लखनऊ ...उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा है कि देश के अन्य हिस्सों में विफल हो चुके निजीकरण के प्रयोग को प्रदेश की गरीब जनता पर न थोपा जाये।
श्री दुबे ने शुक्रवार को कहा कि मुख्यमंत्री के मार्गदर्शन में बिजली कर्मचारियों ने रिकॉर्ड विद्युत आपूर्ति की है और लाइन हानियां में कमी कर उसे राष्ट्रीय मानक के नीचे कर दिया है। महाकुंभ के दौरान बिजली कर्मियों ने अथक परिश्रम कर 65 दिनों तक चले महाकुंभ में पल मात्र के लिए भी विद्युत आपूर्ति में व्यवधान नहीं आने दिया।
उन्होंने कहा कि बिजली के क्षेत्र में निजीकरण का प्रयोग एक विफल प्रयोग है। प्रांत के स्तर पर सबसे पहले वर्ष 1999 में उड़ीसा में विद्युत वितरण का निजीकरण किया गया था। उड़ीसा में निजीकरण की तीसरी विफलता है। जिसमे
भारतीय जनता पार्टी टाटा पावर के विरोध में लगातार आंदोलन कर रही है।
दुबे ने बताया कि पड़ोसी प्रांत बिहार में गया, भागलपुर और समस्तीपुर में अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी के नाम पर निजीकरण का प्रयोग किया गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके पूरी तरह असफल रहने के चलते इसे एक साल बाद ही रद्द कर दिया। महाराष्ट्र में औरंगाबाद, जलगांव, नागपुर और झारखंड में रांची और जमशेदपुर में निजीकरण के विफल प्रयोग निरस्त किए जा चुके है।
संघर्ष समिति ने कहा कि उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा और आगरा में निजीकरण का प्रयोग असफल रहा है। ग्रेटर नोएडा में आए दिन किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं की शिकायतें सामने आ रही है। ग्रेटर नोएडा में निजी कंपनी का लाइसेंस निरस्त कराने हेतु स्वयं उत्तर प्रदेश सरकार मा. सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ रही है। संघर्ष समिति ने कहा कि निजी कंपनी मुनाफे के लिए काम करती है और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के अंतर्गत आने वाले 42 जनपदों में बेहद गरीब जनता रहती है। अतः प्रदेश की आम जनता के व्यापक हित में निजीकरण का विफल प्रयोग उत्तर प्रदेश में न लागू किया जाए।