राज्यपाल के रूप में राम नाईक सदैव बड़ी लकीर खींचने का प्रयास करते हैं। इसी प्रयास में कई नई व सकारात्मक परंपराओं की नींव पड़ गई। संविधान में अलग से इन विषयों की चर्चा नहीं है। किंतु राज्यपाल को राज्य का संवैधानिक मुखिया बनाया गया। विवेक के प्रयोग का अधिकार दिया गया। इसका मतलब है कि संविधान की भावना इस संबंध में व्यापक थी। राम नाईक ने इसे समझा। उसी संवैधानिक भावना के अनुरूप कार्य किया। वह मूलतः महाराष्ट्र से हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनने के बाद उन्होंने अपने को यहां के लिए समर्पित कर लिया। इससे अवधारणा भी बनी की, जो दायित्व मिले उसे पूरे मनोभाव और समर्पित भाव से करना चाहिए। इस विचार से प्रेरित होकर राम नाईक ने कई परंपराओं की शुरुआत की।
उत्तर प्रदेश से पद्म पुरस्कार से अलंकृत होने वालों को राजभवन में सम्मानित करने की शुरुआत गत वर्ष राम नाईक ने की थी। किसी भी राज भवन में आयोजित होने वाला यह पहला कार्यक्रम था। इसके पीछे भाव यह था कि प्रदेश के लोगों को प्रेरणा मिले। किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को अपने प्रदेश में सम्मानित करना भी एक कर्तव्य है। गत वर्ष ऐसे बारह लोगों को सम्मानित किया गया था। इस बार यह संख्या पांच थी। इस तरह राम नाईक ने अपने द्वारा भारत में पहली बार शुरू किए गए कार्य को आगे बढ़ाया। वह संस्कृत के एक श्लोक का उल्लेख करते हैं। इसमें विद्वानों के लक्षण बताए गए।
विद्वानों का पहला लक्षण यह है कि वह कोई कार्य शुरू नहीं करते। अगली लाइन ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसमें कहा गया कि विद्वान लोग जो कार्य शुरू करते हैं, उसे पूरा करके छोड़ते है। राम ने हंसी में कहा कि इस आधार पर आप मुझे विद्वान समझ सकते हैं। उन्होंने हंस कर कहा। लेकिन बात सच थी। राम नाईक कार्य शुरू भी करते हैं। उसे पूरा भी करते हैं। जो परंपरा बनाते है, उसका निर्वाह करते हैं। उत्तर प्रदेश का गौरव बढ़ाने वाले अनेक कार्यक्रम शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्यपाल के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने चौबीस जनवरी को उत्तर प्रदेश दिवस मनाने के निर्णय का खासतौर पर उल्लेख किया। इसका सुझाव राम नाईक ने दो वर्ष पहले दिया था। योगी सरकार ने इसपर अमल का निर्णय लिया। मुख्यमंत्री की बातों से स्पष्ट हुआ कि उत्तर प्रदेश दिवस व्यापक रूप में मनाया जाएगा। इसमें आमजन की सहभागिता होगी।
राष्ट्रपति भवन में पदम पुरस्कार से चयनित लोगों को अलंकृत किया जाता है। राजभवन में इन्हें सम्मानित किया गया। समाजसेवा के लिए डॉ. मुरली मनोहर जोशी को पद्म विभूषण, शिक्षा साहित्य के लिए प्रो. देवी प्रसाद द्विवेदी को पद्म भूषण, संगीत के लिए रामकुमार चौरसिया, शिक्षा के लिए हरी कृपाल द्विवेदी तथा चिकित्सा के लिए डॉ. मदन माधव गोडबोले को पद्मश्री से अलंकृत किया गया था। राजभवन में उत्तर प्रदेश के इन महानुभावों को राज्यपाल ने सम्मानित किया। सम्मानित होने वालों की तरफ से मुरली मनोहर जोशी को विचार व्यक्त करना था। माहौल विनोदपूर्ण था। जोशी ने पद्म पुरस्कार से संबंधित कई प्रसंग व संदर्भ उठाए। कहा कि इनसे कोई भौतिक लाभ नहीं मिलता। कई बार जुगाड़ से पुरस्कार लेने की चर्चा होती है। सम्मानित होने वालों में चार लोगों का संबंध वाराणसी से है। ये दिलचस्प तथ्य थे। कई बातें आमजन की जानकारी में नहीं थीं। उन्होंने बताया कि पुरस्कार हेतु चयन की सूचना मिलने पर राष्ट्रपति की तरफ से पत्र मिलता है कि आप इन पुरस्कार का उल्लेख अपने नाम के साथ नहीं कर सकते। राम नाईक ने हाजिर जवाबी दिखाई। कहा कि उन्हें राष्ट्रपति का ऐसा कोई पत्र नहीं मिला, जिसमें इस अलंकार के साथ नाम लेने से रोका गया हो। समारोह में ठहाके लगे।
जुगाड़ शब्द नकारात्मक रूप में खूब चर्चित रहा है। शायद यह पहला अवसर था, जब जुगाड़ की सकारात्क रूप में चर्चा की गई। जोशी ने कहा कि जुगाड़ के पीछे भी कल्पना शक्ति होती है। अनेक समस्याओं का तत्काल समाधान निकालने की क्षमता जुगाड़ में होती है। उन्होंने उदाहरण भी दिया। जब विदेशियों के बंद पड़े वाहन को एक बच्चे ने जुगाड़ से चालू कर दिया था। इसके बाद वह विदेशी जुगाड़ का इंस्टीट्यूट तलाशते देखे गए। उन्हें बताया गया कि यह तो हमारे प्रत्येक घर में देखा जा सकता है। इस समय वाराणसी की बात चलती है तो राजनीतिक संदर्भ भी आ जाता है। जोशी ने कहा की आज जिन पांच लोगों का सम्मान हुआ, उनमें तीन वहीं के निवासी हैं। वह खुद वाराणसी से सांसद रहे हैं। इस रूप में वहां से संबंधित हैं। योगी आदित्यनाथ ने जवाब दिया। कहा कि वाराणसी देश की सांस्कृतिक राजधानी है। यहां विभूतियों की कमी नहीं है। राम नाईक ने भी जिज्ञासा व्यक्त की और कहा कि शहनाई की गूंज वाराणसी से ही क्यों आती है। उनका इशारा बिस्मिल्ला खान की तरफ था। राम कुमार चौरसिया को शहनाई के लिए ही पद्मश्री मिला है।
राम नाईक ने अपने संबोधन से विनोदपूर्ण माहौल को आगे बढ़ाया। कहा कि मुरली मनोहर जोशी उनसे वरिष्ठ हैं। उम्र में भी करीब चार महीने बड़े हैं। जब जोशी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब वह मुंबई महानगर के पार्टी अध्यक्ष थे। लोक सभा में भी जोशी पहले पहुंचे थे। इतना ही नहीं, जब अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में दोनों एक साथ थे, तब भी जोशी ऊंचाई पर रहे। उनका कार्यालय चौथे माले पर था। जबकि राम नाईक का कार्यालय दूसरे माले पर था। इस प्रकार राजभवन में आयोजित होने वाले सार्थक समारोहों की शृंखला आगे बढ़ी।