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बढ़ती आबादी का कहर
बढ़ती आबादी का कहर
फिरदौस खान    11 Jul 2017       Email   

आज है विश्व जनसंख्या दिवस

कहते हैं रौनक इंसानों से ही होती है। कोई जगह कितनी ही खूबसूरत क्यों न हो, अगर वहां कोई इंसान नजर न आए तो वह भी सूनी-सूनी लगती है। इंसानों से ही ये दुनिया आबाद है। आबादी किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत है, सबसे बड़ी पूंजी है, साधन है। आबादी ही खाद्यान्न, फल-फूल-सब्जियां व जिंदगी की जरूरत की अन्य चीजों का उत्पादन करती है, उनका इस्तेमाल भी करती है। आबादी ही सेवाएं मुहैया कराती है और इनका उपयोग भी यही आबादी करती है। आबादी से ही देश और समाज का वजूद कायम है। लेकिन अगर यही आबादी जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो अनेक मुसीबतें भी पैदा कर देती है। आज लगातार बढ़ती आबादी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। बढ़ती आबादी की रिहायशी और अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए हरे-भरे वनों और पेड़-पौधों को काफी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। जंगली इलाकों में वृक्षों को काटकर वहां बस्तियां बसाई जा रही हैं। फर्नीचर और ईंधन आदि के लिए हरे-भरे पेड़ों को काटा जा रहा है। इंसान की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। नतीजतन, प्राकृतिक चीजें मिट्टी, पानी और हवा प्रदूषित होने लगीं। इसका सीधा असर इंसान की सेहत पर भी पड़ा है।
बढ़ती जनसंख्या के प्रति जनमानस को जागरूक करने के लिए हर साल 11 जुलाई  को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 1987 में की गई थी। दरअसल, 11 जुलाई 1987 में दुनिया की आबादी 5 अरब से ज्यादा हो गई थी, जो मानव समाज के लिए आने वाले खतरे की दस्तक थी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनियाभर में खासकर उन देशों में जागरूकता फैलाने का फैसला किया, जहां आबादी बेहिसाब बढ़ रही थी। तब से इस दिन हर साल विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाने लगा। फिलहाल दुनिया की आबादी 7 अरब से ज्यादा है। साल 2050 तक ये आंकड़ा तकरीबन दस अरब और 2100 तक 11 अरब पहुंचने का अनुमान है। इतने लोगों के लिए रहने के लिए घर और खाने के लिए भोजन और पीने के लिए पानी कहां से आएगा। यह एक बड़ा सवाल है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन का मानना है कि 2050 तक खाद्यान्न की पैदावार दोगुनी करनी पड़ेगी, तभी आबादी का पेट भरा जा सकेगा।
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की आबादी एक अरब 21 करोड़ एक लाख 93 हजार 422 है। यह आबादी अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल आबादी से भी ज्यादा है। देश के राज्यों की आबादी दुनिया के कई देशों की आबादी से ज्यादा है, मसलन ओडिशा की आबादी अर्जेंटीना की आबादी से ज्यादा है। इसी तरह राजस्थान की आबादी इटली की आबादी से ज्यादा है। मध्य प्रदेश की आबादी थाईलैंड से और तमिलनाडु की आबादी फ्रांस की आबादी से ज्यादा है।  उत्तर प्रदेश की आबादी ब्राजील, गुजरात की आबादी दक्षिण अफ्रीका और पश्चिम बंगाल की आबादी वियतनाम की आबादी से ज्यादा है। झारखंड की आबादी यूगांडा और उत्तराखंड की आबादी ऑस्टि्रया की आबादी से ज्यादा है। केरल की आबादी कनाडा और आसाम की आबादी उज्बेकिस्तान की आबादी से ज्यादा है। इस लिहाज से यह कहना गलत न होगा कि भारत में कई देश बसते हैं और इसके राज्य कई देशों से आगे हैं। लेकिन भारत के पास दुनिया का महज 2.4 फीसद इलाका ही है। पिछली एक दहाई में देश की आबादी 17.64 फीसद की दर से बढ़ी है। देश में आबादी बढ़ने की एक बड़ी वजह जन्म दर का मृत्यु दर से ज्यादा होना है। देश में मृत्यु दर को कम करने में कामयाबी हासिल कर ली गई, लेकिन जन्म दर में कोई कमी नहीं आई, बल्कि यह बढ़ गई। सालाना हर 1000 लोगों के पीछे 15 लोग बढ़ जाते हैं। अगर आबादी इसी रफ्तार से बढ़ती रही, तो साल 2030 तक चीन को पछाड़कर भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। यहां हर एक मिनट में 25 बच्चों का जन्म होता है। यह संख्या सिर्फ  उन बच्चों की है, जो अस्पतालों में पैदा होते हैं और जिनका पंजीकरण कराया जाता है। गांव-देहात और छोटे-बड़े शहरों में घरों में पैदा होने वाले बच्चों की तादाद इसमें शामिल नहीं है। अगर इनकी संख्या मालूम हो तो यह दर न जाने कहां पहुंच जाए।
