बड़े निवेशक भारत में अपनी पूंजी को लगाने का मन बना चुके हैं। यदि यह न होता तो भारत किसी भी हाल में अमेरिका या चीन से एफडीआई खींचने में इक्कीस न रहता। मोदी अमेरिका, जापान से लेकर साउथ कोरिया, जर्मनी, सिंगापुर वगैरह जाकर वहां के बड़े निवेशकों से अवश्य मिलते हैं। उन्हें भारत में निवेश करने का न्यौता देना नहीं भूलते हैं। उसका प्रत्यक्ष लाभ दिख रहा है। जाहिर है, भारत निवेशकों का सबसे प्रिय देश बन चुका है। पर देखिए कि इतनी भारी-भरकम उपलब्धि की कोई चर्चा तक नहीं है। साफ है कि देश में एक वर्ग इस तरह का भी है, जो सकारात्मक हलचलों को लेकर सार्थक बहस करने के लिए तैयार नहीं है। सबसे गौरतलब तथ्य ये है कि अब देश की विदेश नीति में आर्थिक पक्ष खासा अहम है। अब विदेश नीति में व्यापारिक संबंधों पर फोकस रखना सबसे अहम हो गया है। बेशक, भारत के लिए इस समय एफडीआई ज्यादा से ज्यादा आकर्षित करना सबसे अहम चुनौती है। बिना एफडीआई के देश में विकास की गति तेज नहीं हो सकती।
मोदी जापान और साउथ कोरिया का भी दौरा कर चुके हैं। जापान ने अगले पांच सालों में 35 अरब रुपए का निवेश का वादा किया। जबकि साउथ कोरिया ने 10 अरब रुपए का। चीन के साथ हमारा सीमा विवाद चल रहा है। फिर भी चीन ने अगले पांच बरसों के दौरान 20 अरब रुपए के निवेश का वादा किया। यानी वे देश भी आपसी व्यापारिक संबंध मजबूत करने के पक्ष में हैं, जिनके बीच में सीमा विवाद हैं। ये निवेश के वादे इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि मोदी का वादा है कि भारत में निवेश का लाभ होगा। जो भी कंपनी भारत में निवेश करेगी, उसके हितों का ध्यान रखा जाएगा। बीते कुछ समय के दौरान सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग, माइक्रोसाफ्ट के सीईओ सत्या नडेला और अमेजॉन डॉट कॉम के सीईओ जेफ बेजॉस भारत में थे। सब भारत को लेकर रुचि दिखा रहे हैं। ये सभी गेम चेंजर साबित हुए हैं दुनिया के लिए। इन शिखर कंपनियों के सीईओ का भारत आना बेहद शुभ संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। इन सभी कंपनियों की नेटवर्थ बहुत बड़ी है। सरकार को कोशिश करनी होगी, ताकि ये और इन जैसी दूसरी विख्यात कंपनियां भारत में तेजी से अपना निवेश करें और उसे बढ़ाएं भी। भारत सरकार को भी इन्हें अपने देश में कामकाज करने की तमाम सुविधाएं देनी होंगी। कारण ये है कि इन सीईओज का स्वागत करने के लिए तो पूरी दुनिया पहले से तैयार बैठी है। हमें यह अवसर हाथ से निकलने नहीं देना चाहिए।
मानकर चलिए कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम बदल देगा देश की किस्मत। इसके चलते देश में रोजगार के लाखों पद सर्जित होने जा रहे हैं। दरअसल, मेक इन इंडिया भारत को पूरी दुनिया में निर्माण क्षेत्र में बड़े देश के रूप में बढ़ावा देगा। अगर मेक इन इंडिया का सपना रक्षा के क्षेत्र में ही पूरा हो गया तो देश एक नए युग में प्रवेश करेगा। टाटा समूह, महिंद्रा, लारसन एंड टर्बो यानी एलएंडटी जैसे बड़े औद्योगिक समूह भी भारत के रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में कूद रहे हैं। सबकी बड़ी महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं। सबको रक्षा उत्पादन में गजब की संभावनाएं नजर आ रही हैं। ये लाजिमी ही है, क्योंकि भारत रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक है। अभी तक भारत की निजी क्षेत्र की कंपनियां रक्षा उत्पादन क्षेत्र में सांकेतिक रूप से ही