पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले की जिम्मेदारी ली है। इस हमले में 6 महिलाओं समेत 7 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी, जबकि 32 घायल हो गए थे। कश्मीर के आईजी मुनीर खान के अनुसार, पाकिस्तानी आतंकवादी अबू इस्माइल ने हमले की साजिश रची थी। आईबी का कहना है कि इस हमले को कुल 4 आतंकियों ने अंजाम दिया। इसमें पाकिस्तान के दो और दो स्थानीय आतंकी थे। सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अमरनाथ श्रद्धालुओं पर हमले के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कश्मीर की स्थिति से जुड़ी जानकारी दी। जानकारी मिलने पर पीएम ने घटना की कड़ी निंदा की तथा शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की। सबके बावजूद इस हमले ने कुछ सवाल छोड़े हैं, जिसका जवाब सरकार व खुफिया एजेंसियों को देर-सबेर देना होगा।
गौरतलब है कि अनंतनाग जिले में आतंकवादियों ने 10 जुलाई की देर रात एक बस पर हमला कर दिया, जिसमें 6 महिलाओं समेत गुजरात के 7 अमरनाथ यात्रियों की मौत हो गई, जबकि 32 अन्य घायल हो गए। वर्ष 2000 के बाद से यह इस सालाना तीर्थयात्रा पर सबसे घातक हमला है। पुलिस ने बताया कि रात करीब 8ः20 बजे बस पर खानाबल के पास उस समय हमला हुआ, जब वह जम्मू जा रही थी। यह बस उस यात्रा काफिले का हिस्सा नहीं थी, जिसे पुख्ता सुरक्षा प्रदान की जा रही है। यानी बस श्राइन बोर्ड के साथ यात्रा के लिए पंजीकृत नहीं की गई थी। जानकारी के अनुसार, आतंकवादियों ने पहले बोटेंगू में पुलिस के बुलेटप्रूफ बंकर पर हमला किया, जिस पर जवाबी कावार्ई की गई। इस हमले में कोई हताहत नहीं हुआ। इसके बाद आतंकवादियों ने खानाबल के पास पुलिस टुकड़ी पर गोलियां चलाईं। जब पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की तो आतंकवादी भागे और उन्होंने यात्रियों को लेकर जा रही बस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। पुलिस ने कहा कि सात श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि 32 अन्य घायल हुए। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में यह अमरनाथ यात्रियों पर हुई पहली आतंकी घटना है। इस हमले के बाबत कई सवाल उठ रहे हैं, जिसका जवाब स्थानीय खुफिया एजेंसियों को देना होगा।
साल 2001 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार थी, तब अमरनाथ यात्रियों पर हुआ आतंकी हमला आखिरी था। 17 साल ऐसा कुछ नहीं हुआ। 21 जून, 2001 को शेषनाग के निकट हुई आतंकी घटना में 6 तीर्थयात्रियों समेत 13 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें 2 पुलिस वाले भी शामिल थे। आतंकियों ने यात्रा के रास्ते में लैंड माइन से धमाका कर और गोलीबारी कर यात्रियों पर हमला किया था। यह घटना पवित्र गुफा से महज 19 किमी दूर हुई थी। इस जगह पर बड़ी मात्रा में सुरक्षा इंतजाम थे। इस आतंकी घटना के बाद यात्रा स्थगित कर दी गई थी। जब ये हमला हुआ था, उस वक्त तकरीबन तीन हजार अमरनाथ यात्री शेषनाग में रात्रि विश्राम कर रहे थे। हमला करने वाला आतंकी साधु के भेष में तीर्थ यात्रियों के साथ घुलमिल गया था। उसने पहले से रास्ते में आईईडी डिवाइस को रिमोट के जरिए ब्लास्ट किया और एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। उस आतंकी की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी। सुरक्षा बलों को उसके पास से एक एके-47 राइफल और 4 मैगजीन मिली थीं। इस बार केंद्र सरकार ने दावा किया था कि जम्मू-कश्मीर के खराब हालात के बावजूद अमरनाथ यात्रा के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं। लेकिन इस हमले के बाद सरकार के सारे दावे धरे के धरे रह गए। 