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बाल विवाह का दंश झेलती बच्चियां
बाल विवाह का दंश झेलती बच्चियां
रमेश सर्राफ धमोरा    17 Apr 2018       Email   

राजस्थान में जोधपुर की एक अदालत ने हाल ही में आठ साल की उम्र में बाल विवाह के बंधन में बंधने के बाद करीब 13 साल तक उसका दंश झेलने वाली 21 वर्षीय ममता विश्नोई को आखिरकार बाल विवाह से मुक्त कर दिया। जोधपुर के पारिवारिक न्यायालय की न्यायाधीश रेखा भार्गव ने ममता के बाल विवाह को शून्य घोषित करने फैसला सुनाया। ममता का बाल विवाह आठ साल की उम्र में बाड़मेर जिले के निवासी युवक के साथ हुआ था। बाल विवाह के बारे में उसे कुछ साल पूर्व ही पता चला। यह सुनकर वह डिप्रेशन में आ गई। सारथी ट्रस्ट के एक कैंप में ममता ने डॉ कृति भारती से मुलाकात कर खुद की पीड़ा बताई। उन्होंने ममता को संबल दिया। बाद में ममता के माता-पिता तो बाल विवाह शून्य घोषित करवाने के लिए सहमत हो गए, लेकिन ससुराल वाले नहीं माने और लगातार धमकियां देते रहे। बाल विवाह से मुक्ति मिलने के बाद ममता विश्नोई ने बताया कि अभी मैं पैरामेडिकल कर रही हूं। अब अपने डॉक्टर बनने के ख्वाब को जल्दी पूरा कर पाऊंगी।
राजस्थान में अलवर के थानागाजी की रहनेवाली पिंकी कंवर के बाल विवाह को निरस्त कर दिया है। पिंकी की शादी 10 साल की उम्र में 24 मार्च, 2009 को दौसा निवासी हिम्मत सिंह राजपूत के साथ हो गई थी। शादी के बाद उसके ससुराल वालों ने उस पर गौना करवाने का दबाव बनाया था। पिंकी अभी 19 साल की है और वह जोधपुर में अपनी पढ़ाई कर रही है। पिंकी कंवर ने अपने बाल विवाह को निरस्त करने के लिए कोर्ट में मुकदमा दायर किया था। पिंकी ने जोधपुर के सारथी ट्रस्ट की पुनर्वास मनोवैज्ञानिक डॉ कृति भारती के माध्यम से कोर्ट में यह मुकदमा दायर किया था। पिंकी कंवर को शादी के बाद ससुराल वालों ने गौना का दबाव बनाया था। इस मामले में कोर्ट में सुनवाई हुई और बीती 31 जनवरी को पिंकी के बाल विवाह को निरस्त कर दिया।
हैदराबाद में बाल विवाह से बचाई गई 16 वर्षीय लड़की बी. अनुशा आज क्रिकेट के मैदान में धूम मचा रही है। स्थानीय गैर सरकारी संस्था की मदद से रचकोंडा पुलिस ने उन्हें शहर के सरूर नगर इलाके से बचाया। पुलिस ने बताया कि पिछले साल अप्रैल में अनुषा का परिवार उनकी शादी 26 वर्षीय रिश्तेदार से करने जा रहा था, लेकिन एनजीओ बालाला हाक्कुला संघम की मदद से हमने उन्हें बचाया। पुलिस आयुक्त महेश एम भागवत ने कहा कि दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली इस छात्रा ने खेल में रुचि दिखाई और हाल ही में मध्य प्रदेश में आयोजित इंटर स्कूल अंडर-19 क्रिकेट मैच में उन्होंने हरफनमौला खेल से सबका दिल जीता। अनुषा इस बात की सटीक उदाहरण बन गई है कि सही प्रोत्साहन और मार्गदर्शन मिलने पर कुछ भी कर पाना मुश्किल नहीं है। पुलिस आयुक्त ने कहा कि पुलिस विभाग अनुषा का ध्यान रखेगा। जबतक वह अपनी शिक्षा को पूरा नहीं कर लेती, तबतक हम उसे वित्तीय सहायता प्रदान करेंगे। भविष्य में उसे सभी तरह की मदद मुहैया कराई जाएगी।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बाल विवाह के खिलाफ  शुरू किए गए अभियान का असर दिखाई दे रहा है। राज्य के मधुबनी जिले में एक नाबालिग 17 वर्षीय किशोरी की शादी 20 वर्षीय रविंद्र कुमार के साथ कर दी गई थी। मामले की जानकारी मिलते ही पुलिस ने मौके पर पहुंच कर मेडिकल जांच करवाते हुए दूल्हे को जेल भेज दिया और दुल्हन को रिमांड होम भेज कर लड़की व लड़के के माता-पिता को हिरासत में लिया। ये कुछ ऐसी घटनाएं हैं, जो ये दर्शाती हैं कि बाल विवाह के खिलाफ  समाज में तेजी से जागृति आ रही है। बाल विवाह आज भी दुनिया के कई कोनों में फल-फूल रहा है। भारत में यह प्रथा लंबे समय से चली आ रही है, जिसके तहत छोटे बच्चों का विवाह कर दिया जाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि आज के पढ़े-लिखे समाज में भी यह प्रथा अपना स्थान बनाए हुए है। जो बच्चे अभी खुद को भी अच्छे से नहीं समझते, जिन्हें जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों का कोई ज्ञान नहीं, जिनकी उम्र अभी पढ़ने-लिखने की होती है, उन्हें बाल विवाह के बंधन में बांधकर क्यों उनका जीवन बर्बाद कर दिया जाता है। झारखंड में बाल विवाह जैसी समस्या को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक, झारखंड में 38 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह होता है। बाल विवाह को लेकर सेव द चिल्ड्रेन एंड ऑक्सफेम ने भी रिपोर्ट जारी की है। हालांकि बाल विवाह की दर में कमी आई है, लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है। झारखंड के बाद बिहार और उड़ीसा की स्थिति भी भयावह है। झारखंड और बिहार में लड़कियों की शादी की औसत आयु 15 साल है। ओडिशा में यह औसत आयु 17 साल की है। गौरतलब है कि कानून के मुताबिक भारत में लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 18 साल रखी गई है। वहीं लड़कों के लिए 21 साल की उम्र रखी गई है। इसके बावजूद भी बाल विवाह की भयावह स्थिति कायम है। कम उम्र में गर्भ धारण करने की वजह से अस्वस्थ व अविकसित शिशु का जन्म होता है। ऐसे बच्चे बौनेपन और मंदबुद्धि का शिकार हो जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के अनुसार, बिहार में 2006 से 2016 के बीच जन्मे 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 40 प्रतिशत बच्चे बौनेपन के शिकार हुए हैं।
भारत में बाल विवाह पर तेजी से लग रहे अंकुश की वजह से पिछले दस साल में दक्षिण एशिया में बाल विवाह की दर 50 फीसदी से घटकर 30 फीसदी पर आ गई है। यूनिसेफ  की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 साल में भारत में बाल विवाह की दर 47 फीसदी से घटकर 27 फीसदी रह गई है। साल 2005-06 में भारत में बाल विवाह की दर 47 फीसदी थी। साल 2015-16 में यह आंकड़ा घट कर 27 फीसदी रह गया है।  वैश्विक स्तर पर हर पांच में से एक यानी 21 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है। दस साल पहले यह आंकड़ा करीब 25 फीसदी का था। खासकर दक्षिण एशिया में इसमें आई तेज गिरावट की वजह से इन आंकड़ों में सुधार हुआ है। हालांकि यूनिसेफ  की रिपोर्ट में यह चिंता भी जताई गई है कि आदिवासी समुदायों और अनुसूचित जाति जैसी कुछ जातियों में अब भी बाल विवाह की दर बहुत ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान में बाल विवाह की दर सबसे ज्यादा 40 फीसदी तक है, जबकि तमिलनाडु और केरल में यह 20 फीसदी से कम है।
तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नहीं हो पा रहा है। भारत में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान के शुरू होने के बावजूद हर सात सेकेंड में एक नाबालिग बेटी की अपने से दोगुने उम्र के व्यक्ति के साथ जबरदस्ती शादी करा दी जा रही है। अगर इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करना है तो इसके लिए समाज को ही आगे आना होगा तथा बालिकाओं के पोषण, स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करना होगा। समाज में शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। अभिभावकों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करना होगा। सरकार को भी बाल विवाह की रोकथाम के लिए बने कानून का जोरदार ढंग से प्रचार-प्रसार तथा कानून का कड़ाई से पालन कराना होगा। बाल विवाह प्रथा के खिलाफ  समाज में जोरदार अभियान चलाना होगा।
भारत यदि बाल विवाह और समय पूर्व प्रसव पर रोक लगा दे तो अगले सात वर्षों में स्वास्थ्य देखभाल और संबंधित लागतों में 33,500 करोड़ रुपयों की बचत कर सकता है। यह जानकारी विश्व बैंक और एक अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वूमन की एक नई रिपोर्ट में सामने आई है। बचने वाले 33,329 करोड़ रुपए देश के 2017-18 के उच्च शिक्षा बजट के बराबर होंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2030 तक 18 देशों में एक लाख 14 हजार करोड़ रुपए की बचत हो सकती है। बाल विवाह और समय पूर्व प्रसव पर रोक लगने से जनसंख्या वृद्धि में कमी होगी, जो सरकारी बजट पर दबाव कम करेगी।






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