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मोदी ने इजरायल में खींची विदेश नीति की नई लकीर
मोदी ने इजरायल में खींची विदेश नीति की नई लकीर
शाहिद नकवी    08 Jul 2017       Email   

इस साल भारत और इजराइल द्विपक्षीय कूटनीतिक संबंधों की 25वीं वर्षगांठ का जश्न मना रहे हैं। लेकिन ये दोनों देश आज जिस तरह अपनी दोस्ती को खुले तौर पर स्वीकार करते हैं, वह हमेशा से उस रूप में नहीं था। भारत ने साल 1992 में इजरायल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किए थे, मगर किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने कभी वहां का दौरा नहीं किया। साल 2003 में तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन भारत की यात्रा पर आए थे। ऐसा करने वाले वह पहले इजरायली प्रधानमंत्री थे। भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को रक्षा और व्यापार सहयोग से लेकर रणनीतिक संबंधों तक विस्तार देने का श्रेय काफी हद तक उनको ही जाता है। बहरहाल, केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के 2014 में सत्तासीन होने के बाद तय था कि अब दोनों देशों के रिश्तों में नई इबारत लिखी जाएगी। भारतीय जनता पार्टी यह मानती रही है कि इजरायल से मजबूत रिश्ते स्थापित होने से दोनों देशों का भला होगा। कहा जाता है कि दोनों देशों की सत्तासीन पार्टियां, यहां की भारतीय जनता पार्टी और वहां की लिकुड में राष्ट्रवाद के सवाल पर एक ही राय
है। यानी दोनों देशों में विचारधारा के स्तर पर अनेकों समानताएं हैं। इसके कारण ही अब दोनों देशों के आपसी संबंधों को विस्तार मिलना तय है। दरअसल साल 1948 में जन्म के बाद से ही इजरायल फिलिस्तीनियों और पड़ोसी अरब देशों के साथ जमीन के स्वामित्व के सवाल पर लगातार लड़ रहा है। वैसे भारत ने 1949 में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल को शामिल करने के खिलाफ  वोट दिया था, लेकिन फिर भी इजरायल को शामिल कर लिया गया। एक साल बाद ही भारत ने इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया और 15 सितंबर, 1950 को इजरायल को मान्यता दे दी। यही भारत और इजरायल के संबंधों का आगाज था। जल्दी ही इजरायल ने मुंबई में अपना वाणिज्य दूतावास शुरू कर दिया, पर भारत अपना वाणिज्य दूतावास इजरायल में नहीं खोल सका। भारत और इजरायल को एक दूसरे के यहां आधिकारिक तौर पर दूतावास खोलने में चार दशकों से भी लंबा वक्त लग गया। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदा इजरायल यात्रा एतिहासिक होने के साथ-साथ दोनों देशों के लिए मील का पत्थर साबित होगी। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की इजरायल यात्रा को भारत की विदेश नीति में अहम बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत का खाड़ी के मुस्लिम देशों से अच्छा संबंध रहा है। दूसरी तरफ , इजरायल से खाड़ी के मुस्लिम देशों के संबंध काफी कड़वे हैं। दुनियाभर के मुसलमानों के मन में इजरायल की नकारात्मक छवि है। अनौपचारिक रूप से कहा जाता है कि इजरायल परमाणु शक्ति संपन्न देश है और अपनी ताकत के दम पर ही अस्तित्व में है। मोदी की इस यात्रा को एक अहम कदम माना जा रहा है। भारत और इजरायल के बीच 25 सालों से राजनयिक संबध हैं, लेकिन भारत में बड़ी मुस्लिम आबादी होने के कारण दोनों देशों के बीच संतुलित गतिविधि ही देखने को मिलती थी।