2001 से पहले साल 2000 में पहलगाम में आतंकियों ने अमरनाथ यात्रियों को अपना निशाना बनाया था। इस हमले में 30 लोगों की जान चली गई थी। उल्लेखनीय है कि अमरनाथ यात्रा हिंदुओं के लिए पवित्र अमरनाथ गुफा तक की यात्रा है। यह गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर यानी 12,756 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां तक केवल पैदल या खच्चर के जरिए ही पहुंचा जा सकता है। दक्षिण कश्मीर के पहलगाम से ये दूरी करीब 46 किलोमीटर की है, जिसे पैदल पूरा करना होता है। इसमें अमूमन पांच दिन तक का वक्त लगता है। एक दूसरा रास्ता सोनमर्ग के बालटाल से भी है, जिससे अमरनाथ गुफा की दूरी महज 16 किलोमीटर है। लेकिन मुश्किल चढ़ाई होने के ये रास्ता बेहद कठिन माना जाता है। ये गुफा बर्फ से ढकी रहती है, लेकिन गर्मियों में थोड़े वक्त के लिए जब गुफा के बाहर बर्फ मौजूद नहीं होती। उस वक्त तीर्थयात्री यहां पहुंच सकते हैं। श्रावण के महीने में ये यात्रा शुरू होती है। 45 दिनों तक तीर्थ यात्री यहां आ सकते हैं। इस यात्रा के लिए आने वाले लोगों की बढ़ती संख्या को देखकर ही 2000 में श्राइन बोर्ड का गठन किया गया, जो राज्य सरकार से मिलकर इस यात्रा को कामयाब बनाता है। अमरनाथ गुफा के दर्शन के लिए हर साल लाखों हिंदू श्रद्धालु अपना पंजीयन कराते हैं। हालांकि कश्मीर में मौजूदा तनाव को देखते हुए इस साल इस यात्रा में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। इस यात्रा की शुरुआत से पहले सुरक्षा बलों ने मीडिया को जो जानकारी दी थी, उसके मुताबिक 300 किलोमीटर लंबे रूट के लिए सेना, पैरामिलिट्री फोर्स और राज्य पुलिस के करीब 14 हजार जवानों को तैनात किया गया है। सेना की दो बटालियनों के अलावा सीआरपीएफ और बीएसएफ की 100 टुकड़ियों को तैनात किया गया है। यह संख्या पिछले साल अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा कर रहे जवानों की तुलना में दोगुनी है। कश्मीर में मौजूदा तनाव को देखते हुए सुरक्षा बलों को किसी चरमपंथी हमले की आशंका पहले से थी, लिहाजा इस बार ज्यादा सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक तकनीकों से भी लैस किया गया था। अलग से बटालियनों को कवर अप के लिए भी तैनात रखा गया। बावजूद इसके 10 जुलाई की रात आतंकी हमले हुए। जिसमें आधा दर्जन से अधिक लोगों की जान चली गई और दर्जनों लोग जख्मी हो गए। अब सवाल यह है कि बगैर श्राइन बोर्ड की अनुमति और उसमें पंजीकृत हुए बगैर गुजरात की यात्रियों से भरी बस को वहां क्यों जाने दिया गया। बस को रास्ते में रोककर सुरक्षाकर्मियों ने जांच-पड़ताल क्यों नहीं की। यदि वह बस सुरक्षा के मानकों को पूरा नहीं कर रही थी तो उसे आगे जाने की अनुमति देनी ही नहीं चाहिए।
बहरहाल, कहा जा रहा है कि कश्मीर में आतंकियों ने अपने 15 साल पुराने अलिखित वादे को तोड़ दिया है, जिसमें अमरनाथ यात्रियों पर हमला नहीं करने की बात कही गई थी। अमरनाथ यात्रा कश्मीर में काफी विवाद का विषय रहा है, बावजूद पिछले एक दशक से ज्यादा समय से यह आतंकी घटनाओं से दूर ही रहा। पिछले साल एक एनकाउंटर में मारे गए हिजबुल आतंकी बुरहान वानी का भी एक वीडियो जून में जारी हुआ था, जिसमें वह अमरनाथ यात्रियों को विश्वास दिला रहा था कि उन्हें आतंकियों द्वारा नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि खून के प्यासे आतंकियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।