थीं। हाल तक रक्षा क्षेत्र में घरेलू उद्योग के प्रवेश के लिए लाइसेंस और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आदि को लेकर कई बाधाएं थीं। रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में निवेश की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कई नीतियों को उदार बनाया है। सबसे महत्वतपूर्ण बात ये है कि रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए एफडीआई नीति को उदार बनाया गया है। दरअसल, रक्षा क्षेत्र से जुड़े उपकरणों के लिए आयात पर निर्भरता कम करने तथा रक्षा क्षेत्र में उत्पादों के विकास की स्वदेशी नवप्रवर्तनीयता यानी इनोवेशन को प्रोत्साहित करने को उत्सुक भारत सरकार ने निजी क्षेत्र के निवेशकों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा रक्षा संस्थानों में एक लाभकारी सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया है। इसके अतिरिक्त कृषि, रक्षा, विमानन और प्रसारण से लेकर उत्पादन और निर्माण के क्षेत्रों में नियमों को सरल बना दिया गया है। एफडीआई की आवक बढ़ने से स्वाभाविक रूप से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। देश में साक्षरता बढ़ रही है। जाहिर है, जो साक्षर हो रहे हैं उन्हें नौकरी चाहिए। एफडीआई ही इसका जवाब है। चूंकि देश में अब एफडीआई तो भरपूर आ रही है, इसलिए अब को विदेशी निवेशकों के हितों पर विशेष गौर करना होगा। जरा याद करें कि पास्को स्टील और वोडाफोन के साथ देश में क्या हुआ। ये कोई बहुत पुरानी बात नहीं है, जब विदेशी निवेशक भारत से दूरियां बनाने लगे थे। वोडाफोन के साथ क्या हुआ, सबको पता है। उस पर पुरानी तारीख से टैक्स लगाया गया। दुनियाभर के निवेशकों की नजर वोडाफोन टैक्स मामले पर थी। दरअसल, विदेशी निवेशकों के भरोसे के लिए वोडाफोन मामला बेहद अहम था। वोडाफोन विवाद, पुरानी तारीख से कानून बदलकर टैक्स लगाने का मामला था। इस मामले को लेकर वोडाफोन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और जनवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन के हक में फैसला दिया। लेकिन तब यूपीए सरकार ने टैक्स वसूली के लिए कानून ही बदल दिया। सरकार ने कानून बदलकर पुरानी तारीख से विदेश में हुए सभी सौदों पर टैक्स लगा दिया। इस उदाहरण को देने का मकसद यह है कि पाठकों को यह बताया जा सके कि हमारे देश में विदेशी निवेशकों को पहले बुलाकर फिर किस तरह से प्रताड़ित किया गया, पिछली यूपीए सरकार के कार्यकाल में। दक्षिण कोरिया की कंपनी पॉस्को के साथ क्या हुआ। सबको पता है। उसने लाखों करोड़ रुपए का भारत में निवेश का फैसला लिया था। लेकिन उसे उड़ीसा सरकार से कभी अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। अब उसने हारमानकर अपनी भारत की परियोजनाओं को ही बंद करने का फैसला लिया है। पिछली सरकार ने निवेशकों का भरोसा तोड़ा। उन्हें कमीशन के लिए प्रताड़ित करने का आरोप है। उनका करोड़ों रुपया और समय भारत में बर्बाद हुआ। ऐसी स्थिति में यदि प्रधानमंत्री मोदी टूटे हुए भरोसे को फिर से कायम कर निवेश को बढ़ावा दे रहे हैं तो यह वास्तव में काबिलेतारीफ है। बहरहाल, देश में बीफ विवाद से लेकर कथित रूप से घटती टॉलरेंस के मुद्दे के कारण हो रहे शोर के बीच एफडीआई लगातार बढ़ती ही जा रही है। यह देश के लिए शुभ संकेत है। अगर हो सके तो देश को कोसने वाले देख लें कि उनके देश में बहुत कुछ सकारात्मक भी हो रहा है।
(लेखक राज्य सभा सांसद हैं)