मोदी की इस यात्रा की सबसे अहम बात यह है कि उन्होंने भारत के अतीत की विदेश नीति से अलग एक लकीर खींच दी है। इस यात्रा को मुस्लिम देशों के खिलाफ  भी नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि भारत सरकार का कहना है कि वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में व्यावहारिक और यथार्थवादी रुख अपना रही है। ये बात अलग है कि इजरायल जाने में किसी भारतीय पीएम को 70 साल लग गए, लेकिन दोनों देशों के रिश्ते सैकड़ों साल पुराने हैं। 13वीं सदी में भारत के सूफी संत बाबा फरीद ने यहां एक गुफा में साधना की थी। कहा जाता है कि बाबा फरीद ने जिस गुफा में साधना की थी, वह जगह आज भी भारत व यरूशलम के 800 साल पुराने रिश्तों का प्रतीक बनी हुई है। युद्ध विशेषज्ञ कहते हैं कि इजरायल तब भी भारत के साथ खड़ा था, जब उसे मदद की सर्वाधिक दरकार थी। यानी युद्धों के कठिन दौर में इजरायल ने हमारा साथ दिया। इजरायल ने 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ  लड़ाइयों के दौरान भी भारत को मदद दी। 1999 के करगिल युद्ध में इजरायल मदद के बाद भारत और इजरायल खासतौर पर करीब आए। कहा जा सकता है कि हमेशा से ही भारत और इजरायल के बीच सैन्य संबंध सबसे अहम रहे हैं। यानी संकट के समय भारत के अनुरोध पर इजरायल की त्वरित प्रतिक्रिया ने उसे भारत के लिए भरोसेमंद हथियार आपूर्ति करने वाले देश के तौर पर स्थापित किया है। इसीलिए भारत और इजरायल पिछले कुछ समय में एक दूसरे के काफी करीब आए हैं। सिर्फ  सैन्य ताकतों के हिसाब से ही नहीं कूटनीति के हिसाब से भी मोदी के इस दौरे की काफी अहमियत है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अरब दुनिया में भारत के किसी दोस्त देश की तरफ  से इसे लेकर फिलहाल कोई शिकायत सुनने को नहीं मिली है। न तो सार्वजनिक रूप से और न ही पिछले दरवाजे से। इजरायल-भारत दोस्ती के प्रति अरब सरकारों की बेफिक्री की एक खास वजह ये बताई जा रही है कि उनमें से अनेक अब खुद यहूदी मुल्क के साथ रिश्ता बनाना चाहते हैं। परमाणु करार के बाद ईरान का बढ़ता प्रभाव, इजरायल से ईरान की पुरानी अदावत को देखते हुए भी अरब देशों का रुख इजराइल के प्रति नरम हुआ है। यह भी सही है कि भारत फिलिस्तीनियों का बहुत करीबी दोस्त रहा है और फिलिस्तीनी राष्ट्र निर्माण के संघर्ष में उसने साथ दिया है। लेकिन पिछले ढाई साल में विभिन्न क्षेत्रों में इजरायल से भारत की सहमतियां बढ़ी हैं। मोदी सरकार ने अपनी विदेश नीति में अमेरिका को विशेष महत्व दिया। इसका भी स्वाभाविक परिणाम था कि इजरायल, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भारत के संबंध मजबूत हुए, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी धुरी के इर्द-गिर्द रहे हैं। इसलिए मौजूदा सच्चाई यह है कि भारत अब इजरायल का भरोसेमंद सहयोगी है। दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ  लड़ाई, सुरक्षा, कृषि, पानी और ऊर्जा सेक्टर में साथ मिलकर वर्षों से काम कर रहे हैं। भारत और इजरायल के बीच खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान को लेकर भी साझेदारी है। इजरायल भारत को मिसाइल और ड्रोन विमान सहित सैन्य उपकरण प्रदान करने वाला महत्वपूर्ण देश है, वह इजरायल से सैन्य साजो-सामान खरीदने वाला सबसे बड़ा देश है।
इजरायल ने कूटनीतिक, राजनीतिक और सैन्य लिहाज से भारत को ये बताया है कि जिस तरह से उनके देश के आसपास इस्लामिक देश हैं, उसी तरह भारत के सामने भी इस्लामिक खतरा है। दरअसल कुछ समय पहले तक इन रक्षा सौदों को गुप्त रखा जाता था, लेकिन समय के साथ दोनों देशों के बीच संबंध बहुत गहरे हुए हैं और पिछले पांच साल में इजरायल ने हर साल औसतन एक अरब डॉलर के हथियार भारत को बेचे हैं। हथियारों की खरीद दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू रहा है। इजरायल, हाल के वर्षों में अमेरिका के बाद भारत को हथियार सप्लाई करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। कुछ माह पहले जब इजरायली बमबारी में बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी मारे गए थे तो संसद में विपक्षी दलों ने गाजा पर एक प्रस्ताव पारित करने की मांग की थी। तब मोदी सरकार ने यह कहते हुए इससे इनकार कर दिया था कि यह देश के हित में नहीं है, क्योंकि वहां के दोनों ही पक्षों से भारत के दोस्ताना रिश्ते हैं। अटल बिहार वाजपेयी की सरकार के समय भारत और इसराइल के रिश्ते बेहतर होने लगे थे। तभी वाजपेयी की सरकार के समय में अरियल शेरॉन 2003 में भारत का दौरा करने वाले पहले इजरायली प्रधानमंत्री बने थे। 