19वीं सदी की शुरुआत में जब देश में पहली बार जनगणना हुई थी, तब देश की आबादी 20 करोड़ थी। इसके कुछ अरसे तक तो आबादी में ठहराव ही रहा, लेकिन इसके बाद यह तेजी से बढ़ने लगी। भारत पहला देश है, जिसने 1950 में परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया। सरकार ने बढ़ती आबादी के प्रति जनमानस में जागरूकता पैदा करने के लिए हम दो-हमारे दो, छोटा परिवार-सुखी परिवार और बढ़ती आबादी का बोझ-घटते संसाधन जैसे नारे भी दिए, लेकिन उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिली। समाज में कोई बदलाव नहीं आया। हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो बच्चों को ईश्वर की देन मानते हैं और बच्चों की कतार लगाते रहते हैं, भले ही उनकी हैसियत बच्चों की अच्छी परवरिश करने की कतई न हो। ऐसे परिवारों के बच्चों को न तो पौष्टिक भोजन मिल पाता है और न ही अच्छी शिक्षा। छोटी उम्र से ही अभिभावक उन्हें छोटे-मोटे काम-धंधों में लगा देते हैं। खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की उम्र में ये बच्चे बाल मजदूरों का अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हो जाते हैं। कुछ बच्चे नशीले पदार्थों की गिरफ्त में फंस जाते हैं, बाद में यही बच्चे अपराध के दलदल में भी धंस जाते हैं। और इस तरह उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
लगातार बढ़ती आबादी पर विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है। दुनिया के महान भौतिकविद् स्टीफन हॉकिंग ने धरती पर मानव जीवन को लेकर सौ सालों के बाद होने वाली मुश्किलों के लिए आगाह किया है। उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी और उल्का पिंडों के टकराव को देखते हुए खुद को बचाए रखने के लिए मनुष्य को दूसरी धरती खोज लेनी चाहिए।
इस बढ़ती आबादी ने बहुत-सी समस्याएं पैदा की हैं। साधन सीमित हैं। जमीन को खींचकर बड़ा तो नहीं किया जा सकता है। बस्तियां बस रही हैं और खेत लगातार छोटे होते जा रहे हैं। खाद और रसायनों का इस्तेमाल करके आखिर कब तक कृषि भूमि का दोहन किया जा सकता है। रसायनों के ज्यादा इस्तेमाल से खेत भी बंजर होने लगे हैं। जब तक बढ़ती आबादी पर काबू नहीं पाया जाता, तब तक साधन कम ही पड़ते रहेंगे। अगर हमें जल, जंगल और जमीन को बचाना है, तो किसी भी हाल में बढ़ती आबादी पर रोक लगानी ही होगी। यह तभी हो सकता है, जब सख्ती बरती जाए। सनद रहे, जनसंख्या विस्फोट एक बड़ी समस्या है। यह कहना गलत न होगा कि यह अनेक समस्याओं की जड़ है। बढ़ती आबादी की वजह से बेरोजगारी बढ़ गई है। अमीर और अमीर होता जा रहा है, गरीब और गरीब हो रहा है। अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। गरीबी बढ़ने से अराजकता और अपराध बढ़ते हैं, जो किसी भी देश और समाज के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। देश में शहरी आबादी के साथ-साथ स्लम आबादी में भी इजाफा हो रहा है। 2011 की जनगणना के आधार पर सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में साढ़े छह करोड़ से ज्यादा लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। यानी इंग्लैंड या इटली की कुल आबादी जितने लोग भारत में स्लम बस्तियों में जिंदगी गुजार रहे हैं। ये लोग बुनियादी जरूरत की सुविधाओं तक के लिए तरस रहे हैं।
दरअसल, बढ़ती आबादी एक संवेदनशील सामाजिक ही नहीं, धार्मिक मुद्दा भी है। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रमों पर पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी सरकार को कोई खास कामयाबी नहीं मिलती। लड़कों की चाह में भी लोग लगातार बच्चे पैदा करते रहते हैं। बाल विवाह और कम उम्र में शादी होने से भी आबादी बढ़ती है। लोगों को छोटे परिवार के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। उन्हें समझाना होगा कि छोटे परिवार में साधनों का ज्यादा बंटवारा नहीं होता। इसके साथ ही बच्चों की अच्छी परवरिश होती है। उन्हें बेहतर रहन-सहन और अच्छा खान-पान मिलता है। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई जा सकती है। छोटा परिवार ही सुखी परिवार होता है। एक सुखी परिवार ही सुखी समाज की पहली सीढ़ी है। सरकार को भी बढ़ती आबादी पर रोक लगाने के लिए सख्त और कारगर कदम उठाने चाहिए। जनमानस को भी रूढ़िवादिता त्याग कर अपने, अपने परिवार, अपने समाज और अपने देश के भले के लिए आगे आना होगा, तभी यह दुनिया इंसानों के रहने लायक¸ बनी रह सकती है।
(लेखिका स्टार न्यूज एजेंसी में संपादक हैं)






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