- डा. एमडी सिंह की नई कविता को गुनगुना रहे लोग
गाजीपुर। पूर्वांचल के प्रख्यात होम्योपैथिक चिकित्सक व कवि डा. एमडी सिंह की नई कविता ‘विश्राम मित्र अभी नहीं’ को गुनगुनाते वक्त वर्ष 1972 में निर्मित सुपरहिट फिल्म शोर का वह गीत जुबान पर आ जाता है जिसके बोल ‘जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबहो शाम’ है। अपने गीत व कविता संग्रह में भोजपुरी का मिश्रण कर उसे नया स्वरुप प्रदान करने वाले डा. एमडी सिंह जिले के प्रतिष्ठित डाक्टरों में से एक है। कोविड के दौरान जिले के लोगों ने इन्हें एक और नाम से नवाजा जिसे ‘कभी न थकने वाला इंसान’ कहा जाता है। प्रचंड सर्दी में भी डा. एमडी सिंह बिना ऊनी वस्त्र के रहते है। संडे हो या मंडे हर दिन सुबह आठ बजे वह अपनी क्लीनिक में बैठ जाते है और बिना रुके व थके एकाग्रचित्त मन से रोगियों का इलाज करते है। होम्योपैथिक जगत के जनकारों की लिस्ट में डा. एमडी सिंह का भी नाम शामिल है। साधारण ढंग से रहने वाले इस व्यक्ति के अंदर इतनी प्रतिभाएं छिपी हुई है कि कोई इसका अंदाज नहीं लगा सकता है। चौबीस घंटे में कुछ घंटे विश्राम करने के बाद दोबारा से ऊर्जावान होकर लोगों से मिलने वाले डा. एमडी सिंह के भीतर छिपी प्रतिभाओं की मिसाल जिले के सभी लोग देते है। पूर्वांचल यूनिर्वसिटी के एमए फाइनल वर्ष के समेस्टर में भी डा. एमडी सिंह की ‘कुकुर’ नाम की एक चर्चित पुस्तक के कुछ कविताओं को शामिल किया गया है। हाल ही इन्होंने अपने भावनाओं के माध्यम से एक नई रचना को प्रस्तुत किया है। जिसे लोग पूरी तल्लीनता के साथ सुन और पढ़ रहे है। ‘विश्राम मित्र अभी नहीं’ शीर्षक के माध्यम से ‘नहीं नहीं नहीं नहीं विश्राम मित्र अभी नहीं, कह रही है जिंदगी विश्राम मित्र अभी नहीं, चल पड़े तो पांव हैं, लग गए तो दांव हैं, चलते मिले तो शहर ठहरे मिले तो गांव हैं, चलो बढ़ो चलो बढ़ो विराम मित्र अभी नहीं, कह रही है जिंदगी विश्राम मित्र अभी नहीं, अभियान को है गगन, अभिमान को है दमन, पूर्णता को प्रेरणा, अविराम को है लगन, यहीं रहो यहीं करो सुर धाम मित्र अभी नहीं, कह रही है जिंदगी विश्राम मित्र अभी नहीं।