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार आ गई और फिर से भारत का इजरायल के प्रति रुख संतुलित हो गया। इसका कारण चाहे फिलिस्तीन को भारत का पारंपरिक समर्थन हो या अंदरूनी राजनीति की मजबूरियां, मगर इजरायल से संबंधों को स्वीकार करने में भारत की हिचक कायम रही। यह नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जाकर टूटी। अक्टूबर, 2015 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की इजरायल की ऐतिहासिक यात्रा से इसका आगाज हुआ। इस यात्रा के दौरान 10 अकादमिक, आर्थिक व सांस्कृतिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। भारत के राष्ट्रपति की इजरायल यात्रा के लगभग एक साल बाद नवंबर 2016 में इजरायल के राष्ट्रपति रिवेन रिवलिन ने भारत की यात्रा की। राष्ट्रपति अपने साथ डेलिगेट्स का एक बड़ा समूह लेकर आए, जिनमें शिक्षाविदों तथा डिफेंस इंडस्ट्री के लोग भी शामिल थे। यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रिवेन रिवलिन ने कृषि मैनजमेंट और वाटर रिसोर्सेज समझौते पर हस्ताक्षर किए। साथ ही रक्षा क्षेत्र में और आतंकवाद के खिलाफ  सहयोग को और आगे बढ़ाने पर बल दिया गया। रक्षा सहयोग के अलावा दोनों देशों के बीच दिविपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में कृषि और विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। भारत-इजरायल सहयोग के तहत आठ राज्यों में सेंटर फॉर एक्सिलेंस स्थापित किया जा चुका है, जिनमें सब्जियों, फूलों और फलों के उत्पादन में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को प्रदर्शित किया जाता है। अब तक 15 सेंटर फॉर एक्सिलेंस की स्थापना देश के कई राज्यों में हो चुकी है, जिनमें हरियाणा और महाराष्ट्र शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इजरायल दौरा दोनों देशों के संबंधों में एक अहम पड़ाव है। पीएम मोदी का इजरायल दौरा न सिर्फ  आपसी संबंधों के मद्देनजर अहम है, बल्कि इससे भारत को रक्षा के क्षेत्र में भी बड़ी सफलता हाथ लगने वाली है। इसके अलावा आतंकवाद के खिलाफ  लड़ने में भी भारत को इस मजबूती मिलने वाली है। इजरायल से भारत को दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने वाला ताकतवर ड्रोन मिलने वाला है। पीएम मोदी के दौरे पर इजराइल से 10 हेरॉन टीपी ड्रोन मिलने की उम्मीद है। अब ऐसा पहली बार होगा, जब भारतीय सेना लड़ाकू ड्रोंस से लैस होगी। भारत के लिए मेड इन इजरायल लड़ाकू ड्रोन एक गेमचेंजर माने जा रहे हैं। इजरायल से मिलने वाले ये लड़ाकू ड्रोंस आतंकवाद के खिलाफ  भारत की लड़ाई में भारतीय सेना के लिए तुरुप का इक्का साबित होंगे। बिलकुल वैसे ही होंगे, जैसे अमेरिकन प्रिडेटर और रीपर ड्रोंस अफगानिस्तान-पाकिस्तान और इराक में आतंकी अड्डों को नेस्तनाबूत कर देते हैं। जानकार कहते हैं कि हेरॉन ड्रोन भारतीय सेना में शामिल हो जाएंगे तो पीओके में आतंकी कैंपों पर कार्रवाई करना बेहद आसान होगा। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी देश की विदेश नीति की परंपरागत सोच को बदल रहे हैं। वह एक तरफ  तो सऊदी अरब का दौरा करते हैं, संयुक्त अरब अमीरात के सुल्तान को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाते हैं और इजरायल का दौरा भी करते हैं। मोदी की इजराइल यात्रा पर मुस्लिम देशों का मौन ये बता रहा है कि अब समय बदल रहा है। इसलिए भारतीय मुसलमानों को भी अब बदलते समय के साथ चलना सीखना चाहिए। दुनिया के मुस्लिम देश किससे सम्बंध रखते हैं और किससे नहीं, ये भारतीय मुसलमानों की सोच का विषय नहीं होना चाहिए। भारत का कौन दोस्त है और कौन दुश्मन, इसको सोचना चाहिए। सकारात्मक नजरिए के साथ उन्हें अपनी चिंताएं सरकार पर छोड़नी चाहिए, ताकि वह बदलते भारत में अपने लिए विकास को विस्तार देने का नया अध्याय तैयार कर सकें।






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