बहराइच। वेद पुराण और इतिहास इस बात के साक्षी है कि शक दंभ और प्रतिशोध से विस्फुटित अर्तःकरण ज्वाला में संधि की गुंजाइस क्षीण-दीर्ण ही होती है। त्रेतायुग में सीताहरण के उपरान्त लंकापति के समक्ष सीता वापसी की रामदूत अंगद की सन्धि प्रस्ताव निर्मूल साबित हुआ। द्वापर में स्वयं नारायण कृष्ण के संधि प्रस्ताव को कौरव कुलपति ने अस्वीकार कर दिया। परिणाम सामने रहे। प्रतिशोध में बड़े-बड़े और अति करीबी रिश्ते तार-तार हो जाते है। मध्यस्ता बीच संधि निर्मूल और वेदम सरीखा ही परिणाम निकलता है। ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं। लेकिन युवा एसपी वृंदा शुक्ला ने अपने दृढ संकल्पित इच्छा शक्ति से उस मिथक को तोड़कर दिखाया जिसमें प्रतिशोध और अहंकार के दो पाटो में पिस रहे रिश्तों में सहर्ष संधि की संधि दिखाई और सुनाई दिया।
बा तारीख 13 अप्रैल दिन शनिवार सन 2024। पुलिस में लगे भव्य पड़ाल में हर्षित आभा पटल इतिहास का साक्षी बना। जहां आपसी खटपट से शुरू हुई तकरार पति-पत्नी के बीच विक्षोह की खाई बन गई। विक्षोह और प्रतिशोध से उपजी अहंकार की लड़ाई पुलिस चौखट पर दस्तक देने लगी। वृंदा ने 120 दम्पत्तियों में संधि कराकर एक नव चेतना शिख आरोहण का इतिहास रच डाला। इस हुई संधि के प्रति उनकी सलग्न तटस्ता या तटस्थ्य संलग्नता की ही देन है। वृंदा शुक्ला के छवि पटल की भाव भंजन भंगिमा जिसमें गजब की अप्रहरित जिजीविषा है जो उन्हें चैन से बैठने नही देती और हर दिन लोक हिर्ताथ में कुछ न कुछ नया और अपूर्व और अद्वितीय कर गुजरने के लिए उकसाती रहती है। उसी सुखद श्रृंखला के लडी की एक कडी है दुई बिछुडे मानव का अनमोल मेल कराने का संकल्प। एसपी वृंदा शुक्ला ने जिले में बढ़ रहे पति पत्नी अर्तकलह में अलग हो रहे दम्पत्तियों में पुर्न शांति संधि कराने का मुहिम चलाया। वृंदा शुक्ला दुई संधि को लगभग एक आन्दोलन की तरह इस सारी मुहिम को बड़े ही संजीदगी तन्मयता से अनथक बढ़ाया। शुक्ला की यह सारी प्रक्रिया सारगर्भित प्रयासों में रचबस कर बहुत ही सहज और नामालून तरीके से चली।
एसपी वृंदा के लोक लुभावन भगीरथी प्रयासों से यह स्पष्ट है कि उनके समााजिक उत्थान के प्रति सहजता और धैर्य अंदर छुपी हुई किसी उद्दाम जिजीविसा और अस्तित्व सुरक्षा की धीमी किन्तु तीव्र अनल के तरह थे। सर्वविदित है कि वृंदा शुक्ला के प्रत्येक समाजोन्मुख उत्थान में अथक आन्दोलन धर्मिता और महत्वाकांक्षा शीलता पायी जाती है, जिसकी जड़े वर्तमान समय समाज व परिवेश के धुरकाल में है। दुई बीच संधि ट्रायल एण्ड ऐरर भी प्रयोग धर्मिता इस आन्दोलन धर्मिता का सार तत्व रहा। पंक्तिवद्ध समीचीन होगा कि हालाकि वृंदा शुक्ला का कोई भी संकल्पित अभियान सिर्फ और सिर्फ लोक हितार्थ पर अवलम्बित होती है, जो निरन्तर और अनथक है। जिसमें अंतराल या समय की अनुकूलता जैसी बाधाओं से भी व्यक्ति क्रमित नहीं होती।
मुद्दा यह नहीं कि वृंदा शुक्ला ने 120 बिछड़े पौढ़, युवा, दम्पत्ति के बीच वंय संधि कराया। बात इस बात की है कि वृंदा शुक्ला ने जिन 120 कुनवों के बीच पीढ़ी दर पीढ़ी के जीवंत जीवन जीने का मार्ग सशक्त किया। वृंदा के इस एक भगीरथी प्रयासों से दो बिछुडे जीवन साथी को बर्बादी तबाही के कर्कश कहर के भव सिन्धु से पार करने में एक कुशल कुशाग्र नाविक की तरह पार करने में महती भूमिका का निर्वहन किया। इतना ही नहीं वृंदा शुक्ला ने इन दम्पत्तियांे के माथे पर पति-पत्नी छोड़ के लगने वाले कलंकित बदनुमें दाग और सामाजिक उपहास से निजात दिलाया। दूसरी इससे भी बड़ी बात कि यह कि पति-पत्नी के मध्य रार, दंभ, प्रतिशोध और अंहकार के विनाशकारी दो पाटो के बीच फंसी, अनसुलझी उन मासूमों के हसते खेलते बचपन थे। जिसके मुकद्दर में मां की ममता या पिता का वात्सल्य दोनों में एक को खोना ही था। उन पाल्यों के दिलो दिमाग में यक्ष प्रश्न उनके मर्मान्तक के गुत्थी जो जीवन काल तक उथल पुथल मचाती रहती। उस काल खण्ड के सर वृंदा शुक्ला ने सदा-सदा के लिए पूर्ण विराम लगाकर नया जीवन देने का सौगात दिया। वृंदा के इस सुखद सोपान सृजन करने के लिए पूरा समाज उनका ़ऋणी और उपकृत रहेगा इसमे दो राय नही।
13 अप्रैल को पुलिस लाइन पडाल में जो हर्षातिरेक बरखा की बौछार में आगन्तुक मेहमानों के स्वप्निल सपने सराबोर हो रहे थें। जहां एसपी वृंदा शुक्ला इनकी सफल जीवन की अनेकानेक शुभकामनाएं अर्पित कर सम्बोधन करके गिफ्ट पैकेट भेेंट किया वहीं एसपी शुक्ला के अधरो पर बिखर रही पूर्ण संतुष्टि की मुस्कान इस बात की चुगली कर रही थी कि जैसे उन्होंने खिलाड़ियों की एक टीम को कप्तान की भूमिका में विश्व कप विजेता का खिताब देश व समाज के नाम कर लिया हो।